जोशीमठ में एकाएक नहीं आई है आपदा, प्रकृति और पर्यावरण की अनदेखी का परिणाम है यह त्रासदी
Column जोशीमठ में एकाएक नहीं आई है आपदा, प्रकृति और पर्यावरण की अनदेखी का परिणाम है यह त्रासदी

जोशीमठ में एकाएक नहीं आई है आपदा, प्रकृति और पर्यावरण की अनदेखी का परिणाम है यह त्रासदी पर्यावरण एवं प्रकृति की दृष्टि से हम बहुत ही खतरनाक दौर में पहुंच गए हैं क्योंकि संभव है कि मानव की गतिविधियां ही इसके विनाश का कारण बन जाएं। आज के दौर में समस्या प्राकृतिक संसाधनों के नष्ट होने, पर्यावरण विनाश एवं प्राकृतिक आपदाओं की हैं। सरकार की नीतियां, उपेक्षाएं एवं विकास की अवधारणा ने ऐसी स्थितियों को खड़ा कर दिया है कि सरकार की बजाय न्यायालयों को बार-बार अपने डंडे का इस्तेमाल करना पड़ रहा है। जोशीमठ एवं चंडीगढ़ ऐसी ही स्थितियों के ताजे गवाह बने हैं। जोशीमठ की भूमि में पड़ी दरारें एक बड़ी त्रासदी के साथ वहां रहने वाले लोगों के जीवन-संकट का कारण बनी है। यह पर्यावरण एवं प्रकृति की उपेक्षा एवं तथाकथित अनियोजित विकास का परिणाम है, ऐसे ही अनियोजित विकास के कारण चंडीगढ़ जैसे महानगर किसी बड़े संकट को भविष्य में झेलने को विवश न हो, इसके लिये चंडीगढ़ में रिहाइशी इलाकों के स्वरूप में बदलाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है, वह दूरगामी महत्त्व का है। यह न सिर्फ चंडीगढ़ को एक विरासत के रूप में बचाने की फिक्र है, बल्कि एक तरह से विकास के नाम पर चलने वाली उन गतिविधियों पर भी टिप्पणी है, जिसकी वजह से कोई शहर आम जनजीवन से लेकर पर्यावरण तक के लिहाज से बदइंतजामी का शिकार हो जाता है। आधुनिक राजसत्ताओं को पर्यावरण की दुश्मन मानें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। आर्थिक एवं भौतिक तरक्की अक्सर प्रकृति एवं पर्यावरण के विनाश का कारण बनती रही है। हमें विकास की कार्ययोजनाएं पर्यावरणीय आधारित बनानी होगी।

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एकजुट हो रहे हिंदुओं को फिर ‘बांटने’ की साजिश है जातिगत गणना
Column एकजुट हो रहे हिंदुओं को फिर ‘बांटने’ की साजिश है जातिगत गणना

