हज यात्रा के लिए वीआईपी कोटा खत्म कर मोदी ने मुस्लिमों को बड़ी सौगात दी है
Politics हज यात्रा के लिए वीआईपी कोटा खत्म कर मोदी ने मुस्लिमों को बड़ी सौगात दी है

हज यात्रा के लिए वीआईपी कोटा खत्म कर मोदी ने मुस्लिमों को बड़ी सौगात दी है हज जाने वालों के लिए केंद्र सरकार ने बड़ा निर्णय लिया है। उसने 2012 से शुरू हुआ हज यात्रियों का वीआईपी कोटा खत्म कर दिया। इस कोटे में पांच हजार सीट सुरक्षित की हुईं थी। कोटे के खत्म हो जाने पर  अब हज जाने वालों को पांच हजार सीट और उपलब्ध होंगी। अब वीआईपी कोटे की सीटों को भी आम मुस्लिम को सीधे आवंटित किया जाएगा। केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री स्मृति ईरानी ने इस बात की पुष्टि की है कि प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, अल्पसंख्यक मंत्री के साथ-साथ हज कमेटी को आवंटित हज यात्रियों के लिए आरक्षित किये गए सभी वीआईपी कोटे को खत्म कर दिया गया है। साल 2012 में 5000 सीटें वीआईपी के लिए आरक्षित की गई थीं।

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जिन तालिबानियों को पाकिस्तान ने धन और गन देकर पाला, आज वही उसका जीना मुहाल किये हैं
Politics जिन तालिबानियों को पाकिस्तान ने धन और गन देकर पाला, आज वही उसका जीना मुहाल किये हैं

जिन तालिबानियों को पाकिस्तान ने धन और गन देकर पाला, आज वही उसका जीना मुहाल किये हैं तालिबान को अफगानिस्तान की बागडोर संभाले हुए एक साल से ज्यादा हो गया है। लेकिन अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच सीमा पर तनाव अभी तक सुलझा नहीं है। एक तरफ अफगानिस्तान तालिबान ने पाकिस्तान की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं तो दूसरी ओर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने भी पाकिस्तानियों का जीना हराम कर दिया है। हम आपको याद दिला दें कि साल 2022 में अफगान-पाक सीमा पर शत्रुता इतनी बढ़ गयी थी कि पाकिस्तान का जीना उन्हीं तालिबानियों ने मुहाल कर दिया जिन्हें धन और गन देकर पाकिस्तान ने पाला था। इस विवाद का बड़ा कारण डूरंड रेखा को माना गया। अफगान तालिबान सीमा पर यथास्थिति में किसी भी 'एकतरफा' बदलाव को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। उधर पाकिस्तान भी पीछे हटने को तैयार नहीं है।

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Rahul Gandhi की पीएम उम्मीदवारी की राह में खड़े हो सकते हैं कई क्षेत्रीय दल
Politics Rahul Gandhi की पीएम उम्मीदवारी की राह में खड़े हो सकते हैं कई क्षेत्रीय दल

Rahul Gandhi की पीएम उम्मीदवारी की राह में खड़े हो सकते हैं कई क्षेत्रीय दल बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने खुद को प्रधानमंत्री की दावेदारी से अलग कर लिया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी के लिए नीतिश ने कहा कि यदि राहुल का नाम प्रधानमंत्री के लिए आगे आता है तो उन्हें कोई ऐतराज नहीं है। सवाल यह है कि नीतिश कुमार ने तो मान लिया पर क्या सारे विपक्षी दल राहुल गांधी को आगामी लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद का अपना संयुक्त उम्मीदवार बनाने पर सहमत हो सकते हैं। राहुल गांधी ने भी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान परोक्ष तौर पर ऐसी ही मंशा जाहिर की थी। राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस ही एक मात्र पार्टी है जिसका देशव्यापी नेटवर्क है। समाजवादी पार्टी का नाम लेते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा कि क्या इस पार्टी की पॉलिसी केरल-कर्नाटक में लागू होती हैं। उन्होंने कहा कि केवल कांग्रेस ही एकमात्र पार्टी है, जिसकी राष्ट्रव्यापी नीतियां और नेटवर्क है। राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान विपक्षी दलों से एकजुटता का आहवान किया। इस आह्वान के पीछे राहुल गांधी की मंशा आगामी लोकसभा चुनाव में संयुक्त विपक्षी दल के प्रधानमंत्री के तौर पर अपनी उम्मीदवारी पेश करना है। क्षेत्रीय दलों के लिए राहुल की स्वीकार्यता आसान नहीं है। विपक्षी दलों का यह प्रयास यदि सफल हो भी जाता है, तब भी इसकी हालत भानुमति के कुनबे जैसी होगी। इन दलों के प्रमुखों का ख्वाब भी प्रधानमंत्री की दावेदारी के रूप में उभर कर आ सकता है। यही वजह है कि नीतिश के अलावा किसी भी क्षेत्रीय दल ने अभी तक राहुल गांधी के नाम को आगे नहीं बढ़ाया है। विपक्षी दलों की तस्वीर अभी स्पष्ट नहीं है। राहुल की भारत जोड़ो यात्रा से क्षेत्रीय दलों ने दूरी बनाए रखी। हर दल के प्रमुख ने कोई न कोई बहाना बना कर राहुल और कांग्रेस को इस यात्रा का श्रेय देने से बचने का प्रयास किया।

