तुलसी विवाह के साथ ही शुरू होंगे मांगलिक कार्य, जानें इस दिन का महत्व
Festivals तुलसी विवाह के साथ ही शुरू होंगे मांगलिक कार्य, जानें इस दिन का महत्व

तुलसी विवाह के साथ ही शुरू होंगे मांगलिक कार्य, जानें इस दिन का महत्व सनातन हिंदू धर्म में तुलसी को एक पवित्र पौधे के रूप में जानते हैं। हर वर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को तुलसी विवाह मनाया जाता है। तुलसी जी का विवाह भगवान विष्णु स्वरुप शालीग्राम जी के साथ धूमधाम से कराया जाता है। तुलसी को माता लक्ष्मी का ही एक रूप भी मानते है। इस वर्ष तुलसी विवाह पांच नवंबर को मनाया जाएगा।

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देवोत्थान एकादशी व्रत से होते हैं सभी पाप दूर
Festivals देवोत्थान एकादशी व्रत से होते हैं सभी पाप दूर

देवोत्थान एकादशी व्रत से होते हैं सभी पाप दूर आज देवोत्थान एकादशी व्रत है, इसका हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है, तो आइए हम आपको देवोत्थान एकादशी के महत्व एवं व्रत की विधि के बारे में बताते हैं। 

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देवोत्थान एकादशी से मांगलिक कार्यों की हो जाती है शुरूआत
Festivals देवोत्थान एकादशी से मांगलिक कार्यों की हो जाती है शुरूआत

देवोत्थान एकादशी से मांगलिक कार्यों की हो जाती है शुरूआत देवोत्थान एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहते हैं। दीपावली के ग्यारह दिन बाद आने वाली एकादशी को ही प्रबोधिनी एकादशी अथवा देवोत्थान एकादशी या देव-उठनी एकादशी कहा जाता है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव चार मास के लिए शयन करते हैं। इस बीच हिन्दू धर्म में कोई भी मांगलिक कार्य शादी, विवाह आदि नहीं होते। देव चार महीने शयन करने के बाद कार्तिक, शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उठते हैं। इसीलिए इसे देवोत्थान (देव-उठनी) एकादशी कहा जाता है। देवोत्थान एकादशी तुलसी विवाह एवं भीष्म पंचक एकादशी के रूप में भी मनाई जाती है। इस दिन लोग तुलसी और सालिग्राम का विवाह कराते हैं और मांगलिक कार्यों की शुरुआत करते हैं। हिन्दू धर्म में प्रबोधिनी एकादशी अथवा देवोत्थान एकादशी का अपना ही महत्त्व है। इस दिन जो व्यक्ति व्रत करता है उसको दिव्य फल प्राप्त होता है।

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देवउठनी एकादशीः पाताल से बैकुंठ लोक को लौटेंगे भक्त वत्सल भगवान
Festivals देवउठनी एकादशीः पाताल से बैकुंठ लोक को लौटेंगे भक्त वत्सल भगवान

देवउठनी एकादशीः पाताल से बैकुंठ लोक को लौटेंगे भक्त वत्सल भगवान भगवान की लीला अपरंपार है। इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है-

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अक्षय नवमी पर दान से होती है अक्षय पुण्य फल प्राप्ति
Festivals अक्षय नवमी पर दान से होती है अक्षय पुण्य फल प्राप्ति

अक्षय नवमी पर दान से होती है अक्षय पुण्य फल प्राप्ति आज अक्षय नवमी है, इसे आंवला नवमी भी कहा जाता है। इस दिन श्री हरि भगवान विष्णु और आंवले के वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व होता है तो आइए हम आपको अक्षय नवमी व्रत एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।

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लोक आस्था का पर्व है छठ पूजा
Festivals लोक आस्था का पर्व है छठ पूजा

लोक आस्था का पर्व है छठ पूजा लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा नहाय खाय के साथ ही शुरू हो गया है। चार दिवसीय इस महापर्व की विशेष महत्ता है, तो आइए हम आपको छठ महापर्व की पूजा विधि के बारे में बताते हैं। 

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कारोबार में लाभ की कामना के लिए लाभ पंचमी पर करते हैं गणेश पूजन
Festivals कारोबार में लाभ की कामना के लिए लाभ पंचमी पर करते हैं गणेश पूजन

कारोबार में लाभ की कामना के लिए लाभ पंचमी पर करते हैं गणेश पूजन हिंदू धर्म में लाभ पंचमी की खास महत्व दिया गया है। इसे सौभाग्य पंचमी के नाम से भी जानते हैं। इस दिन मां पार्वती और भगवान शिव की पूजा की जाती है। लाभ पंचमी कार्तिक शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। इस साल लाभ पंचमी शनिवार 29 अक्टूबर को मनाई जाएगी। लाभ पंचमी को सौभाग्य पंचमी के रूप में भी मनाया जाता है। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर-जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा.

