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Birthday Special: संसदीय राजनीति के शिखर पुरुष भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी
By DivaNews
25 December 2022
Birthday Special: संसदीय राजनीति के शिखर पुरुष भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी बहुआयामी प्रतिभा के धनी और विशाल व्यक्तित्व वाले भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति में अजातशत्रु के नाम से स्मरणीय रहेंगे। उनके विराट राजनीतिक व्यक्तित्व और कृतित्व की चर्चा स्वतंत्र भारत के इतिहास के हर मोड़ पर खूब होती है और होती ही रहेगी। भारत की संसदीय राजनीति के वे आधार स्तंभ और शिखर पुरुष थे, जिनके इर्दगिर्द संसदीय इतिहास घूम रहा है। उनका संसदीय कार्यकाल उनके व्यक्तित्व का अनुपम अध्याय था। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और यहां की संसदीय शासन व्यवस्था में संसद सर्वोच्च है। भारतीय संसद की जब भी चर्चा होती है, उसके इतिहास को टटोला जाता है तो इसमें यदि किसी एक व्यक्तित्व का नाम हर भारतीय और राजनीतिज्ञ के मानस पटल पर उभरता है, वह नाम है श्रद्धेय अटलजी का, जिन्हें संसदीय राजनीति का शिखर पुरुष कहा जाता है। लोकसभा हो या राज्यसभा, सत्ता में रहे हों या विपक्ष में, उनका संसदीय कार्यकाल सदैव स्मरणीय रहेगा। एक सांसद के रूप में संसद के दोनों सदनों में इनके वक्तव्य को गंभीरता से सुना जाता था। संसदीय मर्यादा का पाठ लोग उनसे सीखते थे। विपक्ष के नेता के रूप में सरकार को सचेत करते हुए लोकतंत्र में विपक्ष की अहमियत और उसकी सीमा का पाठ पढ़ाया। विचारों, नीतियों और सिद्धांतों के आधार पर मुखर विरोध करने में आगे रहे तो आवश्यकता पड़ने पर देशहित में सरकार को सकारात्मक सहयोग करने में भी पीछे नहीं रहे। 1967 से 1970 एवं 1991 से 1993 तक संसद की सबसे महत्वपूर्ण समिति लोकलेखा समिति के अध्यक्ष रहे। 1991-92 में देश की अर्थव्यवस्था जब लड़खड़ा गई थी, उस समय लोकलेखा समिति के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने राजनीति से ऊपर उठकर देशहित में सरकार को समुचित सुझाव दिया। 1993 से 1996 तक लोकसभा में विपक्ष के नेता के रूप में अंतर्राष्ट्रीय मंच पर देश का प्रतिनिधित्व करते हुए सरकार का सहयोग किया। इसके साथ ही अटलजी अपने संसदीय कार्यकाल में संसद की प्रमुख समितियों के सदस्य या अध्यक्ष के रूप में लोकतंत्र और संसदीय परंपरा को मजबूत करने में जो महत्वपूर्ण योगदान दिया, उसे भारतीय संसद और देश कभी भूल नहीं सकता है। 1966-67 में सरकारी आश्वासनों समिति और 1990-91 में याचिका समिति के अध्यक्ष रहे। 1993-96 तथा 1997-98 में विदेशी मामलों के स्थायी के अध्यक्ष रहे। उनके संसदीय व्यवहार को सभी दलों के नेताओं ने भी स्वीकार किया। संसदीय व्यवस्था में विपक्ष की राजनीति करते हुए उन्होंने आदर्श तो स्थापित किया ही, सत्ता में आने पर भी लोकतंत्र और संसद की गरिमा की रक्षा करना उनकी प्राथमिकता रही। 1994 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद तथा पंडित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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