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विधानसभा चुनावों में गेम चेंजर साबित हो सकती हैं गहलोत सरकार की योजनाएं
Politics विधानसभा चुनावों में गेम चेंजर साबित हो सकती हैं गहलोत सरकार की योजनाएं

विधानसभा चुनावों में गेम चेंजर साबित हो सकती हैं गहलोत सरकार की योजनाएं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी सरकार का आखिरी बजट पेश करने की तैयारी कर रहे हैं। इसी साल प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने हैं। इस लिहाज से इस बार के बजट को गहलोत खुद गेम चेंजर मान रहे हैं। मुख्यमंत्री गहलोत कहते हैं कि राजस्थान में इस बार एंटी-इनकम्बेंसी नहीं प्रो-एफिसिएंसी है। इसी के चलते कांग्रेस प्रदेश का 30 साल पुराना हर बार सत्ता बदलने का इतिहास बदलेगी। सरकारी योजनाओं से जनता बहुत खुश है। इसका सबूत है राजस्थान में हुए नौ उपचुनाव जिनमें कांग्रेस ने सात में जीत हासिल की है।

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छत्तीसगढ़ का आदिवासी समुदाय हमेशा से ईसाई मिशनरियों का निशाना रहा है
Politics छत्तीसगढ़ का आदिवासी समुदाय हमेशा से ईसाई मिशनरियों का निशाना रहा है

छत्तीसगढ़ का आदिवासी समुदाय हमेशा से ईसाई मिशनरियों का निशाना रहा है छत्तीसगढ़ राज्य का बस्तर संभाग विशेषतः नारायणपुर जिला पुनः अस्थिर, अशांत और अनमना-सा है। सदा की तरह कारण वही है, धर्मांतरण!

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देवभूमि उत्तराखंड का सिस्टम पुरानी आपदाओं से सबक नहीं लेकर नयी मुसीबत को निमंत्रण देता है
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देवभूमि उत्तराखंड का सिस्टम पुरानी आपदाओं से सबक नहीं लेकर नयी मुसीबत को निमंत्रण देता है जगत गुरु शंकराचार्य की तपो भूमि जोशीमठ आज भू-धंसाव के बड़े खतरे के मुहाने पर आ गया है। देश के भू विज्ञानी इसका कारण जाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। वैसे देश के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न प्रकार की छोटी व बड़ी विकास परियोजनाएं चल रही हैं, लेकिन उनमें से वास्तव में बहुत ही कम परियोजनाएं ऐसी होंगी जिसमें प्रकृति के साथ पूरी तरह से सामंजस्य बनाकर के कार्य किया गया हो। हर तरफ अंधाधुंध अव्यवस्थित विकास की अंधी दौड़ में हम व हमारे देश का सिस्टम प्रकृति के साथ कदम ताल मिलाते हुए सामंजस्य बिठाकर कार्य करना भूलता जा रहा है। हालांकि समय-समय पर प्रकृति निरंतर चेतावनी भी देती रहती है, लेकिन फिर भी ना जाने क्यों हम लोगों के व हमारे देश के सिस्टम के कानों पर जूं नहीं रेंगती है।

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BJP ने जैसे गुजरात में रिकॉर्ड बनाया, उसी तरह 2024 के चुनाव में यूपी में जीत का रिकॉर्ड बनाने की तैयारी
Politics BJP ने जैसे गुजरात में रिकॉर्ड बनाया, उसी तरह 2024 के चुनाव में यूपी में जीत का रिकॉर्ड बनाने की तैयारी