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जन आस्था और सूर्य उपासना का महापर्व है छठ पूजा
Festivals जन आस्था और सूर्य उपासना का महापर्व है छठ पूजा

जन आस्था और सूर्य उपासना का महापर्व है छठ पूजा छठ पूजा हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। सामान्यता यह त्योहार बिहार, झारखण्ड और पूर्वी उत्तर-प्रदेश में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश और बिहार में छठ पूजा को महापर्व घोषित कर छठ पूजा के दिन सरकारी छुट्टी भी लागू कर दी गई है। छठ पूजा का महत्व बहुत ज्यादा है। यह व्रत सूर्य भगवान, उषा, प्रकृति, जल, वायु आदि को समर्पित है। इस व्रत को करने से निःसंतान दंपत्तियों को संतान सुख प्राप्त होता है।

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शोभन, सर्वार्थ सिद्धि और रवि योग में शुरू हुई छठ पूजा
Festivals शोभन, सर्वार्थ सिद्धि और रवि योग में शुरू हुई छठ पूजा

शोभन, सर्वार्थ सिद्धि और रवि योग में शुरू हुई छठ पूजा लोक आस्था का महापर्व छठ दिवाली के 6 दिन बाद मनाया जाता है। छठ महापर्व की शुरुआत नहाय-खाय के साथ शुरू हो जाती है। इस वर्ष छठ पर्व की शुरुआत 28 अक्तूबर से हो रही है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व के पहले दिन नहाय-खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन संध्या अर्ध्य और चौथे दिन उषा अर्घ्य देते हुए समापन होता है। छठ महापर्व सूर्य उपासना का सबसे बड़ा त्योहार होता है। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर-जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा.

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भाई-बहन के पावन संबंधों की मजबूती का पर्व है भैया दूज
Festivals भाई-बहन के पावन संबंधों की मजबूती का पर्व है भैया दूज

भाई-बहन के पावन संबंधों की मजबूती का पर्व है भैया दूज भाई-बहन के दिलों में पावन संबंधों की मजबूती और प्रेमभाव स्थापित करने वाला पर्व है ‘भैया दूज’। इस दिन बहनें अपने भाईयों को तिलक लगाकर ईश्वर से उनकी दीर्घायु की कामना करती हैं। कहा जाता है कि इससे भाई यमराज के प्रकोप से बचे रहते हैं। दीपावली के दो दिन बाद अर्थात् कार्तिक शुक्ल द्वितीया को मनाए जाने वाले इस पर्व को ‘यम द्वितीया’ व ‘भ्रातृ द्वितीया’ के नाम से भी जाना जाता है। बहुत से भाई-दिन सौभाग्य तथा आयुष्य की प्राप्ति के लिए इस दिन यमुना अथवा अन्य पवित्र नदियों में साथ-साथ स्नान भी करते हैं। भैया दूज मनाने के संबंध में कई किवंदतियां प्रचलित हैं। एक कथा यमराज और उनकी बहन यमुना देवी से संबंधित है।

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भाई-बहन के उज्ज्वल भविष्य का पर्व है भाई दूज, जानें भाई को तिलक लगाने का सही मुहूर्त
Festivals भाई-बहन के उज्ज्वल भविष्य का पर्व है भाई दूज, जानें भाई को तिलक लगाने का सही मुहूर्त

भाई-बहन के उज्ज्वल भविष्य का पर्व है भाई दूज, जानें भाई को तिलक लगाने का सही मुहूर्त हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भाईदूज का पर्व मनाया जाता है। भाईदूज को भैया दूज, भाई टीका, यम द्वितीया, भ्रातृ द्वितीया आदि नामों से भी जाना जाता है। भैया दूज का पर्व देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाई के माथे पर रोली और अक्षत से तिलक कर उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए कामना करती हैं। इस दिन बहनें अपने भाईओं को अपने घर भोजन के लिए बुलाती हैं। माना जाता है कि इससे भाई की उम्र बढ़ती है। इसके साथ ही भाई अपनी बहन को कुछ उपहार या दक्षिणा देते हैं। भाईदूज के दिन यमराज का पूजन किया जाता है और इस दिन यमुना में डुबकी लगाने का विशेष महत्व है। पौराणिक कथा के अनुसार मान्यता है कि इस दिन यम देव अपनी बहन यमुना के कहने पर घर पर भोजन करने गए थे।

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पहली बार दीपावली के अगले दिन नहीं मनाई जाएगी गोवर्धन पूजा
Festivals पहली बार दीपावली के अगले दिन नहीं मनाई जाएगी गोवर्धन पूजा

पहली बार दीपावली के अगले दिन नहीं मनाई जाएगी गोवर्धन पूजा हर साल दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है। हालांकि इस बार ऐसा नहीं होगा। 24 अक्टूबर को दीपावली और और 25 को साल का आखिरी सूर्य ग्रहण होगा। गोवर्धन पूजा 26 अक्टूबर 2022 को की जाएगी। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा.

