ट्रेड मार्क होती ज़िंदगी (व्यंग्य)
Literaturearticles ट्रेड मार्क होती ज़िंदगी (व्यंग्य)

ट्रेड मार्क होती ज़िंदगी (व्यंग्य) बड़ी दुकानवाला चाहे असली सा महसूस करवाने वाले, नकली स्वाद का प्रभावशाली विज्ञापन छपवाए या अपने व्यवसाय में पारदर्शिता होने का विज्ञापन बनवाए, विज्ञापन पढने या देखने वालों को सब कुछ कहां समझ आता है। अधिकांश ग्राहक सब खा पी जाते हैं। उन्हें इतना कुछ खिला, पिला, बेच दिया है कि नकली और नकली पीकर उनकी जीभ को असली का स्वाद भूल गया है। सब जानते हैं कि क़ानून बहुत सख्त है और लागू है। सभी कम्पनियां, सभी कायदे क़ानून, बड़े सलीके से फॉलो करती हैं। विज्ञापन में स्पष्ट और साफ़ छाप देती हैं कि हमारी फ्रूट पॉवर केवल एक ट्रेड मार्क है और इसकी वास्तविक प्रकृति का प्रतिनिधित्व नहीं करती है। 

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विवाह एक मुकदमा (व्यंग्य)
Literaturearticles विवाह एक मुकदमा (व्यंग्य)

विवाह एक मुकदमा (व्यंग्य) ज़िंदगी में, त्योहारों के वार्षिक मौसम में, वैवाहिक जीवन का सबसे बड़ा त्यौहार आता है करवा चौथ का व्रत। शादी शुदा ज़िंदगी की कैसी कैसी अनसुलझी गुत्थियां समाज के अनाम कोनों में पड़ी रहती हैं इस बारे करवा चौथ का व्रत कुछ नहीं कहता। त्योहार संपन्न होने के बाद इनके सुप्रभाव और कुप्रभाव पर चर्चा के साथ जीवन सामान्य हो जाता है लेकिन वैवाहिक जीवन के मुकदमे बरसों चलते रहते हैं क्यूंकि बरसों चलाने होते हैं।   

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विकास की छत के नीचे (व्यंग्य)
Literaturearticles विकास की छत के नीचे (व्यंग्य)

विकास की छत के नीचे (व्यंग्य) यह एक शानदार सच है कि विकास का वास्तविक मतलब सड़क, पुल, बांध, बरसात के बाद गड्ढों की बढ़िया मरम्मत व इमारतों आदि का निर्माण होता है। विकास का अर्थ यह तो हो नहीं सकता कि सब एक समान फलें फूलें, ठिगने बंदों का कद लंबा हो जाए। नागरिकों की सभी किस्म की सेहत बेहतर हो। काम करने वालों का सम्मान बढ़े, अच्छा काम करने वालों का सामान भी बढ़े। सामान के बिना ज़िंदगी कहां चलती, बसती और बढ़ती है। जीवन में पर्याप्त सामान न मिले, पेट भर जाए लेकिन मन न भरे तो मुश्किल होती ही है।

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खुशियों का दीपोत्सव आया (कविता)
Literaturearticles खुशियों का दीपोत्सव आया (कविता)

खुशियों का दीपोत्सव आया (कविता) भारत को त्यौहारों का देश माना जाता है। दीपावली सबसे अधिक प्रमुख त्यौहार है। यह त्यौहार दीपों का पर्व है। कवि दीपक कुमार त्यागी ने इस कविता में दिवाली त्योहार पर होने वाली तैयारियों का बहुत सुंदर वर्णन किया है। कवि ने इस कविता में बताया है कि दिवाली पर्व खुशियों का त्योहार है।

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उपहारों का उत्सव (व्यंग्य)
Literaturearticles उपहारों का उत्सव (व्यंग्य)

उपहारों का उत्सव (व्यंग्य) उत्सवों के मौसम में किसी को भी दिए जाने वाले उपहार का चुनाव आपसी संबंधों और ख़ास तौर पर व्यवसायिक संबंधों के मद्देनज़र किया जाता है। यह बात दीगर है कि उपहार में अगर सोने की अंगूठी भी दे दी जाए तो उसके डिज़ाइन को सामान्य कह दिया जाएगा। अंगूठी का वज़न भी हल्का कह सकते हैं। अंगूठी ढीली या तंग तो रहेगी ही, नग भी नकली, बड़ा या छोटा माना जाएगा। सोने की अंगूठी के मामले में भी कह सकते हैं कि पैसा होते हुए भी लोगों को उपहार देना नहीं आता। 