BJP ने जैसे गुजरात में रिकॉर्ड बनाया, उसी तरह 2024 के चुनाव में यूपी में जीत का रिकॉर्ड बनाने की तैयारी भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता और गृह मंत्री अमित शाह किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। शाह लम्बे समय से मोदी के रणनीतिकार और विश्वास पात्र बने हुए हैं। मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री बनने से लेकर देश के प्रधानमंत्री बनने तक के सफर में अमित शाह के योगदान को नहीं भुलाया जा सकता है। 2014 में जब भारतीय जनता पार्टी ने प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर नरेन्द्र मोदी के नाम पर मुहर लगाई तो मोदी ने सबसे पहले देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी अमित शाह पर डाली। 2014 के आम चुनाव में अमित शाह को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाकर यूपी भेजा गया। अमित शाह ने ऐसी गोटियां बिछाईं कि विपक्ष चारों खाने चित हो गया। फिर आया 2019 का आम चुनाव। उस समय अमित शाह भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। वैसे तो अमित शाह का राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यकाल जुलाई 2018 में समाप्त हो रहा था, परंतु आम चुनाव की वजह से उनका कार्यकाल एक वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया था। 2019 के आम चुनाव में भी बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया, हाँ कुछ सीटें जरूर कम हुई थीं, लेकिन इतनी भी नहीं कि मोदी पीएम नहीं बन पाते। इस बीच 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी अमित शाह की रणनीति के चलते भारतीय जनता पार्टी की सरकार बन पाई थी। 2022 का यूपी विधानसभा चुनाव भले ही बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के नेतृत्व में लड़ा गया था, लेकिन इन चुनावों में भी मोदी और अमित शाह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। राजनीति के जानकार अमित शाह को राजनीति का चाणक्य बताने लगे थे।    बहरहाल, 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद अमित शाह की यूपी से दूरी बढ़-सी गई। उनका यहां आना कम हो गया, लेकिन जैसे ही 2024 लोकसभा चुनाव की आहट सुनाई दी, अमित शाह को एक बार फिर यूपी की जिम्मेदारी सौंप दी गई है। भले ही औपचारिक रूप से इसकी घोषणा नहीं हुई हो, शाह को कोई पद नहीं दिया गया हो, लेकिन 2024 के आम चुनाव में भी अमित शाह यूपी के लिए सियासी बिसात बिछाते नजर आएंगे। यूपी में लोकसभा की 80 सीटें हैं, यूपी के बारे में कहा जाता है कि यहीं से दिल्ली की सत्ता का रास्ता जाता है।

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मंद पड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करके नया इतिहास रचेगा भारत
Politics मंद पड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करके नया इतिहास रचेगा भारत

मंद पड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करके नया इतिहास रचेगा भारत अभी हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक फण्ड (आईएमएफ) ने बताया है कि वर्ष 2023 में वैश्विक स्तर पर विशेष रूप से चीन, अमेरिका एवं यूरोपीयन यूनियन से प्राप्त हो रहे आर्थिक क्षेत्र से सम्बंधित संकेतों के अनुसार इन देशों सहित विश्व की एक तिहाई अर्थव्यवस्थाओं पर मंदी का असर दिखाई दे सकता है। हालांकि रूस यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध भी वैश्विक स्तर पर मंदी लाने में अहम भूमिका निभाता नजर आ रहा है।    पिछले 40 वर्षों में पहली बार वर्ष 2022 में चीन की आर्थिक विकास दर वैश्विक स्तर पर होने वाली सम्भावित आर्थिक विकास दर के बराबर अथवा उससे भी कम रहने की संभावना व्यक्त की जा रही है। इसके अलावा, आगे आने वाले समय में कोविड संक्रमणों का एक नया दौर चीन की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है जिसका सीधा असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी होता नजर आएगा। इसी प्रकार यूरोपीयन यूनियन देशों में कई उपाय करने का बावजूद मुद्रास्फीति नियंत्रण में नहीं आ पा रही है और इन देशों में ब्याज दरें लगातार बढ़ाई जा रही हैं जिससे मंदी की सम्भावना इन देशों में भी बढ़ गई है। हालांकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था भी मुद्रास्फीति एवं लगातार बढ़ती ब्याज दरों के बीच अपने बुरे दौर से गुजर रही है परंतु वहां पर श्रम बाजार में अभी भी काफी मजबूती दृष्टिगोचर है जिसके कारण अमेरिका में यदि मंदी आती भी है तो वह बहुत कम समय के लिए ही होगी। इस प्रकार अमेरिका मंदी की मार से बच सकता है। रूस पहले से ही यूक्रेन युद्ध के चलते आर्थिक क्षेत्र में अपने बहुत बुरे दौर से गुजर रहा है। जापान की आर्थिक विकास दर भी बहुत अच्छी नहीं हैं। कुल मिलाकर विश्व की सबसे बड़ी 5 अर्थव्यवस्थाओं में भारत ही एकमात्र एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जो आर्थिक विकास दर के मामले में संतोषजनक प्रगति करता नजर आ रहा है।