एकजुट हो रहे हिंदुओं को फिर ‘बांटने’ की साजिश है जातिगत गणना यह देश का दुर्भाग्य है कि 21वीं सदी में भी हम जातिवाद में उलझे हुए हैं। एक तरफ समाज के सभी वर्गों में समानता लाने के लिए तमाम समाजसेवी संगठन मुहिम चला रहे हैं तो वहीं कई राजनैतिक दल वोट बैंक की सियासत के सहारे सत्ता सुख भोगने के लिए जातिगत जनगणना कराये जाने के लिए उतावले नजर आ रहे हैं। उनको इस बात की चिंता नहीं है कि जातीय गणना कराया जाना किसी ‘विस्फोट’ से कम नहीं है। यह वह ‘आग’ है जिसमें उन लोगों के तो हाथ जलना तय ही है जो इसे लगा रहे हैं, वहीं वह भी इस ‘आग’ से नहीं बचेंगे जो तटस्थ रहेंगे। इससे समाज में भेदभाव को बढ़ावा मिलना तय है, भले ही जातीय गणना का समर्थन करने वाले इसके तमाम फायदे गिनाते रहें, लेकिन इसके पीछे सत्ता हथियाने का खेल ही है। इस ‘खेल’ की बुनियाद तो काफी पहले पड़ गई थी, लेकिन जबसे भारतीय जनता पार्टी और खासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा देते हुए जातियों में बंटे हिन्दुओं को एकजुट करने की सफल मुहिम चलाई तो जातिवाद की राजनीति करने वाले दलों के नीचे से सत्ता खिसक गई। इसी के बाद हिन्दुओं को आपस में बांटने और लड़ाने का खेल फिर से शुरू हो गया। इसीलिए साजिश के तहत जातीय गणना कराई जा रही है।  गौरतलब है कि अपने देश में तमाम जातियां और उनकी उपजातियां हैं। इनकी संख्या कितनी है, किस जाति में कितने लोग हैं, इनकी आर्थिक स्थिति क्या है, ये फिलहाल निर्धारित नहीं है। साल 1931 से लेकर आज भी यही मुद्दा हमारे देश में विकास की राह में रोड़ा बना हुआ है। वर्ष 1931 तक भारत में जातिगत जनगणना होती थी। साल 1941 में जनगणना के समय जाति आधारित डेटा जुटाया ज़रूर गया था, लेकिन प्रकाशित नहीं किया गया। साल 1951 से 2011 तक की जनगणना में हर बार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का डेटा दिया गया, लेकिन ओबीसी और दूसरी जातियों का नहीं। इसी वजह से सबसे ज्यादा विवाद पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या को लेकर ही है। मोटे अनुमान के अनुसार देश में पिछड़ा वर्ग समाज की आबादी करीब 50 फीसदी के करीब है। इसी वर्ग की संख्या को पुख्ता करने के लिए अलग-अलग राज्य, केंद्र पर दबाव बनाते रहते हैं, क्योंकि राजनीतिक पार्टियां अपने पक्ष में वोटों की गोलबंदी करने के लिए जातिगत पहचान का सहारा सबसे अधिक लेती हैं।

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Swami Vivekananda ने समाचारपत्रों को बनाया था वेदांत के प्रसार का माध्यम
Column Swami Vivekananda ने समाचारपत्रों को बनाया था वेदांत के प्रसार का माध्यम

Swami Vivekananda ने समाचारपत्रों को बनाया था वेदांत के प्रसार का माध्यम माँ भगवती की कृपा से स्वामी विवेकानंद सिद्ध संचारक थे। उनके विचारों को सुनने के लिए भारत से लेकर अमेरिका तक लोग लालायित रहते थे। लेकिन हिन्दू धर्म के सर्वसमावेशी विचार को लेकर स्वामीजी कहाँ तक जा सकते थे?

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2023 का सेमीफाइनल जीतने वाला ही 2024 में बनेगा विजेता, समझिये चुनावी राज्यों का संपूर्ण परिदृश्य
Column 2023 का सेमीफाइनल जीतने वाला ही 2024 में बनेगा विजेता, समझिये चुनावी राज्यों का संपूर्ण परिदृश्य

2023 का सेमीफाइनल जीतने वाला ही 2024 में बनेगा विजेता, समझिये चुनावी राज्यों का संपूर्ण परिदृश्य साल 2024 के लोकसभा चुनावों में अभी एक साल से ज्यादा का समय है लेकिन कोई भी राजनीतिक दल अपनी तैयारियों में कमी नहीं रखना चाहता इसीलिए सभी अपने-अपने तरीके से मेहनत कर रहे हैं। मेहनत इस बात की हो रही है कि 2024 का फाइनल लड़ने से पहले 2023 का सेमी-फाइनल जीता जाये। दरअसल इस साल कुछ ही दिनों बाद त्रिपुरा, नगालैंड, मेघालय और कर्नाटक विधानसभा के चुनाव होने हैं उसके बाद सितंबर के आसपास तेलंगाना विधानसभा के और फिर नवंबर-दिसंबर में राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और मिजोरम के विधानसभा चुनाव होने हैं। 2023 में नौ राज्यों के विधानसभा चुनावों में जिस पार्टी का पलड़ा भारी रहेगा, 2024 में उसी की दावेदारी भी सर्वाधिक रहेगी। इसलिए भाजपा और कांग्रेस तो इन चुनावों की तैयारी में जुटी ही हुई हैं साथ ही आम आदमी पार्टी, जनता दल युनाइटेड, बीआरएस और तृणमूल कांग्रेस जैसे दल भी इन चुनावों की तैयारी में जुट गये हैं क्योंकि आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल, तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बीआरएस प्रमुख के.