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दीपावली पर करे मां लक्ष्मी का पूजन…पाएं आर्थिक समृद्धि
Festivals दीपावली पर करे मां लक्ष्मी का पूजन…पाएं आर्थिक समृद्धि

दीपावली पर करे मां लक्ष्मी का पूजन…पाएं आर्थिक समृद्धि कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला खुशियों और रोशनी का त्योहार दीपावली हिंदू धर्म का सबसे बड़ा और प्राचीन त्योहार है। यह त्योहार मां लक्ष्मी के सम्मान में मनाया जाता है। कुछ जगहों पर इस त्योहार को नए साल की शुरुआत भी माना जाता है। दीपोत्सव से कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं।

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178 साल बाद दीपावली पर गुरु-शनि का दुर्लभ योग, 5 राजयोग में 24 अक्टूबर को मनाई जायेगी दीपावली
Festivals 178 साल बाद दीपावली पर गुरु-शनि का दुर्लभ योग, 5 राजयोग में 24 अक्टूबर को मनाई जायेगी दीपावली

178 साल बाद दीपावली पर गुरु-शनि का दुर्लभ योग, 5 राजयोग में 24 अक्टूबर को मनाई जायेगी दीपावली दीपावली सोमवार 24 अक्टूबर को मनाई जायेगी। इस दिन कार्तिक अमावस्या शाम 5.

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नरक चतुर्दशी: नरक के भय से मुक्ति, स्वच्छता से भी है नरक चतुर्दशी का संबंध
Festivals नरक चतुर्दशी: नरक के भय से मुक्ति, स्वच्छता से भी है नरक चतुर्दशी का संबंध

नरक चतुर्दशी: नरक के भय से मुक्ति, स्वच्छता से भी है नरक चतुर्दशी का संबंध दीवाली के पांच महापर्वों की श्रृंखला में दूसरा पर्व है ‘नरक चतुर्दशी’, जो कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। ‘रूप चतुर्दशी’, ‘काल चतुर्दशी’ ‘नरक चौदस’, ‘छोटी दीपावली’ इत्यादि विभिन्न नामों से जाना जाने वाला यह पर्व हालांकि सदैव दीवाली से एक दिन पहले ही मनाया जाता रहा है किन्तु इस वर्ष यह पर्व दीवाली के ही साथ 24 अक्तूबर को ही मनाया जा रहा है। जैसा कि इस पर्व के नाम से ही आभास होता है कि इसका संबंध भी किसी न किसी रूप में नरक अथवा मृत्यु से है। यम को मृत्यु का देवता और संयम के अधिष्ठाता देव माना गया है। इसीलिए इस दिन यमराज और धर्मराज चित्रगुप्त का पूजन करते हुए उनसे प्रार्थना की जाती है कि उनकी दयादृष्टि से हमें नरक के भय से मुक्ति मिले। इस पर्व को लेकर मान्यता यही है कि इस अवसर पर यमराज का पूजन करने और व्रत रखने से नरक की प्राप्ति नहीं होती।

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धनवर्षा के साथ अमृतवर्षा का पर्व है धनतेरस
Festivals धनवर्षा के साथ अमृतवर्षा का पर्व है धनतेरस

धनवर्षा के साथ अमृतवर्षा का पर्व है धनतेरस दीपावली से जुड़े पांच पर्वों में दूसरा महत्वपूर्ण पर्व है धनतेरस। धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरी और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है और इस दिन खरीदारी और दान-पुण्य करना भी शुभ माना जाता है। इस दिन को धन त्रयोदशी और धन्वंतरि जयंती के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के जनक धन्वंतरि देव समुद्र मंथन से प्रकट हुए थे और प्रकट होते समय उनके हाथ में अमृत से भरा कलश था। यही कारण है कि इस दिन बर्तन खरीदे जाते हैं। कहा जाता है कि इस दिन बर्तन खरीदने से घर में बरकत आती है और अगर घर में सुख-समृद्धि के लिए उपाय किए जाएं तो बहुत कारगार माने जाते हैं और इस दिन दिव्यता की देवी लक्ष्मी देवी की पूजा करते हैं।