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नोटबंदी को तो मतदाता ने 2019 के आम चुनाव में ही वैध ठहरा दिया था
Politics नोटबंदी को तो मतदाता ने 2019 के आम चुनाव में ही वैध ठहरा दिया था

नोटबंदी को तो मतदाता ने 2019 के आम चुनाव में ही वैध ठहरा दिया था सर्वोच्च न्यायालय की पांच जजों की संविधान पीठ ने बहुमत से केंद्र सरकार के नोटबंदी के जिस निर्णय अब वैध ठहराया, उसे तो देश की जनता 2019 के चुनाव में वैध करार दे चुकी थी। नोटबंदी का निर्णय  आठ नवंबर 2016 को लिया गया। इसके तहत पांच सौ और एक हजार के नोट बंद करने की केंद्र सरकार की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर की रात आठ बजे की। इस घोषणा के साथ ही इन बंद हुए नोट को बदलने के लिए 52 सप्ताह का समय भी दिया गया। नोटबंदी को लेकर विपक्ष ने खूब हंगामा किया। मीडिया ने भी जनता की परेशानी को लेकर खूब खबरें कीं। बैंकों के बाहर लगी जनता की लंबी−लंबी लाइन को खूब छापा। इसके बाद 2019 में आम चुनाव हुआ। मीडिया और विपक्ष का कहना था कि नोट बंदी से जनता, व्यापारी और आम आदमी को बड़ी परेशानी हुई, किंतु इस चुनाव में जनता ने भाजपा को 2014 के चुनाव से ज्यादा वोट दिए। ज्यादा सीटें दीं। 2014 के लोकसभा चुनाव में 336 सीटों के साथ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सबसे बड़ा गठबंधन और 282 सीटों के साथ भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। वहीं 2019 के चुनाव में भाजपा ने 303 सीटों पर जीत हासिल की और अपने पूर्ण बहुमत बनाये रखा और भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 353 सीटें जीतीं। इस चुनाव में अकेले भाजपा को 21 सीट ज्यादा मिली। भाजपा नीत गठबधंन को 2014 से 17 सीटें ज्यादा मिलीं। भाजपा ने 37.

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Millet Year 2023 में पूरी दुनिया में बजेगा भारत के मोटे अनाज का डंका
Politics Millet Year 2023 में पूरी दुनिया में बजेगा भारत के मोटे अनाज का डंका

Millet Year 2023 में पूरी दुनिया में बजेगा भारत के मोटे अनाज का डंका एक जनवरी 2023 से अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष आरम्भ हो गया है इसके फलस्वरूप सभी घरों की थालियों से गायब हो चुके मोटे अनाज के दिन फिर से बहुरने वाले हैं। मोटा अनाज और उनकी कृषि को प्रोत्साहन देने के लिए स्वयं प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भारत सरकार ने कमर कस ली है। भारत इस वर्ष शंघाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (एससीओ) तथा जी-20 जैसे अंतरराष्ट्रीय समूहों की अध्यक्षता कर रहा है। देश के 55 शहरों में जी-20 सम्मेलन होने जा रहे हैं इसके अतिरिक्त भी इस वर्ष कई मेगा इवेंट देश में होने जा रहे हैं। मोटे अनाज को प्रोत्साहन देने के लिए इन अवसरों का भरपूर लाभ लिया जायेगा। सभी सम्मेलनों में कृषि मंत्रालय व खाद्य मंत्रालय तथा राज्य सरकारों के सहयोग से मोटे अनाजों से बने उत्पादों का ही प्रदर्शन किया जायेगा व देश विदेश से आ रहे सभी अतिथियों को मोटे अनाज से बने व्यंजन परोसे जाएंगे जिससे उनका डंका विश्व भर में बजना तय हो गया है।

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जब भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कांग्रेस को इतने झटके लग गये, तो यात्रा खत्म होने के बाद क्या होगा?
Politics जब भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कांग्रेस को इतने झटके लग गये, तो यात्रा खत्म होने के बाद क्या होगा?