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स्थानीय भाषाओं को साथ लेकर ही वैश्विक भाषा बन सकती है हिंदी
Column स्थानीय भाषाओं को साथ लेकर ही वैश्विक भाषा बन सकती है हिंदी

स्थानीय भाषाओं को साथ लेकर ही वैश्विक भाषा बन सकती है हिंदी आधुनिक खड़ी बोली हिंदी की विकास यात्रा की शुरुआत उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में हुई। लेकिन इसे बीसवीं सदी के शुरुआती वर्षों में ना सिर्फ गति मिली, बल्कि स्तरीयता के संदर्भ में एक मानक स्तर भी हासिल कर लिया। इस दौर में हिंदी जहां परिनिष्ठित होती है, वहीं उसे सौष्ठव पूर्ण बनाने की कोशिश भी शुरू होती है। इसी दौर में देखते हैं कि हिंदी राष्ट्रीय होने की ओर बढ़ती है और इसमें भावी बहुभाषी स्वतंत्र भारत की भाषाओं के बीच सेतु के तौर पर देखा जाता है। ब्रिटिश भारतविद् फ्रांचेस्का आर्सिनी इसी दौर की हिंदी को समूचे भारतीय राष्ट्र के मूल्यों का लोकवृत्त रचयिता के तौर पर देखती हैं। अमृत राय इसी दौर में हिंदी में राष्ट्रवाद के बीज भी देखते हैं। लेकिन जब बीसवीं सदी के उत्तरार्ध को देखते हैं तो हिंदी नए रूप में सामने आती है। विशेषकर हिंदी पत्रकारिता राष्ट्रीयता के स्थानीयता की ओर उन्मुख होती है और राष्ट्रीय से स्थानीय होने की इस यात्रा में वह स्थानीय भाषाओं के तमाम शब्दों को ना सिर्फ स्वीकार करती है, बल्कि उन्हें अपनी प्रवृत्ति के अनुसार ढालकर स्थानीय संपर्क का जीवंत माध्यम बन जाती है।

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विदेशी शिक्षण संस्थानों को न्यौता देना कहीं भारतीय शिक्षा व्यवस्था के लिए खतरा ना बन जाये
Column विदेशी शिक्षण संस्थानों को न्यौता देना कहीं भारतीय शिक्षा व्यवस्था के लिए खतरा ना बन जाये

विदेशी शिक्षण संस्थानों को न्यौता देना कहीं भारतीय शिक्षा व्यवस्था के लिए खतरा ना बन जाये नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा घोषित नई शिक्षा नीति की उपयोगिता एवं प्रासंगिकता धीरे-धीरे सामने आने लगी है एवं उसके उद्देश्यों की परते खुलने लगी है। आखिरकार उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति की शुरुआत करते हुए अगस्त तक डिजिटल यूनिवर्सिटी के शुरू होने और विदेशों के ऑक्सफोर्ड, कैंब्रिज और येल जैसे उच्च स्तरीय लगभग पांच सौ श्रेष्ठ शैक्षणिक संस्थानों के भारत में कैंपस खुलने शुरू हो जायेंगे। अब भारत के छात्रों को विश्वस्तरीय शिक्षा स्वदेश में ही मिलेगी और यह कम खर्चीली एवं सुविधाजनक होगी। इसका एक लाभ होगा कि कुछ सालों में भारतीय शिक्षा एवं उसके उच्च मूल्य मानक विश्वव्यापी होंगे। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की यह अनूठी एवं दूरगामी सोच से जुड़ी सराहनीय पहल है। यह शिक्षा के क्षेत्र में नई संभावनाओं का अभ्युदय है। भारत में दम तोड़ रही उच्च शिक्षा को इससे नई ऊर्जा मिलेगी। बुझा दीया जले दीये के करीब आ जाये तो जले दीये की रोशनी कभी भी छलांग लगा सकती है। खुद को विश्वगुरु बताने वाले भारत का एक भी विश्वविद्यालय दुनिया के 200 विश्वविद्यालयों में शामिल नहीं है। दो आइआइटी और एक आइआइएससी इस सूची में आते हैं लेकिन 175वें नंबर के बाद, इन त्रासद उच्च स्तरीय शिक्षा के परिदृश्यों में बदलाव लाने में यदि नयी पहल की भूमिका बनती है तो यह स्वागतयोग्य कदम है। लेकिन अनेक संभावनाओं एवं नई दिशाओं के उद्घाटित होने के साथ-साथ हमें यह भी देखना होगा कि कहीं यह पहल भारत के लिये खतरा न जाये?

