दलितों को आगे बढ़ाकर कांग्रेस ने चल दी है नई चाल, क्या UP में पार्टी दिखा पायेगी कोई कमाल?
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read moreसुनक को भाग्य ने प्रधानमंत्री तो बना दिया, अब कर्मों से उन्हें समस्याओं पर काबू पाकर दिखाना होगा भारतीय मूल के ऋषि सुनक ब्रिटेन के अगले प्रधानमंत्री होंगे। उन्हें कंज़र्वेटिव पार्टी का नेता चुन लिया गया। वो ब्रिटेन के पहले एशियाई मूल के भी प्रधानमंत्री होंगे। सर ग्राहम ब्रैडी ने इसकी औपचारिक घोषणा कर दी है। सुनक को करीब 200 सांसदों का समर्थन मिला। इससे पहले उनकी प्रतिद्वंद्वी पेनी मॉरडॉन्ट ने मात्र 26 सांसदों का ही समर्थन मिलता देख अपनी दावेदारी दावेदारी वापस ले ली थी। इस घटनाक्रम को देख किंग चार्ल्स लंदन लौट आए। लिज ट्रस ने उन्हें इस्तीफा सौंप दिया। इसके कुछ देर बाद किंग चार्ल्स ने ऋषि सुनक को प्रधानमंत्री का नियुक्ति पत्र सौंप दिया। 28 अक्टूबर को सुनक प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे। इसके बाद 29 अक्टूबर को कैबिनेट का ऐलान किया जाएगा।
read moreआसान नहीं है कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे की डगर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का बहुप्रतिक्षित चुनाव संपन्न हो गया। जैसी की उम्मीद थी गांधी परिवार से आशीर्वाद प्राप्त मल्लिकार्जुन खडगे पार्टी के अध्यक्ष बन गए। वे बहुत विद्वान हैं। आठ भाषाओं के ज्ञाता हैं, अब यह समय तय करेगा कि वह अपने विवेक से पार्टी चलाते हैं या गांधी परिवार की खड़ाऊं कुर्सी पर रखकर निर्णय करते हैं। अगले एक साल में दर्जन भर से ज्यादा राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं। उनके सामने पार्टी को एकजुट रखने की चुनौती है तो गांधी परिवार का विश्वास बनाए रखने की भी। राजस्थान में पैदा हुए संकट पर काबू पानाउनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी। उन्हें गांधी परिवार की छत्रछाया में रहकर, उसके निर्देश स्वीकार कर यह भी सिद्ध करना होगा कि यह निर्णय उनके अपने हैं।
read moreरोशनी की लहर बनाते हैं दीपावली के दीये दीपावली एक लौकिक पर्व है। फिर भी यह केवल बाहरी अंधकार को ही नहीं, बल्कि भीतरी अंधकार को मिटाने का पर्व भी बने। हम भीतर में धर्म का दीप जलाकर मोह और मूर्च्छा के अंधकार को दूर कर सकते हैं। दीपावली के मौके पर सभी आमतौर से अपने घरों की साफ-सफाई, साज-सज्जा और उसे संवारने-निखारने का प्रयास करते हैं। उसी प्रकार अगर भीतर चेतना के आँगन पर जमे कर्म के कचरे को बुहारकर साफ किया जाए, उसे संयम से सजाने-संवारने का प्रयास किया जाए और उसमें आत्मा रूपी दीपक की अखंड ज्योति को प्रज्वलित कर दिया जाए तो मनुष्य शाश्वत सुख, शांति एवं आनंद को प्राप्त हो सकता है। दीपों की कतारें दीपावली का शाब्दिक अर्थ ही नहीं, वास्तविक अर्थ है। कतारों के लिए निरंतरता जरूरी है। और निरंतरता के लिए नपा-तुला क्रम। दीप जब कतार में होते हैं, तो आनंद का सूचक बन जाते हैं। जैसे कोई मूक उत्सव हो- जगर-मगर उजाले का। उजालों की पंक्तियां उल्लास का द्योतक हैं। दीप होते ही प्रेरक हैं। एक बाती, अंजुरी-भर तेल और राह-भर प्रकाश। जितना सादा दीपावली का दीपक होता है, उससे सादा कुछ नहीं हो सकता। माटी ने ज्यों पक-जमकर, बाती के बीज से ज्योत पल्लवित की हो। यह विजय पताका कार्तिक अमावस्या के अंधेरे की पूरी रात दूर रखती है। दीपावली की रात को हर दीप रोशनी की लहर बनाता है, उजालों के समन्दर में अपना योगदान देता है।
