सस्ते आयातित तेलों की भरमार होने से खाद्यतेलों कीमतों में गिरावट बंदरगाहों पर सस्ते आयातित तेलों का भंडार जमा होने के कारण दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में शनिवार को सरसों, सोयाबीन तेल तिलहन, कच्चा पामतेल (सीपीओ), पामोलीन और बिनौला तेल कीमतों में गिरावट देखने को मिली जबकि सामान्य कारोबार के बीच मूंगफली तेल तिलहन के भाव अपरिवर्तित रहे। बाजार सूत्रों ने कहा कि गुजरात की मंडियों में मकर संक्रांति की छुट्टियों के कारण कारोबारी गतिविधियां ठप रहने से मूंगफली तेल तिलहन के भाव अपरिवर्तित रहे। दूसरी ओर बंदरगाहों पर सस्ते आयातित हल्के तेलों की भरमार होने से भी देशी हल्के तेल तिलहन (सॉफ्ट आयल) कीमतों में गिरावट आई। सूत्रों ने कहा कि विदेशों में खाद्यतेलों के दाम काफी टूटे हैं और देशी तेल तिलहनों की लागत अधिक होने के कारण सरसों, मूंगफली और सोयाबीन, बिनौला जैसे देशी हल्के तेल तिलहन कीमतों पर भारी दबाव है। सूत्रों ने कहा कि देश को ऐसे सस्ते आयातित तेलों पर अंकुश लगाने की पहल करनी होगी अन्यथा इनके सामने आने वाली सरसों की फसल और पहले आ चुके सोयाबीन का खप पाना लगभग असंभव हो जाएगा और हमारा स्टॉक और बढ़ सकता है। उन्होंने कहा कि मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देश भी अपने तेल तिलहन उद्योग को आगे बढ़ाने के लिए जरूरी नीतिगत बदलाव समय समय पर करते रहते हैं। तेल तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर होने के लिए प्रयासरत भारत को भी अपने तिलहन तेल के हित में वातावरण बनाने की आवश्यकता है। सूत्रों ने कहा, हमें इस संदर्भ में सबसे पहले तो शुल्कमुक्त आयात की छूट समाप्त करनी होगी और इन आयातित तेलों पर आयात शुल्क लगाने की ओर ध्यान देना होगा। छूट से खुदरा बाजार में न तो ग्राहक और तेल उद्योग और न ही किसानों को कोई फायदा मिलता दिख रहा है। सोयाबीन के शुल्क मुक्त आयात की समयसीमा एक अप्रैल से खत्म हो जाएगी। लेकिन सूरजमुखी पर यह छूट जारी है जिसेबंद करने के बारे में सोचना होगा। उन्होंने कहा कि बंदरगाह पर सोयाबीन, सूरजमुखी तेल के आयात का खर्च 102-103 रुपये प्रति लीटर बैठता है और ग्राहकों को यह तेल खुदरा बाजार में 125-135 रुपये के भाव पर मिलना चाहिये। लेकिन देश के किसी भी कोने में यह 175-200 रुपये प्रति लीटर तक के दाम पर बिक रहा है। मॉल और बड़ी दुकानों में ग्राहकों को ये तेल, अधिकतम खुदरा मूल्य मनमाना ढंग से तय करने की वजह से ऊंचे दाम पर खरीदना पड़ता है।
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