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त्योहारों के मौसम में खुशहाल गोष्ठी (व्यंग्य)
Literaturearticles त्योहारों के मौसम में खुशहाल गोष्ठी (व्यंग्य)

त्योहारों के मौसम में खुशहाल गोष्ठी (व्यंग्य) त्योहारों का मौसम खुशहाली चमकने का मौसम होता है। व्यावसायिक घराने इंतज़ार में रहते हैं कि त्योहार आएं और बिजनेस में उठान आए। सरकारजी की भी कोशिश रहती है कि देश के बाज़ारों में किसी तरह बहार रहे। सरकारी खेतों में उपजाऊ बीज बोने की ज़िम्मेदारी अफसरशाही खूब निभाती है। अधिकारी पूरा साल सेवा करते हैं तभी बड़ी पार्टी करने का वक़्त इस मौसम में मिलता है। 

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उचित कर्म का विज्ञापन (व्यंग्य)
Literaturearticles उचित कर्म का विज्ञापन (व्यंग्य)

उचित कर्म का विज्ञापन (व्यंग्य) महाभारत के कृष्ण विज्ञापन में हैं। सुदर्शन चक्र गतिमान है। बचपन में जो कैलेण्डर देखे थे उनमें उनकी छवि डिज़ाइनर वस्त्र और गहनों से इतनी ज़्यादा लदी नहीं होती थी। अब तो उनके शंख पर भी स्वर्ण मढ़ दिया है। सुर्ख रंग, भारी और आकर्षक वस्त्र पहना दिए गए हैं। जूते शानदार, सोना जड़ित, खालिस डिज़ाइनर शू हैं। उनके चहरे पर उद्देश्य भेदक सोच दिखती है। वे शंखनाद कर युद्ध घोषित कर सकते हैं। महापराक्रमी सुदर्शन चक्र भी तो स्थिर मुद्रा में नहीं है और गोपियों को रिझाने, नृत्य विभोर करने वाली बांसुरी नहीं दिख रही। वैसे उनकी पोशाक युद्ध वाली नहीं लगती। 

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मैं और मेरा मोटापा (व्यंग्य)
Literaturearticles मैं और मेरा मोटापा (व्यंग्य)

मैं और मेरा मोटापा (व्यंग्य) मैं गंडीपेट (हैदराबाद का सबसे बड़ा जलाशय) का अवतार नहीं हूँ। फिर भी बहुत मोटा हूँ। माँ का प्यार कहिए या उनके घी का कमाल कि बचपन में मच्छर सा दिखने वाला मैं अब बाहुबली फिल्म का सांड लग रहा हूँ। मुझे बचपन से इतना घी खिलाया गया कि मुझे पानी पीते समय भी उसमें घी दिखाई देने लगा। मेरे लिए सावन का हरा वाला मुहावरा घी की चमक से चौंधियाई आँखों को हर चमकती चीज़ घी दिखाई देने लगी। कभी-कभी तो मुझे लगता है कि मेरे बदन में खून नहीं घी की नदियाँ बह रही हैं। बचपन में मुझे घरवाले छोटू कहकर पुकारते थे। अब इतना भोदू हो गया हूँ कि वह विशेषण मेरे बदन के सभी अंगों को चिढ़ाते हैं। घरवालों को केंचुआ सा दिखाई देने वाला मैं कब लोगों की नजर में भारी-भरकम अजगर बन गया पता ही नहीं चला। वैसे भी पौधा खाद-पानी पाकर हमेशा के लिए पौघा थोड़े न रहता है। सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो भारी-भरकर वृक्ष बन ही जाता है।    छठी कक्षा पढ़ते समय मुझे बेंच पर खड़ा होने का दंड दिया गया था। शिक्षिका मेरे शोर से इतनी परेशान थी कि उन्होंने मेरी तुलना लोटे से कर दी। तब से मेरा नाम लोटा पड़ गया। जब मैं बड़ा हुआ तो हम सभी स्कूली दोस्तों ने एक वाट्सप समूह बनाया। सबने हाय हैलो करना शुरु किया। मैंने अपना नाम सुरेश बताया। सभी ने प्रश्नचिह्न जैसा मुँह वाला इमोजी लगाया। मैंने अपना फोटो भी पोस्ट किया। लेकिन किसी ने मुझे पहचाना नहीं। जैसे ही मैंने अपना नाम लोटा बताया सबके सब टूट पड़े। ऐसे टूटे जैसे बिस्कुट का टुकड़ा देखते ही कुत्तों का झुंड टूट पड़ता है। एक अपराधी अपने अपराधों की सजा काटकर नए जीवन की शुरुआत करना चाहता है तो उसे उसके पुराने कारनामों के नाम पर लज्जित करने जैसी हालत मेरी थी। मैंने पुराने नाम से पिंड छुड़ाने के लिए बाकायदा पेपर में विज्ञापन भी दिया। चिढ़ाने वालों को अपना चुल शांत करने से मतलब होता है। इसे भी पढ़ें: ओह शिट!