जब भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कांग्रेस को इतने झटके लग गये, तो यात्रा खत्म होने के बाद क्या होगा?

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MP में कांग्रेस का आंतरिक सर्वे पार्टी की हार दर्शा रहा है और राहुल जीत की भविष्यवाणी कर रहे हैं!
Politics MP में कांग्रेस का आंतरिक सर्वे पार्टी की हार दर्शा रहा है और राहुल जीत की भविष्यवाणी कर रहे हैं!

MP में कांग्रेस का आंतरिक सर्वे पार्टी की हार दर्शा रहा है और राहुल जीत की भविष्यवाणी कर रहे हैं!

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2023 तय करेगा कि 2024 का मुकाबला मोदी बनाम केजरीवाल होगा या नहीं
Politics 2023 तय करेगा कि 2024 का मुकाबला मोदी बनाम केजरीवाल होगा या नहीं

2023 तय करेगा कि 2024 का मुकाबला मोदी बनाम केजरीवाल होगा या नहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए साल 2022 काफी सफलताएं लेकर आया। आम आदमी पार्टी के प्रमुख के रूप में उन्होंने पंजाब विधानसभा चुनावों में धुआंधार प्रचार किया और जनता ने वहां भी एक मौका केजरीवाल को दे दिया। कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल के धुरंधर नेताओं को मात देते हुए जिस तरह पंजाब विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने ऐतिहासिक जीत हासिल करते हुए नया इतिहास रचा उसने एक दशक पुरानी इस पार्टी को राष्ट्रीय क्षितिज पर ला खड़ा किया। यही नहीं, गोवा विधानसभा चुनावों में भाजपा, कांग्रेस और स्थानीय पार्टियों के अलावा तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जैसे राज्य से बाहर के दल भी मैदान में थे। तृणमूल ताकती रह गयी और आम आदमी पार्टी खाता खोलने में सफल रही।

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आगामी वर्ष-2023 में उत्तर प्रदेश में बहेगी विकास और निवेश की गंगा
Politics आगामी वर्ष-2023 में उत्तर प्रदेश में बहेगी विकास और निवेश की गंगा

आगामी वर्ष-2023 में उत्तर प्रदेश में बहेगी विकास और निवेश की गंगा वर्ष-2023 उत्तर प्रदेश के विकास और निवेश के लिए एक मील का पत्थर साबित होने जा रहा है। फरवरी में आयोजित होने जा रही इन्वेस्टर्स समिट के माध्यम से इस वर्ष आने वाले अभूतपूर्व निवेश से जहाँ प्रदेश के युवाओं को विविध क्षेत्रों में रोजगार के नये अवसर उपलब्ध होंगे वहीं किसानों की आय भी बढ़ने जा रही है। भारत को जी-20 की अध्यक्षता मिलने के बाद प्रदेश के चार प्रमुख शहरों में भी इस समूह के देश के विभिन्न मंत्रियों व अधिकारियों की बड़ी बैठकें होने जा रही है। ऐसे में प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के नेतृत्व में प्रदेश सरकार निवेशकों व पर्यटकों को आकर्षित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ना चाहती और उसका मास्टर प्लान भी तैयार हो चुका है। आगामी वर्ष 2023 में प्रदेश में कई मेगा इवेंट होने जा रहे हैं। खेलो इंडिया मूवमेंट का आयोजन करने का दायित्व भी प्रदेश को मिला है।

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Kashi-Mathura: भाजपा के एजेंडे से दूर काशी-मथुरा लेकिन दिल के है करीब
Politics Kashi-Mathura: भाजपा के एजेंडे से दूर काशी-मथुरा लेकिन दिल के है करीब