read moreहिंदी को रोजगार की भाषा बनाने की दिशा में योगी सरकार ने की ऐतिहासिक पहल मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने हिंदी भाषा में चिकित्सा की पढ़ाई प्रारम्भ करके शिक्षा के क्षेत्र में इतिहास रच दिया है। इस पहल के लिए मुख्यमंत्री शिवराज चौहान की सरहाना की जानी चाहिए। भारत एक विशाल देश है। यहां के विभिन्न राज्यों की अपनी क्षेत्रीय भाषाएं हैं। स्वतंत्रता के पश्चात से ही मातृभाषा को प्रोत्साहित करने की बातें चर्चा में रही हैं, परंतु इनके विकास के लिए कोई ठोस उपाय नहीं किए गए। इसके कारण प्रत्येक क्षेत्र में विदेशी भाषा अंग्रेजी का वर्चस्व स्थापित हो गया। अब भारतीय जनता पार्टी की सरकारों ने देश के विभिन्न राज्यों की मातृभाषाओं के विकास का बीड़ा उठाया है। इसका प्रारम्भ मध्य प्रदेश से हुआ है। मध्य प्रदेश के पश्चात अब उत्तर प्रदेश में भी चिकित्सा एवं तकनीकी पढ़ाई हिंदी में होगी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने ट्वीट के माध्यम से इसकी घोषणा करते हुए कहा है कि उत्तर प्रदेश में मेडिकल और इंजीनियरिंग की कुछ पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद कर दिया गया है। आगामी वर्ष से प्रदेश के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में इन विषयों के पाठ्यक्रम हिंदी में भी पढ़ने के लिए मिलेंगे। उल्लेखनीय है कि गत 16 अक्टूबर को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भोपाल में चिकित्सा शिक्षा की हिंदी भाषा की तीन पुस्तकों का विमोचन किया। इनमें एमबीबीएस प्रथम वर्ष की एनाटॉमी, फिजियोलॉजी एवं बायो केमिस्ट्री की पुस्तकें सम्मिलित हैं, जिनका हिन्दी में अनुवाद किया गया है। उल्लेख करने योग्य बात यह भी है कि चिकित्सीय शब्दावली को ज्यों का त्यों रखा गया है, क्योंकी संपूर्ण पाठ का हिंदी में अनुवाद करना संभव नहीं है। यदि ऐसा किया जाता है, तो इससे छात्रों के लिए कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। राज्य के 13 राजकीय महाविद्यालयों में हिंदी में चिकित्सा की पढ़ाई प्रारम्भ हो गई है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इस पहल के लिए शिवराज सरकार को बधाई देते हुए कहा कि आज का दिन शिक्षा के क्षेत्र में नवनिर्माण का दिन है। शिवराज सरकार ने देश में सर्वप्रथम चिकित्सा की हिंदी में पढ़ाई प्रारम्भ करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की इच्छा की पूर्ति की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिंदी, तमिल, तेलुगू, मलयालम, गुजराती, बंगाली आदि सभी क्षेत्रीय भाषाओं में चिकित्सा एवं तकनीकी शिक्षा उपलब्ध कराने का आह्वान किया था।इसे भी पढ़ें: हिन्दी में उच्च शिक्षा गांव-देहात, गरीब बच्चों के लिए योगी सरकार का तोहफाउन्होंने कहा कि देश के विद्यार्थी जब अपनी भाषा में पढ़ाई करेंगे, तभी वह सच्ची सेवा कर पाएंगे। साथ ही लोगों की समस्याओं को ठीक प्रकार से समझ पाएंगे। चिकित्सा के पश्चात अब 10 राज्यों में इंजीनियरिंग की पढ़ाई उनकी मातृभाषा में प्रारम्भ होने वाली है। देशभर में आठ भाषाओं में इंजीनियरिंग की पुस्तकों का अनुवाद का कार्य प्रारम्भ हो चुका है और कुछ ही समय में देश के सभी विद्यार्थी अपनी मातृभाषा में चिकित्सा एवं तकनीकी शिक्षा प्राप्त करना प्रारम्भ करेंगे। मैं देश भर के युवाओं से कहता हूं कि अब भाषा कोई बाध्यता नहीं है। आप इससे बाहर आएं। आपको अपनी मातृभाषा पर गर्व करना चाहिए। अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करके आप अपनी प्रतिभा का और अच्छी तरह प्रदर्शन करने के लिए स्वतंत्र हैं। मातृभाषा में व्यक्ति सोचने, समझने, अनुसंधान, तर्क एवं कार्य और अच्छे ढंग से कर सकता है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि भारतीय छात्र जब मातृभाषा में चिकित्सा और तकनीकी शिक्षा का अध्ययन करेंगे तो भारत विश्व में शिक्षा का बड़ा केन्द्र बन जाएगा। जो लोग मातृभाषा के समर्थक हैं, उनके लिए आज का दिन गौरव का दिन है। उन्होंने नेल्सन मंडेला का स्मरण करते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति