बिस्कुट वफा के
Literaturearticles बिस्कुट वफा के

बिस्कुट वफा के मैंने दुकानदार से पूछा, क्या आप के पास कुत्तों के लिए भी कोल्डड्रिंक है। वह हंसते हुए बोला, कुत्तों के बिस्कुट तो अंग्रेज़ों के ज़माने से सुनते आए हैं मगर कोल्डड्रिंक, हां, हमारे एक काबिल फायनांस मिनिस्टर ने बजट में कुत्तों के बिस्कुट ज़रूर सस्ते किए थे। अगर दोबारा ऐसा हो गया तो घर की वित्तमंत्री हुक्म देंगी कि बिस्कुट ज़्यादा ले आना। उन्हें बताना पड़ेगा कि कुत्तों वाले बिस्कुट सस्ते हुए हैं आदमी वाले नहीं। पत्नी समझाएगी अपने व आपके लिए मंगा रही हूं बहुत फायदा होगा। सबसे ज़रूरी फायदा, एक दूसरे के प्रति वफादारी बढ़ेगी। सामाजिक जानवर बहुत ज्यादा हो गए हैं इसलिए हम कुत्तों वाले बिस्कुट खाकर अपने आप को कुत्तों की तरह चौकन्ना रख सकेंगे वह बात दीगर है कि आदमी के रूप में चौक्कना रहने की कोशिश में तो फेल हो गए। कोई परेशान करे, गाली दे तो हम चुपचाप सहन करते आए हैं बिस्कुट खाएंगे तो दो चार सुनाने की हिम्मत हम में भी आ जाएगी। किट्टी में बॉस की पत्नी चित कर देती है बिस्कुट खाऊंगी तो उसे शांत कर सकूंगी।

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स्वादिष्ट जूतों की मीठी दुकान (व्यंग्य)
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स्वादिष्ट जूतों की मीठी दुकान (व्यंग्य) कल पत्नी के साथ शहर के सबसे बड़े मॉल में जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। महिलाएं वातानुकूलित बाज़ार जाएं और जूते न खरीदें ऐसा हो नहीं सकता। इसलिए जूतों के ऊंचे, लंबे, चौड़े, रंग बिरंगे शानदार शो रूम में जाने का सुनहरी मौक़ा भी मिला। बहुत भीड़ थी जूते लेने वालों की और परोसने वालों की। मुझे दो सौ प्रतिशत महसूस हुआ कि यह डिज़ाइनर मिठाई का शो रूम है। मैंने पत्नी से कहा क्या यह मिठाई का शो रूम है तो उन्होंने मुझे लगभग लताड़ दिया, चुप रहो कोई सुन लेगा तो क्या सोचेगा आपके बारे में।  

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संदेशों की बारिश (व्यंग्य)
Literaturearticles संदेशों की बारिश (व्यंग्य)

संदेशों की बारिश (व्यंग्य) बरसात सिर्फ पानी की नहीं होती। संदेश, सदभावना और उपहारों ने बरसात जैसा शोर मचा रखा है। सुबह प्रवचन सन्देश भेजने वालों ने तो बारिश से ज़्यादा पत्ते बिखेर ही दिए होते हैं। फोन के रिचार्ज की तारीख से पहले ही पकाने वाले संदेश परोसने शुरू हो जाते हैं। कम्पनी वाले शोर मचा रहे थे कि आपके फोन में पैसे खत्म होने वाले हैं। उन्हें अपना धंधा चलाना है तभी समय से काफी  पहले शुरू हो जाते हैं। कई बार संदेश आया। हम भी कम नहीं अंतिम दिन ही रिचार्ज करवाते हैं। 

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पर्यावरण बचाने के लिए ज़रूरी चिंतन (व्यंग्य)
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पर्यावरण बचाने के लिए ज़रूरी चिंतन (व्यंग्य) पर्यावरण बचाने और सजाने के लिए सिर्फ चिंतन ज़रूरी है। जिस भवन में ज्ञान विज्ञान की छत्रछाया हमेशा रहती है वहां बैठकर यह ज़रूरी काम आसानी से किया जा सकता है। भवन के नाम के कारण प्रभाव उगना निश्चित है। जब खुशनुमा, सुगंधित माहौल में बात की जाएगी तो वह चिंतन में बदल जानी स्वभाविक है। आन्दोलन या उद्देश्य का नाम हिंदी में न रखकर अंग्रेज़ी में रखा जाए तो वास्तव में गहन प्रभाव पैदा होता है। बहुत गहरे बैठ, चिंतन कर योजनाओं का प्रारूप बनाया जाता है। ऐसे गहन चिंतन सत्र को आयोजित करने का एक मात्र उद्देश्य, आज के पर्यावरण को किसी भी तरह बचाना ही नहीं, ज़्यादा समझदार हो चुकी आने वाली पीढ़ियों के लिए जागरूक दुनिया तैयार करना होता है। 

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