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करवा चौथ का उचित व्रत (व्यंग्य)
Literaturearticles करवा चौथ का उचित व्रत (व्यंग्य)

करवा चौथ का उचित व्रत (व्यंग्य) करवा चौथ की सुबह उठकर जब मैंने पत्नी को चूमकर, ‘हैप्पी करवा चौथ’ कहना चाहा तो नींद में डूबा जवाब मिला, ‘सुबह चार बजे सोई हूं, प्लीज़ सोने दो।’ वह अलसुबह उठकर आलू के परांठे बनाकर और खाकर सोई थी ताकि अगले दिन भूखा और प्यासा व्रत रख सके। थोड़ी देर बाद वह उठेगी, नहा धोकर पसंद के पुराने वस्त्र ही पहनेगी क्यूंकि उसे इतनी ज़्यादा वैरायटी में मनपसंद के कपड़े मिलने मुश्किल हो जाते हैं । वह साड़ी नहीं पहनेगी। कई अच्छी साड़ियां अटैची में बंद पड़ी हैं सोचती होंगी क्यूं खरीदा हमें । 

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रावण समूह की बैठक (व्यंग्य)
Literaturearticles रावण समूह की बैठक (व्यंग्य)

रावण समूह की बैठक (व्यंग्य) रावण समूह के सदस्य राक्षस चाहते थे कि इस साल दशहरा के दिन या बाद में समूह की बैठक रखी जाए। पिछले दो साल से राक्षसी हितों बारे ढंग से विचार विमर्श नहीं हो पाया। अध्यक्ष रावण को सूचित किया गया कि सरकार जनता की भलाई के लिए बहुत काम कर रही है, समाज से बुराई खत्म करने के बेहतर तरीके निकाले जा रहे हैं। एक समय आएगा बुराई जड़ से समाप्त हो जाएगी। फिर हमारा क्या होगा, सरकार हमें भी खत्म कर देगी। 

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रावण के पुतले के प्रश्न (व्यंग्य)
Literaturearticles रावण के पुतले के प्रश्न (व्यंग्य)

रावण के पुतले के प्रश्न (व्यंग्य) इस बाहर ग़ज़ब हो गया। दशहरा मैदान पर रावण दहन की सारी झाँकी सज चुकी थी। रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद के पुतले पूरी तामझाम के साथ अपने नियत स्थान पर खड़े कर दिए गए थे। प्रभुराम, लक्ष्मण और हनुमान की आरती समारोह अध्यक्ष द्वारा करने की औपचारिकता भी पूर्ण हो चुकी थी। लेकिन ये क्या, प्रभु राम ने पहला तीर चलाया और रावण के पुतले ने जोरदार अट्टहास लगाया साथ ही जलने से साफ मना कर दिया। इधर राम जी धनुष पर एक के बाद एक तीर चढ़ा कर रावण के पुतले की ओर छोड़ रहे थे पर रावण का पुतला टस से मस नहीं हो रहा था। जनता ऐसा सीन पहली बार देख रही थी। अब क्या होगा, सोचकर दर्शकों में व्यग्रता बढ़ती जा रही थी। लोगों में खुसुर-पुसुर शुरु हो गई पता नहीं इस बार ये पुतला किसने बनाया। हर बार तो रहीम चाचा बनाते थे। उनके बनाए पुतले तो धनुष पर तीर चढ़ा देखा नहीं कि धू-धू कर जलने लगते थे। होलिका दहन और कंस वध झाँकियों के पुतले भी हमेशा रहीम चच्चा बनाते रहे हैं। होलिका तो चिंगारी देखकर ही जलने लगती थी और कंस भी दो घूँसे खाकर खून का उल्टियाँ करने लगता था।