Kashi-Mathura: भाजपा के एजेंडे से दूर काशी-मथुरा लेकिन दिल के है करीब अयोध्या में रामलला का भव्य मंदिर निर्माण का कार्य युद्ध स्तर पर चल रहा है। 2023 में इसके पूरा हो जाने की भी उम्मीद लगाई जा रही है, लेकिन अभी काशी-मथुरा का विवाद बना हुआ है। उम्मीद तो यही है कि अयोध्या की तरह काशी-मथुरा मामले में भी हिन्दू पक्षकारों को न्याय मिलेगा। क्योंकि यह तीन स्थान (अयोध्या-मथुरा-काशी) हिन्दुओं के आस्था के सबसे बड़े धार्मिक प्रतीक हैं। किसी को भले ही यह धार्मिक स्थल तीन शहरों के नाम जैसे लगते हों, लेकिन रामलला, भोलेनाथ और भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों के लिए लिए यह स्थान उनका (भक्तों के लिए) सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है। यह वह तीन देव स्थान हैं, जिसको मुगल काल में काफी नुकसान पहुंचाया गया था और जिसे पाने के लिए हिन्दू समाज लम्बे समय से नहीं कई सदियों से कोर्ट से लेकर सड़क तक पर ‘जंग’ लड़ रहा था। मगर तुष्टीकरण की राजनीति के चलते उसे हर तरह से तिरस्कार और अपमान मिल रहा था। कोई भी राजनैतिक दल हिन्दुओं के आस्था के इन प्रतीकों को उन्हें वापस दिलाने के लिए कोई कोशिश तो कर ही नहीं रहा था,बल्कि अड़ंगे भी लगा रहा था। अपवाद के रूप में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) एवं भारतीय जनता पार्टी जरूर हिन्दू पक्ष के साथ खड़ी नजर आती थीं, लेकिन उसने भी अयोध्या में प्रभु रामलला के मंदिर के लिए संघर्ष करने के अलावा काशी-मथुरा से अपने आप को दूर ही रखा था। बीजेपी और आरएसएस ने काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा ईदगाह विवादों से दूरी तो बनाए रखी, लेकिन उसने अपनी इमेज इस तरह की जरूर बनाए रखी जैसे वह काशी-मथुरा की ‘लड़ाई में भी हिन्दुओं के साथ खड़ी हो। क्योंकि जब भी उसके नेताओ से काशी-मथुरा के विवाद की बात की जाती तो उसके, “सच्चाई सामने आनी चाहिए” और “लोगों को अदालत में जाने से नहीं रोका जा सकता” के बयानों को छोड़कर, संगठनात्मक स्तर पर दोनों सीधे मामलों में उलझने से परहेज करते रहे। हालाँकि, 1950 के दशक से काशी संघ परिवार की मुख्य चिंताओं में से एक रहा है। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि वास्तव में मथुरा-काशी विवाद अयोध्या-राम जन्मभूमि मुद्दे से भी पुराना है। आरएसएस ने पहली बार 1959 में अपनी अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा (एबीपीएस) बैठक में काशी विश्वनाथ पर एक प्रस्ताव पारित किया था। अयोध्या पर एक प्रस्ताव 1987 में ही आया था।

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Birthday Special: संसदीय राजनीति के शिखर पुरुष भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी
Politics Birthday Special: संसदीय राजनीति के शिखर पुरुष भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी