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MCD सदन में हुए हंगामे से उभरते सवाल मांग रहे जवाब
Column MCD सदन में हुए हंगामे से उभरते सवाल मांग रहे जवाब

MCD सदन में हुए हंगामे से उभरते सवाल मांग रहे जवाब दिल्ली नगर निगम के मुख्यालय सिविक सेंटर में 6 जनवरी 2023 को आहूत शपथ ग्रहण समारोह के दौरान और उसके पश्चात होने वाले महापौर के चुनाव से पहले सत्ताधारी आप और विपक्षी भाजपा के पार्षदों ने जो अपना रौद्र रूप दिखाया है, उससे कई सवाल उपजना लाजिमी है।यदि समय रहते इन सवालों का जवाब मिल जाये तो वह भारतीय लोकतंत्र के लिए शुभ रहेगा। 

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राजस्थान में कांग्रेस दो सत्ता में लौटना है तो बदलनी होगी अपनी रणनीति
Column राजस्थान में कांग्रेस दो सत्ता में लौटना है तो बदलनी होगी अपनी रणनीति

राजस्थान में कांग्रेस दो सत्ता में लौटना है तो बदलनी होगी अपनी रणनीति राजस्थान में अगले विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों ने अपनी चुनावी तैयारियां प्रारंभ कर दी हैं। प्रदेश में सत्तारुढ़ कांग्रेस पार्टी, मुख्य विपक्षी दल भाजपा, तिकोनी टक्कर बनाने में जुटी बसपा, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन, वामपंथी दल, भारतीय ट्राइबल पार्टी सभी अगले विधानसभा चुनाव में सत्तारुढ़ होने का सपना देख रहे हैं। कांग्रेस के नेता जहां फिर से सरकार रिपीट करवाने का प्रयास कर रहे हैं। वहीं भाजपा सरकार बनाने की अपनी बारी का इंतजार कर रही है। अन्य राजनीतिक दल इन दोनों ही दलों को पटखनी देकर अगली सरकार बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहते हैं।

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Haldwani Protest के स्वरूप ने साबित किया- ‘शाहीन बाग’ संयोग नहीं प्रयोग था जोकि दोहराया जा रहा है
Column Haldwani Protest के स्वरूप ने साबित किया- ‘शाहीन बाग’ संयोग नहीं प्रयोग था जोकि दोहराया जा रहा है