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चीते आए तो दौड़े विचार (व्यंग्य)
Literaturearticles चीते आए तो दौड़े विचार (व्यंग्य)

चीते आए तो दौड़े विचार (व्यंग्य) चीते आने की खबर से पता चला कि हम इतने दशकों से उनके बिना भी रफ़्तार पकड़े हुए थे। हमारे यहां तो अलग अलग नस्ल के बब्बर शेर भी बहुतेरे हैं। कहां विशाल चेहरे, यशस्वी बाल वाले प्रभावशाली, लोकतांत्रिक स्वतंत्र शेर और कहां चौबीस घंटे निगरानी में रखे जाने वाले चीते। बेशक हमारे यहां जंगली जानवर कम हैं, कुछ की तो पूरी छुट्टी कर दी हमारे वन प्रेमियों ने पर उससे क्या फर्क पड़ता है। हमारे यहां तो सामाजिक जानवर बहुत हैं और उनकी उत्पत्ति, रफ़्तार और व्यक्तित्व आभा दिन रात चौगुनी तरक्की कर रही है। 

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हिन्दी मंथ समापन समारोह की यादें (व्यंग्य)
Literaturearticles हिन्दी मंथ समापन समारोह की यादें (व्यंग्य)

हिन्दी मंथ समापन समारोह की यादें (व्यंग्य) आज जब हिंदी का परचम विश्व में कई मंचों पर लहरा रहा है मुझे एक राज्य की राजधानी में आयोजित हुआ हिंदी मंथ का समापन दिवस याद आ रहा है जिसे बहुत शानदार ढंग से आयोजित किया गया था। इस यादगार आयोजन में, मुख्य अतिथि का स्वागत पढ़कर किया गया ताकि स्वागतकर्ता को हिन्दी बोलने में परेशानी न हो। कार्यक्रम के दौरान सूचित किया गया कि देश की राजधानी से एक सरकारी तोप यहां आ रही हैं जो हिन्दी के प्रयोग और विकास बारे विचार सभी को मुफ्त वितरित करेंगी।   

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कृपा करो मां दुर्गा (कविता)
Literaturearticles कृपा करो मां दुर्गा (कविता)

कृपा करो मां दुर्गा (कविता) शारदीय नवरात्रि धर्म की अधर्म पर और सत्य की असत्य पर जीत का प्रतीक हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन्हीं नौ दिनों में मां दुर्गा धरती पर आती है। उनके आने की खुशी में इन दिनों को दुर्गा उत्सव के तौर पर देशभर में धूमधाम से मनाया जाता हैं।

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पिछली सीट पर अनुशासन (व्यंग्य)
Literaturearticles पिछली सीट पर अनुशासन (व्यंग्य)

पिछली सीट पर अनुशासन (व्यंग्य) पिछले दिनों एक ख़ास कार दुर्घटना के कारण तकनीकी दृष्टिकोण से समझाया गया कि पिछली सीट पर भी बैल्ट लगाना ज़रूरी होता है। अब आम गाड़ियों के चालान ज़्यादा हुआ करेंगे।  नई गलती के कारण जुर्माना भरेंगे और व्यक्तिगत गौरव महसूस करेंगे। वैसे भी ख़ास आदमी और ख़ास गाड़ियों की चेकिंग का ख़ास रिवाज़ हमारे यहां नहीं है। आम आदमी तो कानून को ज़रा सा ही तोड़ सकता है, लाल बत्ती क्रासिंग, गलत जगह पार्किंग, गाड़ी चलाते हुए फोन करते हुए कानून तोड़ने में आनंद प्राप्त करता है। एक तरह से स्वतंत्र महसूस करता है। 

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एक फुटबॉल ही तो है ज़िंदगी (व्यंग्य)
Literaturearticles एक फुटबॉल ही तो है ज़िंदगी (व्यंग्य)