Birthday Special: संसदीय राजनीति के शिखर पुरुष भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी बहुआयामी प्रतिभा के धनी और विशाल व्यक्तित्व वाले भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति में अजातशत्रु के नाम से स्मरणीय रहेंगे। उनके विराट राजनीतिक व्यक्तित्व और कृतित्व की चर्चा स्वतंत्र भारत के इतिहास के हर मोड़ पर खूब होती है और होती ही रहेगी। भारत की संसदीय राजनीति के वे आधार स्तंभ और शिखर पुरुष थे, जिनके इर्दगिर्द संसदीय इतिहास घूम रहा है। उनका संसदीय कार्यकाल उनके व्यक्तित्व का अनुपम अध्याय था। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और यहां की संसदीय शासन व्यवस्था में संसद सर्वोच्च है। भारतीय संसद की जब भी चर्चा होती है, उसके इतिहास को टटोला जाता है तो इसमें यदि किसी एक व्यक्तित्व का नाम हर भारतीय और राजनीतिज्ञ के मानस पटल पर उभरता है, वह नाम है श्रद्धेय अटलजी का, जिन्हें संसदीय राजनीति का शिखर पुरुष कहा जाता है। लोकसभा हो या राज्यसभा, सत्ता में रहे हों या विपक्ष में, उनका संसदीय कार्यकाल सदैव स्मरणीय रहेगा। एक सांसद के रूप में संसद के दोनों सदनों में इनके वक्तव्य को गंभीरता से सुना जाता था। संसदीय मर्यादा का पाठ लोग उनसे सीखते थे। विपक्ष के नेता के रूप में सरकार को सचेत करते हुए लोकतंत्र में विपक्ष की अहमियत और उसकी सीमा का पाठ पढ़ाया। विचारों, नीतियों और सिद्धांतों के आधार पर मुखर विरोध करने में आगे रहे तो आवश्यकता पड़ने पर देशहित में सरकार को सकारात्मक सहयोग करने में भी पीछे नहीं रहे। 1967 से 1970 एवं 1991 से 1993 तक  संसद की सबसे महत्वपूर्ण समिति लोकलेखा समिति के अध्यक्ष रहे। 1991-92 में देश की अर्थव्यवस्था जब लड़खड़ा गई थी, उस समय लोकलेखा समिति के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने राजनीति से ऊपर उठकर देशहित में सरकार को समुचित सुझाव दिया। 1993 से 1996 तक लोकसभा में विपक्ष के नेता के रूप में अंतर्राष्ट्रीय मंच पर देश का प्रतिनिधित्व करते हुए सरकार का सहयोग किया। इसके साथ ही अटलजी अपने संसदीय कार्यकाल में संसद की प्रमुख समितियों के सदस्य या अध्यक्ष के रूप में लोकतंत्र और संसदीय परंपरा को मजबूत करने में जो महत्वपूर्ण योगदान दिया, उसे भारतीय संसद और देश कभी भूल नहीं सकता है। 1966-67 में सरकारी आश्वासनों समिति और 1990-91 में याचिका समिति के अध्यक्ष रहे। 1993-96 तथा 1997-98 में विदेशी मामलों के स्थायी के अध्यक्ष रहे। उनके संसदीय व्यवहार को सभी दलों के नेताओं ने भी स्वीकार किया। संसदीय व्यवस्था में विपक्ष की राजनीति करते हुए उन्होंने आदर्श तो स्थापित किया ही, सत्ता में आने पर भी लोकतंत्र और संसद की गरिमा की रक्षा करना उनकी प्राथमिकता रही। 1994 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद तथा पंडित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 

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लोकसभा चुनाव से पहले अति पिछड़ों को साधने के लिए मायावती ने बिछाया राजनीतिक जाल
Politics लोकसभा चुनाव से पहले अति पिछड़ों को साधने के लिए मायावती ने बिछाया राजनीतिक जाल

लोकसभा चुनाव से पहले अति पिछड़ों को साधने के लिए मायावती ने बिछाया राजनीतिक जाल बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने उत्तर प्रदेश बसपा की कमान अपने एक अति पिछड़े नेता को सौंप कर अति पिछड़ों की सियासत को एक बार फिर से गरमा दिया है। पिछड़ों में अति पिछड़ा कि सियासत काफी पुरानी है। ठीक वैसे ही जैसे दलितों और पिछड़ों के आरक्षण कोटे में अति पिछड़ा और अति दलितों को अलग से कोटे में कोटे की बात होती है। अति दलितों और अति पिछड़ों की सियासत से कोई भी दल बच नहीं पाया। चाहे भाजपा हो, सपा हो अथवा कांग्रेस-बसपा, सभी समय-समय पर इस सियासत में हाथ पैर मारते रहे हैं। जून 2019 में अपने पहले कार्यकाल में योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश की 17 अति-पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति के प्रमाणपत्र जारी करने का आदेश जारी किया था, जोकि इलाहबाद हाई कोर्ट के अखिलेश यादव सरकार द्वारा 17 अति–पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के आदेश पर लगे स्टे के हट जाने के परिणामस्वरूप जारी किया गया है। जबकि इसमें इस मामले के अंतिम निर्णय के अधीन होने की शर्त लगायी गयी थी।

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अखिलेश और शिवपाल एकजुट होकर समाजवादी पार्टी की किस्मत पलटने में लगे हैं
Politics अखिलेश और शिवपाल एकजुट होकर समाजवादी पार्टी की किस्मत पलटने में लगे हैं