Haldwani Protest के स्वरूप ने साबित किया- ‘शाहीन बाग’ संयोग नहीं प्रयोग था जोकि दोहराया जा रहा है अवैध कॉलोनियों से जब भी अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की जाती है तो उसे सियासी लोग धार्मिक रंग देने का काम करते हैं। दिल्ली में पिछले साल एमसीडी का बुलडोजर शाहीन बाग समेत कई अन्य इलाकों में पहुँचा तो इस कार्रवाई को एक धर्म विशेष के लोगों के खिलाफ अभियान करार दिया गया। अब उत्तराखंड चर्चा में है क्योंकि हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के पास रेलवे की जमीन पर बनी अवैध कॉलोनी से कब्जा हटाने का जो आदेश उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने दिया है उसके खिलाफ सियासत शुरू हो गयी है। एकदम शाहीन बाग के आंदोलन की तर्ज पर महिलाओं और बच्चों को ठंड के मौसम में आगे कर प्रदर्शन करवाया जा रहा है, कैंडल मार्च निकाले जा रहे हैं। यहाँ हमें समझना होगा कि सरकारी जमीन सार्वजनिक संपत्ति होती है किसी एक की बपौती नहीं। सरकारी जमीन से कब्जा छुड़वाने के प्रयास को अन्याय का रूप देना गलत है। देश संविधान से चलता है ना कि भावनात्मक या धार्मिक आधार पर। अब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँच चुका है तो नेताओं को बड़बोले बयान देने की बजाय अदालत के आदेश का इंतजार करना चाहिए। वैसे हल्द्वानी में आंदोलन का जो स्वरूप दिखाई दे रहा है उससे एक बात साबित हो गयी है कि शाहीन बाग कोई संयोग नहीं बल्कि प्रयोग था जोकि अब जगह-जगह दोहराया जा रहा है।

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भारतीय लोकतंत्र की चुनावी प्रक्रिया में क्रांति की आहट है आरईवीएम
Column भारतीय लोकतंत्र की चुनावी प्रक्रिया में क्रांति की आहट है आरईवीएम

भारतीय लोकतंत्र की चुनावी प्रक्रिया में क्रांति की आहट है आरईवीएम किसी भी राष्ट्र के जीवन में चुनाव सबसे महत्त्वपूर्ण घटना होती है। यह एक यज्ञ होता है। लोकतंत्र प्रणाली का सबसे मजबूत पैर होता है। राष्ट्र के प्रत्येक वयस्क के संविधान प्रदत्त पवित्र मताधिकार प्रयोग का एक दिन। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के चुनावों में अधिकतम यानी शत-प्रतिशत मताधिकार का प्रयोग हो, इसके लिये देश में चुनाव प्रक्रिया में एक और क्रांतिकारी कदम की दिशा में अग्रसर होते हुए एक नये अध्याय की शुरुआत होने जा रही है, जिसके अन्तर्गत रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (आरईवीएम) का मॉडल विकसित कर चुनाव आयोग ने महत्त्वपूर्ण पहल की है। चुनावों के दौरान यह मशीन उन घरेलू प्रवासियों के लिए वरदान साबित होगी, जो शिक्षा, चिकित्सा और रोजगार के सिलसिले में अपने चुनाव क्षेत्रों से बाहर रहते हैं।

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भारत जोड़ो यात्रा के दौरान खाली झुनझुना ही बजा रहे हैं राहुल गांधी
Column भारत जोड़ो यात्रा के दौरान खाली झुनझुना ही बजा रहे हैं राहुल गांधी

भारत जोड़ो यात्रा के दौरान खाली झुनझुना ही बजा रहे हैं राहुल गांधी मैंने कहा था कि राहुल गांधी के पास यदि भाजपा का कोई वैकल्पिक राजनीतिक दर्शन होता तो देश के समस्त विरोधी दलों को एक सूत्र में बांधा जा सकता था। मुझे खुशी है कि राहुल गांधी ने इसी बात को दोहराया है। उन्होंने अपनी भारत-यात्रा के दौरान अपनी नौंवी पत्रकार परिषद में कहा है कि भाजपा को हराने के लिए विरोधी दलों के पास कोई अपनी दृष्टि होनी चाहिए। राहुल को शायद पता नहीं है कि हमारे देश के सभी विरोधी दलों के पास जबर्दस्त दृष्टि है। हर दल के पास दो-दो नहीं, चार-चार आंखें हैं। इन चारों आंखों से वे चारों तरफ देखते हैं और उन्हें बस एक ही चीज़ दिखाई पड़ती है। वह है- सत्ता, कुर्सी, गद्दी!