एक फुटबॉल ही तो है ज़िंदगी (व्यंग्य) फुटबाल के कर्णधारों को लगने लगे कि फुटबाल की किस्मत हिलने डुलने लगी है तो वे ज्योतिष के द्वारे ही जाएंगे क्युंकि डाक्टर इस रोग के मामले में कुछ कर नहीं सकेगा। ज्योतिषी के कुछ सुझाने के बाद ही वे मैदान का रुख करेंगे। देखा जाए तो ज्योतिष भी तो किस्मत को फुटबाल बनाने लगती है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम उसे बास्कटबॉल समझें या गोल्फ का छोटा मगर खोटा बॉल। अनुभवी ज्योतिषी को पता होता है कि यजमान की शक्ल, अक्ल और ज़रूरत के मुताबिक कैसे खेलना है। यजमान अपने हिसाब से फेल या पास होता है। एक गीत भी तो है, ‘ज़िंदगी है खेल, कोई पास कोई फेल, अनाड़ी है कोई, खिलाड़ी है कोई’।

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फेंकूलाल वाईटी प्रोफेशनल (व्यंग्य)
Literaturearticles फेंकूलाल वाईटी प्रोफेशनल (व्यंग्य)

फेंकूलाल वाईटी प्रोफेशनल (व्यंग्य) आज सहायता के लिए हाथ बढ़ाने वालों को बेवकूफ और बकरा बनाने वालों को महान माना जाता है। बात यह है कि हमारे पड़ोस में फेंकूलाल रहते हैं। घर में कार है, फिर भी बेकार चल रहे हैं। वह क्या है न कि पेट्रोल भैया महंगाई के आसमान पर ऐसे जा बैठे हैं, जैसे वही उनका स्थाई पता हो। कई दिन हुए फेंकूलाल या उनके घरवाले गली-मोहल्ले में दिखाई नहीं दिए। वैसे भी ज्यादा दिखने वाले को समाज ओछी नजर से देखता है। हूँ तो मैं उनका पड़ोसी। किंतु जरूरत पड़ने पर ही उनके पास जाता हूँ। भैया मैंने तो दुनियादारी का यही अर्थ गढ़ लिया है। वैसे मुझे समाज की ज्यादा चिंता नहीं है। चिंता इस बात की है कि कभी चीनी खत्म हो गई या फिर आटा कम पड़ जाए तो देने वाला तो कोई होना चाहिए। इसलिए बीच-बीच में फेंकूलाल की खबर लेता रहता हूँ।

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हिंदी नहीं अंग्रेज़ी नहीं हिंदी (व्यंग्य)
Literaturearticles हिंदी नहीं अंग्रेज़ी नहीं हिंदी (व्यंग्य)

हिंदी नहीं अंग्रेज़ी नहीं हिंदी (व्यंग्य) हमने ऐसे कई स्कूल देखे हैं जहां हिंदी अंग्रेज़ी में पढ़ाई जाती है। ऐसे प्रांगण हैं जहां हिंदी बोलने पर डांट पड़ती है। हिंदी दिवस भी पैंतीस प्रतिशत से ज्यादा अंग्रेज़ी में मनाया जाता है। वातावरण से रोम रोम में रचा बसा उच्चारण कभी रिसता ही नहीं। इतने डायलेक्ट हैं जो भाषा के साथ पूंछ की तरह चिपके रहते हैं। उसी रास्ते पर अध्यापक भी बरसों चलते हैं तो उनके विद्यार्थी भी उसी मार्ग पर चलेंगे न। संसार में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा को हमने अंग्रेजी के साथ अन्य मसाले डालकर स्वादिष्ट सब्जी हिंगलिश बना दिया है। परीक्षा या सरकारी नीतियों के कारण हिंदी प्रयोग करनी पड़ती है। इसलिए जितने में काम चल जाए उससे थोड़ी ज़्यादा सीख लेते हैं। गौर से देखें तो इतनी सीखते हैं कि ठीक से आती नहीं, चली जाती है।  

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हिंदी हैं हम (कविता)
Literaturearticles हिंदी हैं हम (कविता)

हिंदी हैं हम (कविता) कवि ने हिन्दी दिवस पर 'हिंदी हैं हम' नामक कविता में हिन्दी को आज के परिदृश्य में प्रस्तुत किया है। कवि ने साथ ही हिन्दी के विकास के संघर्ष पर भी प्रकाश डाला है। कवि ने इस कविता के माध्यम भविष्य में हिंदी के प्रयोग को बढ़ाने पर भी जोर दिया है। उन्होंने ''हमेशा महकाते रखना इसकी सुगंध को'' के जरिए हिंदी को बढ़ावा देने की बात कही है।