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धनतेरस पर मां लक्ष्मी का पूजन घर में लाता है वैभव
Festivals धनतेरस पर मां लक्ष्मी का पूजन घर में लाता है वैभव

धनतेरस पर मां लक्ष्मी का पूजन घर में लाता है वैभव कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धन की देवी के उत्सव का प्रारंभ होने के कारण इस दिन को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। धनतेरस को धन त्रयोदशी व धन्वन्तरी त्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है। धनतेरस पर पांच देवताओं, गणेश जी, मां लक्ष्मी, ब्रह्मा, विष्णु और महेश की पूजा होती है। ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय कलश के साथ माता लक्ष्मी का अवतरण हुआ उसी के प्रतीक के रूप में ऐश्वर्य वृद्धि, सौभाग्य वृद्धि के लिए बर्तन खरीदने की परम्परा शुरू हुई।

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22 और 23 अक्टूबर मनाई जाएगी धनतेरस, राशि के अनुसार करें खरीदारी
Festivals 22 और 23 अक्टूबर मनाई जाएगी धनतेरस, राशि के अनुसार करें खरीदारी

22 और 23 अक्टूबर मनाई जाएगी धनतेरस, राशि के अनुसार करें खरीदारी धनतेरस पर अबकी बार ऐसा संयोग बना है कि लोगों को दो दिनों तक धन्वंतरी भगवान का आशीर्वाद मिलेगा। दरअसल इस साल शनिवार 22 अक्टूबर को शाम में 6:03 मिनट से कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी तिथि लग रही है जिसे धनतेरस कहा जाता है। इसी दिन यमदीप भी निकाला जाएगा। कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी तिथि 23 अक्टूबर को शाम 6:04 मिनट तक रहेगी। इसलिए धनत्रयोदशी यानी धनतेरस 22 अक्टूबर की शाम से अगले दिन 23 अक्टूबर की शाम तक मनाया जा सकेगा। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर-जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा.

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रमा एकादशी व्रत से विवाहित स्त्रियों को प्राप्त होता है सौभाग्य
Festivals रमा एकादशी व्रत से विवाहित स्त्रियों को प्राप्त होता है सौभाग्य

रमा एकादशी व्रत से विवाहित स्त्रियों को प्राप्त होता है सौभाग्य आज रमा एकादशी है, रमा एकादशी का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। इस व्रत से व्रती के समस्त पापों का नाश होता है तो आइए हम आपको रमा एकादशी व्रत की विधि एवं महत्व के बारे में बताते हैं।

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अहोई अष्टमी पर्व की पूजन विधि, पूजा का शुभ मुहूर्त और व्रत कथा
Festivals अहोई अष्टमी पर्व की पूजन विधि, पूजा का शुभ मुहूर्त और व्रत कथा

अहोई अष्टमी पर्व की पूजन विधि, पूजा का शुभ मुहूर्त और व्रत कथा कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई माता का व्रत किया जाता है। इस दिन पुत्रवती स्त्रियां निर्जल व्रत रखती हैं। इस साल यह पर्व 17 अक्टूबर को मनाया जायेगा। अहोई अष्टमी पर पूजा का शुभ मुहूर्त शाम पांच बजकर 50 मिनट से लेकर शाम सात बजकर 5 मिनट तक रहेगा। अहोई अष्टमी का दिन अहोई आठें के नाम से भी जाना जाता है। अहोई अष्टमी व्रत करवा चौथ के चार दिन बाद और दीवाली पूजा से आठ दिन पहले पड़ता है। उत्तर भारत में काफी प्रसिद्ध त्योहार माने जाने वाले अहोई अष्टमी पर्व को शाम के समय दीवार पर आठ कोनों वाली एक पुतली बनाई जाती है। पुतली के पास ही स्याउ माता व उसके बच्चे बनाए जाते हैं। इस दिन शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर कच्चा भोजन खाया जाता है तथा तारों को करवा से अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन पुत्रवती स्त्रियां पुत्र की लम्बी आयु और सुखमय जीवन की कामना को लेकर यह व्रत करती हैं।

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संतान की सुख-समृद्धि तथा लंबी आयु के लिए रखा जाता है अहोई अष्टमी का व्रत
Festivals संतान की सुख-समृद्धि तथा लंबी आयु के लिए रखा जाता है अहोई अष्टमी का व्रत