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वर्ष 2023 आर्थिक दृष्टि से भारत के लिए एक सुनहरा वर्ष साबित होगा
Column वर्ष 2023 आर्थिक दृष्टि से भारत के लिए एक सुनहरा वर्ष साबित होगा

वर्ष 2023 आर्थिक दृष्टि से भारत के लिए एक सुनहरा वर्ष साबित होगा अब तो वैश्विक स्तर पर विभिन्न वित्तीय संस्थानों जैसे विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मॉनेटरी फंड, यूरोपीयन यूनियन, एशियाई विकास बैंक, आदि ने वर्ष 2023 में भारत को पूरे विश्व में सबसे तेज गति से आर्थिक प्रगति करने वाला देश बने रहने की सम्भावना पूर्व में ही व्यक्त कर दी है और यह पूर्वानुमान विश्व के लगभग समस्त विकसित देशों के आर्थिक संकटों में घिरे रहने के बीच लगाया गया है। हालांकि इस बीच, हाल ही के समय में, चीन एवं कुछ अन्य देशों में कोरोना महामारी का प्रकोप फिर से बढ़ता दिखाई दे रहा है तथा यूक्रेन एवं रूस के बीच युद्ध समाप्त होने के आसार दिखाई नहीं दे रहे हैं परंतु फिर भी इन समस्त विपरीत परिस्थितियों के बीच भारत किस प्रकार पूरे विश्व में एक चमकते सितारे के रूप में दिखाई दे रहा है।  दरअसल, यह सब भारत सरकार द्वारा समय समय पर लिए गए कई आर्थिक निर्णयों के चलते सम्भव होता दिखाई दे रहा है। पूरे विश्व में आज ऐसा कोई देश नहीं है जिसमें वर्ष 2015 के बाद से 50 करोड़ के आसपास बैंक खाते खोले गए हों। एक अनुमान के अनुसार, भारतीय बैंकों में खोले गए उक्त खातों में से 90 प्रतिशत से अधिक खातों में निरंतर व्यवहार किए जा रहे हैं।  देश की एक बहुत बड़ी आबादी को बैंकों के साथ जोड़कर उन्हें वित्तीय रूप से साक्षर बनाया गया है। साथ ही, भारत में ही वर्ष 2015 के बाद से शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 3 करोड़ नए मकान केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा नागरिकों को सौंपे गए हैं एवं अभी भी सौंपे जा रहे हैं। इसी प्रकार “हर घर में नल” एक विशेष योजना के अंतर्गत 2.

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लोकतांत्रिक अधिकार है गरीबों को मुफ्त अनाज
Column लोकतांत्रिक अधिकार है गरीबों को मुफ्त अनाज

लोकतांत्रिक अधिकार है गरीबों को मुफ्त अनाज आजादी के अमृत महोत्सव मना चुके मुल्क में, एक शोषणविहीन समाज में, एक समतावादी दृष्टिकोण में और एक कल्याणकारी समाजवादी व्यवस्था में आबादी के एक बड़े हिस्से का भूखे रहना या भूखें ही सो जाना शर्म का विषय होना चाहिए।  इस तरह की स्थितियों का होना राष्ट्र के कर्णधारों के लिये शर्म का विषय होना चाहिए। जो रोटी नहीं दे सके वह सरकार कैसी?

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कांग्रेस के लिए कई मायनों में बेहद उतार-चढ़ाव वाला साल रहा 2022
Column कांग्रेस के लिए कई मायनों में बेहद उतार-चढ़ाव वाला साल रहा 2022

कांग्रेस के लिए कई मायनों में बेहद उतार-चढ़ाव वाला साल रहा 2022 देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के लिए साल 2022 काफी उतार चढ़ाव वाला रहा। साल की शुरूआत में हुए पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ का नारा देकर प्रियंका गांधी को मैदान में उतारा लेकिन इस नारे की पोस्टर गर्ल ही भाजपा में चली गयीं। कांग्रेस ने ना सिर्फ उत्तर प्रदेश में निराशाजनक प्रदर्शन किया बल्कि ऐन चुनावों के समय जिस तरह पार्टी के बड़े नेता जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह आदि भाजपा में गये, उससे यह भी संदेश गया कि कांग्रेस खुद को एकजुट रखने में नाकाम सिद्ध हो रही है। खास बात यह रही कि उत्तर प्रदेश के अमेठी से 15 साल सांसद रहे राहुल गांधी ने विधानसभा चुनावों में बमुश्किल ही पार्टी के लिए प्रचार किया।