अखिलेश और शिवपाल एकजुट होकर समाजवादी पार्टी की किस्मत पलटने में लगे हैं समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव काफी बदले-बदले नजर आ रहे हैं। हाल फिलहाल तक जो अखिलेश किसी की नाराजगी की चिंता नहीं करते थे, अब वह अपना परिवार और ‘कुनबा‘ बचाने के लिए जद्दोजहद करते नजर आ रहे हैं। सपा की खोई हुई ताकत हासिल करने के लिए रूठों को मनाया जा रहा है तो बिछड़ों को पार्टी में वापस बुलाया जा रहा है। लम्बे समय के बाद चाचा शिवपाल यादव एक बार फिर भतीजे अखिलेश के खेवनहार बन गए हैं। उनका चाचा के प्रति विश्वास जगा तो मैनपुरी लोकसभा और खतौली विधान सभा सीट सपा के खाते में आ गई। खतौली विधानसभा सीट पर 2022 में बीजेपी से विक्रम सिंह सैनी विधायक चुने गए थे, जिनकी मुजफ्फरनगर दंगों में सजा मिलने के बाद विधानसभा सदस्यता रद्द हो गई थी। खतौली विधानसभा सीट पर उपचुनाव में बीजेपी ने विक्रम सिंह सैनी के परिवार पर ही भरोसा जताया था और उनकी पत्नी राजकुमारी सैनी को मैदान में उतारा था। राजकुमारी सैनी का सामना सपा-रालोद गठबंधन प्रत्याशी मदन भैया से हुआ था और उन्हें मदन भैया से करीब 23 हजार वोटों से हार का मुंह देखना पड़ा। अखिलेश यादव ने खतौली विधानसभा सीट राष्ट्रीय लोक दल को देकर एक बार फिर जयंत चौधरी पर भरोसा जताया था, जिस पर वह खरे उतरे। इसके बाद से सपा-रालोद गठबंधन के बीच का विश्वास बढ़ गया है। यह और बात है कि सपा नेता आजम खान के गढ़ रामपुर में सपा प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा।  बात मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव की कि जाए तो सपा प्रत्याशी डिंपल यादव की जीत के बाद अखिलेश यादव 2024 के आम चुनाव को लेकर उत्साहित नजर आ रहे हैं। चाचा शिवपाल के बीच दूरियां मिटने के बाद चाचा के कहने पर अखिलेश यादव अब पार्टी के असंतुष्टों और पूर्व सहयोगियों को फिर से साथ लाने में लग गए हैं। ऐसे कयास भी लगाए जा रहे हैं कि सपा अगर उत्तर प्रदेश के स्थानीय निकाय चुनावों में ठीक-ठाक प्रदर्शन करती है तो साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले कुछ भाजपा विरोधी दल सपा के पीछे लामबंद हो सकते हैं। मैनपुरी उपचुनाव में डिंपल की जबरदस्त जीत के बाद बदायूं के पूर्व विधायक आबिद रजा जहां पार्टी में दोबारा शामिल हो गए, वहीं सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने सपा के प्रति अपने तेवर में नरमी के संकेत देते हुए कहा, “शिवपाल सिंह यादव पहल करेंगे तो हमारी सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से फिर से बातचीत हो सकती है।”इसे भी पढ़ें: उत्तर प्रदेश में 'छोटी सरकार' बनाने के लिए बड़ी-बड़ी तैयारी कर रहे हैं सभी राजनीतिक दलबहरहाल, राजनीतिक विश्लेषकों को लगता है कि मैनपुरी उपचुनाव और यादव परिवार की एकजुटता ने भाजपा के समानांतर भविष्य तलाशने वालों की उम्मीद जगा दी है और अगर सपा ने निकाय चुनावों में ठीक-ठाक प्रदर्शन किया तो लोकसभा चुनावों के लिए छोटे दल फिर सपा के साथ आने को आतुर होंगे। इसके लिए सबसे पहले अखिलेश और शिवपाल की निकटता को निकाय चुनाव की कसौटी पर खरा उतरना होगा और इस चुनाव के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव की भी दिशा तय हो जाएगी। गौरतलब है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में सुभासपा, महान दल, अपना दल (कमेरावादी) और जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) जैसे छोटे दलों ने सपा नीत गठबंधन के तहत चुनाव लड़ा था। अपना दल (कमेरावादी) को छोड़कर इनमें से बाकी सभी दलों ने विधानसभा चुनाव के बाद सपा से दूरी बना ली थी, लेकिन मैनपुरी में सपा की जीत के बाद इन दलों में एक बार फिर हलचल बढ़ गई है।

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