विकास के मोर्चे पर अमेरिका-चीन की नकल नहीं करे भारत, अन्यथा बढ़ेंगी उलझनें भारत में बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी से आमलोग ही नहीं, बल्कि देश के प्रमुख रणनीतिकारों में एक समझे जाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत भी परेशान हैं। इसलिए जहां एक ओर विकास की समसामयिक दृष्टि पर ही उन्होंने सवाल उठा दिया है, वहीं दूसरी ओर उसका निर्णायक हल भी बता दिया है, यदि कोई उसकी गहराई में जाये, देखे-परखे तो। संभवतया भारत के सोने की चिड़ियां होने और यहां पर दूध की नदियां बहने का राज भी यही था। इसलिए अब यह मौजूदा मोदी सरकार और उनके मातहत चल रही विभिन्न राज्य सरकारों पर निर्भर है कि वह संघ प्रमुख की सोच को साकार करती हैं या फिर अन्य राजनीतिक बयानबाजियों की तरह ही उनकी दूरदर्शिता भरी सामाजिक बयानबाजी को भी निरर्थक साबित होने के लिए समय-प्रवाह पर सबकुछ छोड़ देती हैं।
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