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विलक्षण प्रतिभा के धनी थे नरसिम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेयी
Column विलक्षण प्रतिभा के धनी थे नरसिम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेयी

विलक्षण प्रतिभा के धनी थे नरसिम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेयी 25 दिसंबर अटलबिहारी वाजपेयी जी का जन्म-दिवस था और 23 दिसंबर को नरसिम्हा राव जी और स्वामी श्रद्धानंदजी की पुण्यतिथि थी। इन तीनों महानुभावों से मेरी व्यक्तिगत और आध्यात्मिक घनिष्टता रही है। स्वामी श्रद्धानंद आर्यसमाज और कांग्रेस के बड़े नेता थे। उन्होंने ही देश में गुरुकुल व्यवस्था को पुनर्जीवित किया, जिसका गुणगान नरेंद्र मोदी ने कल ही किया है। उनकी गणना स्वातंत्र्य संग्राम के सर्वोच्च सैनानियों में होती है। उन्होंने भारत की शिक्षा-व्यवस्था और हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में अपूर्व प्रतिमान कायम किए हैं। 23 दिसंबर 1926 को एक मूर्ख मजहबी ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी। वे विद्वान, तपस्वी तथा त्यागी संन्यासी थे।

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Veer Baal Diwas: बलिदान को नमन व प्रेरणा लेने का दिन
Column Veer Baal Diwas: बलिदान को नमन व प्रेरणा लेने का दिन

Veer Baal Diwas: बलिदान को नमन व प्रेरणा लेने का दिन सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद  सिंह के पुत्रों का स्मरण आते ही हमारा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है, और मस्तक श्रद्धा से झुक जाता है। गुरु गोविंद सिंह भारत की आत्मा का प्रतिनिधित्व करने वाले उन महानायकों में से हैं जिन्होंने हमारे लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया। सिख इतिहास शहीदियों की लाजवाब मिसाल है। 26 दिसंबर को गुरु गोविंद सिंह के चार पुत्रों "

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अटलजी कहीं गये नहीं हैं, वह हम भारतीयों के मन में सदैव अटल हैं
Column अटलजी कहीं गये नहीं हैं, वह हम भारतीयों के मन में सदैव अटल हैं

अटलजी कहीं गये नहीं हैं, वह हम भारतीयों के मन में सदैव अटल हैं आज श्रद्धेय अटल जी का जन्मदिन है। महापुरुषों को अक्सर उनके जयंती या पुण्यतिथि पर याद किया जाता है लेकिन अटलजी ऐसी शख्सियत हैं जिन्हें देश हर रोज याद करता है। उनके आदर्शों और उनके द्वारा सिखाई गयी बातों और उनके सिद्धांतों का रोजाना किसी ना किसी बात में उदाहरण दिया जाता है। इसलिए अटलजी कहीं गये नहीं वह तो हमारे बीच में सदैव अटल हैं। देखा जाये तो राष्ट्र हित को हमेशा पहली प्राथमिकता मानते हुए राजनीति करने वाले भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी जैसे नेता हमारे देश में विरले ही हुए हैं। श्रद्धेय अटलजी को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भले 2015 में मिला हो लेकिन वह तो अपने आरम्भ काल से ही भारतीयों के दिलों में बसते हैं। हर भारतीय उन्हें आरम्भ काल से ही भारत रत्न मानता था।

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कोरोना से लड़ाई में एक गलती भी पड़ सकती है भारी, सावधान रहकर ही वायरस को हराया जा सकता है
Column कोरोना से लड़ाई में एक गलती भी पड़ सकती है भारी, सावधान रहकर ही वायरस को हराया जा सकता है

कोरोना से लड़ाई में एक गलती भी पड़ सकती है भारी, सावधान रहकर ही वायरस को हराया जा सकता है चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ब्राजील, अमेरिका सहित कई देशों में कोरोना के नये वेरिएंट के मामलों और उससे हुई मौतों के मामलों में लगातार बढ़ोतरी देखी जा रही है। भारत में भी चीन में तबाही लाने वाले एवं भयंकर तबाही की आहट देने वाले बेरिएंट बीएफ.