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बढ़िया किस्मत वाले गड्ढे (व्यंग्य)
Literaturearticles बढ़िया किस्मत वाले गड्ढे (व्यंग्य)

बढ़िया किस्मत वाले गड्ढे (व्यंग्य) शहर की मुख्य सड़क की उचित मरम्मत, बरसात से पहले निपटाकर कर भुगतान भी निपटा लिया था क्योंकि नेता, अफसर व ठेकेदार को इसके शुद्ध लाभ मालूम थे। मुख्य सड़क से जुड़ने वाली दूसरी सड़कें मरम्मत के लिए कई साल से रो रही थीं लेकिन बिना बजट उनकी तरफ देखना फायदे का सौदा नहीं था। मरम्मत हुई सड़क की बजरी और सीमेंट को पता था कि उन्होंने आने वाली कम बारिश में भी बह जाना है। उससे बेहतर ही हुआ, इस बार ज़्यादा बरसात की गलती के कारण सड़क के गड्ढे पहले से ज़्यादा दिखने लग गए। बारिश होती गई और गड्ढों की लम्बाई, चौड़ाई व गहराई बढ़ती ही गई। कई गड्ढे अब खड्ढे होने लगे। आठ इंच, दस इंच, दो फुट।

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पशु प्रेम की इंसानी दुनिया (व्यंग्य)
Literaturearticles पशु प्रेम की इंसानी दुनिया (व्यंग्य)

पशु प्रेम की इंसानी दुनिया (व्यंग्य) आजकल पशु प्रेम की दुनिया में वफ़ा बढ़ती जा रही है। इंसान ने इंसान से बेवफाई का डोज़ बढ़ा दिया है तभी यह सोच उग रही है कि इंसान को छोड़ो जानवरों की परवाह करो। जानवरों से खूब प्यार किया जा रहा है। इन प्रेमियों का नारा है, जानवरों की परवाह के लिए बैठक करो, सबको भाषण बांटो, अपना पशु प्रेम प्रकट करो, कुत्तों को सड़क गलियों में ब्रेड खिलाओ। फोटो खिंचवाओ सोशल मीडिया पर डालो, अखबार में फोटो और खबर छपवाओ। साबित कर दो कि हम सबसे ज़्यादा बड़े पशु प्रेमी हैं। बोलते रहो कि जब कोई आवारा कुत्तों को मारता, भगाता, खाने को नहीं देता तो हमें बहुत दुःख होता है। वैसे तो सरकारजी ने नामपट्ट लगवा रखे है कि बंदरों को खाने को न दें।

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पत्रकार और प‍त्रकारिता से जुड़े सवालों के उत्तरों की तलाश (पुस्तक समीक्षा)
Literaturearticles पत्रकार और प‍त्रकारिता से जुड़े सवालों के उत्तरों की तलाश (पुस्तक समीक्षा)

पत्रकार और प‍त्रकारिता से जुड़े सवालों के उत्तरों की तलाश (पुस्तक समीक्षा) पुस्तक ‘जो कहूंगा सच कहूंगा’ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली (आईआईएमसी) के महानिदेशक, पत्रकार, शिक्षाविद प्रो.

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खेल पत्रकारिता की बारीकियां सिखाती एक पुस्तक (पुस्तक समीक्षा)
Literaturearticles खेल पत्रकारिता की बारीकियां सिखाती एक पुस्तक (पुस्तक समीक्षा)

खेल पत्रकारिता की बारीकियां सिखाती एक पुस्तक (पुस्तक समीक्षा) “खेल में दुनिया को बदलने की शक्ति है, प्रेरणा देने की शक्ति है, यह लोगों को एकजुट रखने की शक्ति रखता है, जो बहुत कम लोग करते हैं। यह युवाओं के लिए एक ऐसी भाषा में बात करता है, जिसे वे समझते हैं। खेल वहाँ भी आशा पैदा कर सकता है, जहाँ सिर्फ निराशा हो। यह नस्लीय बाधाओं को तोड़ने में सरकार की तुलना में अधिक शक्तिशाली है”। अफ्रीका के गांधी कहे जानेवाले प्रसिद्ध राजनेता नेल्सन मंडेला के इस लोकप्रिय कथन के साथ मीडिया गुरु डॉ.

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