संतान की सुख-समृद्धि तथा लंबी आयु के लिए रखा जाता है अहोई अष्टमी का व्रत भारतीय समाज में प्रत्येक त्यौहार का अपना एक विशेष महत्व है। ऐसे प्रत्येक अवसर पर की जाने वाली पूजा तथा व्रत में कोई न कोई विशेष उद्देश्य निहित होता है। कार्तिक कृष्ण पक्ष में तो वैसे भी तिथि-त्यौहारों की भरमार रहती है। जिस प्रकार सम्पूर्ण भारत में पति की दीर्घायु की कामना के लिए ‘करवा चौथ’ व्रत मनाया जाता है, ठीक उसी प्रकार करवा चौथ के चार दिन पश्चात् संतान की सुख-समृद्धि तथा लंबी आयु की कामना के लिए ‘अहोई अष्टमी’ व्रत रखा जाता है। अहोई अष्टमी के दिन माता पार्वती की पूजा का विधान है। दरअसल माता पार्वती संतान की रक्षा करने वाली देवी मानी गई हैं। पौराणिक मान्यता है कि इस व्रत के प्रताप से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस व्रत के प्रताप से बच्चों की रक्षा होती है, वहीं इसे संतान प्राप्ति के लिए भी सर्वोत्तम माना गया है। अहोई अष्टमी व्रत के संबंध में मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से संतान फल की प्राप्ति होती है और जो महिलाएं पूरे विधि-विधान से यह व्रत रखती हैं, उनके बच्चे दीर्घायु होते हैं। जिन महिलाओं की संतान का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता हो, बच्चे बार-बार बीमार पड़ते हों, ऐसे बच्चों के स्वास्थ्य लाभ तथा दीर्घायु प्राप्ति के लिए अहोई अष्टमी व्रत किया जाता है। हालांकि इस व्रत के संबंध में यह नियम भी माना जाता है कि एक साल यह व्रत करने के बाद यह व्रत आजीवन नहीं टूटना चाहिए अर्थात् प्रतिवर्ष किया जाना चाहिए।

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संतान की लम्बी आयु की कामना का पर्व है अहोई अष्‍टमी
Festivals संतान की लम्बी आयु की कामना का पर्व है अहोई अष्‍टमी

संतान की लम्बी आयु की कामना का पर्व है अहोई अष्‍टमी अहोई अष्‍टमी का व्रत करवा चौथ के ठीक चार दिन बाद आता है। करवा चौथ पर महिलाएं पति की दीर्घायु की कामना के लिए व्रत करती हैं तो अहोई अष्‍टमी पर संतान की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत करती हैं। रात में तारों को अर्घ्‍य देने के बाद व्रत का पारण करती हैं और फिर जल ग्रहण करती हैं। यह व्रत अहोई मैय्या को समर्पित होता है। अहोई अष्टमी का पर्व दीपावली के आरम्भ होने की सूचना देता है। विशेष अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन किया जाता है। विशेष तौर पर यह पर्व माताओं द्वारा अपनी सन्तान की लम्बी आयु व स्वास्थ्य कामना के लिए किया जाता है। पुत्रवती महिलाओं के लिए यह व्रत अत्यन्त महत्वपूर्ण है। जिन माता-पिता को अपने सन्तान की ओर से स्वास्थ्य व आयु की दृष्टि से चिंता बनी रहती हो। इस पर्व पर सन्तान की माता द्वारा समुचित व्रत व पूजा करने का विशेष लाभ प्राप्त होता है। सन्तान स्वस्थ होकर दीर्घायु को प्राप्त करती हैं। 

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स्कंद षष्ठी व्रत से संतान को प्राप्त होती है सुख-शांति
Festivals स्कंद षष्ठी व्रत से संतान को प्राप्त होती है सुख-शांति

स्कंद षष्ठी व्रत से संतान को प्राप्त होती है सुख-शांति आज स्कंद षष्ठी है, स्कंद षष्ठी भगवान कार्तिकेय को समर्पित महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, तो आइए हम आपको स्कंद षष्ठी के महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।

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कार्तिक माह के कृष्णपक्ष में ऐसे करें वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी का व्रत, जानिए पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
Festivals कार्तिक माह के कृष्णपक्ष में ऐसे करें वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी का व्रत, जानिए पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

कार्तिक माह के कृष्णपक्ष में ऐसे करें वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी का व्रत, जानिए पूजा विधि और शुभ मुहूर्त सनातन मान्यताओं के मुताबिक हर महीने में दो चतुर्थी तिथि होती है- एक कृष्ण पक्ष में और दूसरी शुक्ल पक्ष में। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी कहते है। वर्ष 2022 में 13 अक्टूबर के दिन गुरूवार को कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि है, जिसे वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। इसलिए आज कार्तिक माह की पहली चतुर्थी का व्रत रखा गया है। 

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