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राष्ट्रवादी विचारधारा विकास की वाहक है जबकि वामपंथी विचारधारा विनाश की
Column राष्ट्रवादी विचारधारा विकास की वाहक है जबकि वामपंथी विचारधारा विनाश की

राष्ट्रवादी विचारधारा विकास की वाहक है जबकि वामपंथी विचारधारा विनाश की 1965 में सिंगापुर के प्रथम प्रधानमन्त्री ली कुवान यू ने कहा ‘मैं सिंगापुर को कलकत्ता बनाना चाहता हूं।’ इन्हीं साहब ने 2007 में अपने पुत्र से कहा ‘बेटा, थोड़ी लापरवाही हुई तो सिंगापुर को कलकत्ता बनने में देर न लगेगी।’ आखिर क्या हुआ 1965 और 2007 के बीच?

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राहुल गांधी ने हिंदी के बारे में जो कहा उससे उनकी अंग्रेजी-भक्ति प्रदर्शित हो गयी
Column राहुल गांधी ने हिंदी के बारे में जो कहा उससे उनकी अंग्रेजी-भक्ति प्रदर्शित हो गयी

राहुल गांधी ने हिंदी के बारे में जो कहा उससे उनकी अंग्रेजी-भक्ति प्रदर्शित हो गयी राजस्थान में राहुल गांधी ने अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई की जमकर वकालत कर दी। राहुल ने कहा कि भाजपा अंग्रेजी की पढ़ाई का इसलिए विरोध करती है क्योंकि वह देश के गरीबों, किसानों, मजदूरों और ग्रामीणों के बच्चों का भला नहीं चाहती है। भाजपा के नेता अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में क्यों पढ़ाते हैं?

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मोहन भागवत ने भारत के विकास की जो अवधारणा बताई, उसी पर आगे बढ़ना होगा
Column मोहन भागवत ने भारत के विकास की जो अवधारणा बताई, उसी पर आगे बढ़ना होगा

मोहन भागवत ने भारत के विकास की जो अवधारणा बताई, उसी पर आगे बढ़ना होगा भारत दुनिया की एक उभरती हुई सशक्त आर्थिक व्यवस्था है, विकास के नये आयाम उद्घाटित करते हुए भारत ने दुनिया को चौंकाया है, अचंभित किया है। भारत की विकास अवधारणा न केवल आर्थिक संवृद्धि से जुड़ी है, अपितु यह एक सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक प्रक्रिया है जो लोगों को जीवन की मुख्यधारा में शामिल होने के लिए अभिप्रेरित करती है और विकास प्रक्रिया में उन्हें सहभागी बनाती है। यह विकास अंततः आत्मनिर्भरता, समानता, न्याय एवं संसाधनों का एकसमान वितरण को बल देती है जो राष्ट्रीयता एवं लोकतंत्र की मजबूती का भी आधार है। भारत के वर्तमान विकास को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके संघ प्रमुख मोहन भागवत निरंतर जागरूक हैं एवं अपने विचारों से यह विकास कहीं भटक न जाये, उसके लिये चेताते रहते हैं। हाल ही में उन्होंने मुम्बई में यह बयान देकर भारत के जन-जन को अभिप्रेरित किया है कि इस देश का विकास अमेरिका या चीन की तर्ज पर नहीं हो सकता बल्कि इसका विकास भारतीय दर्शन और इसकी संस्कृति तथा सकल संसार के बारे में इसके सुस्थापित विचारों के अनुरूप ही किया जा सकता है। देश के विकास की प्राथमिक आवश्यकता है कि गरीब का संबोधन मिटे। गरीबी एवं अमीरी के बीच का दूरियों को समाप्त किया जाये। प्रकृति एवं पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़े। संघ एक समतामूलक संतुलित समाज व्यवस्था का पोषक है। तभी वह गांव का विकास चाहता हैं और तभी ग्राम आधारित अर्थ-व्यवस्था को विकसित होते हुए देखना चाहता है।

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