के सोचने की प्रक्रिया अपनी मातृभाषा में ही होती है। नेल्सन मंडेला ने कहा था कि अगर व्यक्ति से उसकी मातृभाषा में बात करें तो वह बात उसके दिल में पहुंचती है। यह सर्वविदित है कि मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करना अत्यंत सहज एवं सुगम होता है। अपनी मातृभाषा में विद्यार्थी किसी भी विषय को सरलता से समझ लेता है, जबकि अन्य भाषा में उसे कठिनाई का सामना करना पड़ता है। विश्व भर के शिक्षाविदों ने मातृभाषा में शिक्षा प्रदान किए जाने को महत्व दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार अपनी मातृभाषा में चिकित्सा की पढ़ाई करवाने वाले देशों में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य व्यवस्था अन्य देशों से अच्छी स्थिति में है। चीन, रूस, जर्मनी, फ्रांस एवं जापान सहित अनेक देश अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। सर्वविदित है कि ये देश लगभग प्रत्येक क्षेत्र में अग्रणी हैं। इन देशों ने अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करके ही उन्नति प्राप्त की है। यदि स्वतंत्रता के पश्चात भारत में भी मातृभाषा में चिकित्सा एवं तकनीकी शिक्षा प्रदान की जाती तो हम भी आज उन्नति के शिखर पर होते। उल्लेखनीय है कि नई शिक्षा नीति के अंतर्गत भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहित किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि हिंदी में चिकित्सा की पढ़ाई प्रारंभ होने से देश में बड़ा सकारात्मक परिवर्तन आएगा। लाखों छात्र अपनी भाषा में अध्ययन कर सकेंगे तथा उनके लिए कई नये अवसरों के द्वार भी खुलेंगे। निसंदेह ग्रामीण परिवेश एवं मध्यम वर्ग के हिंदी माध्यम में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए चिकित्सा एवं तकनीकी पढ़ाई सुगम हो जाएगी, क्योंकि उन्हें चिकित्सा विज्ञान की पुस्तकों में अंग्रेजी भाषा के कठिन शब्द समझने में कठिनाई होती है। चिकित्सा एवं इंजीनियरिग की शिक्षा के पश्चात विज्ञान, वाणिज्य एवं न्याय की शिक्षा भी मातृभाषा में होनी चाहिए। न्यायिक क्षेत्र में सारे कार्य भी मातृभाषा में होने चाहिए। न्यायिक मामलों की कार्यवाही भी मातृभाषा में होनी चाहिए। प्राय : न्यायालयों का सारा कार्य अंग्रेजी में होता है। लोगों को पता नहीं होता कि अधिवक्ता न्यायाधीश से क्या कह रहा है और क्या नहीं। उन्हें कार्यवाही की कोई जानकारी नहीं होती। अपनी मातृभाषा में न्यायिक कार्य होने से लोगों को आसानी हो जाएगी।इसे भी पढ़ें: हिंदी में चिकित्सा की पढ़ाई कराना ऐसा क्रांतिकारी कदम है जिसके दूरगामी परिणाम होंगेकुछ लोग हिंदी में चिकित्सा एवं तकनीकी की पढ़ाई का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि छात्रों को हिंदी में पुस्तकें उपलब्ध नहीं होंगी। वास्तव में यही वे लोग हैं, जो अंग्रेजी का वर्चस्व स्थापित रखने के पक्ष में हैं। ये लोग नहीं चाहते कि भारतीय भाषाएं उन्नति करें। ऐसे लोगों के कारण ही स्वतंत्रता के पश्चात भी अंग्रेजी फलती-फूलती रही तथा भारतीय भाषाओं का विकास अवरुद्ध होता चला गया। वर्तमान में इन विषयों की बहुत सी पाठ्य पुस्तकें हिंदी में उपलब्ध नहीं हैं, किन्तु अभी चिकित्सा एवं तकनीकी पुस्तकों का अनुवाद का कार्य चल रहा है। पाठ्यक्रम की पुस्तकों के अतिरिक्त चिकित्सा से संबंधित अन्य पुस्तकों का अनुवाद का कार्य भी होगा। भविष्य में इन विषयों की पुस्तकों का कोई अभाव नहीं रहेगा। इसलिए पुस्तकों की उपलब्धता के कारण इस नई पहल का विरोध करना उचित नहीं है। पूर्व में अंग्रेजी भाषा का अच्छा ज्ञान न होने के कारण योग्य एवं प्रतिभाशाली विद्यार्थी चिकित्सा एवं तकनीकी आदि विषयों की पढ़ाई नहीं कर पाते थे, किन्तु अब भाषा की बाधा दूर हो रही है। अब अंग्रेजी भाषा विद्यार्थियों के सुनहरे भविष्य के आड़े नहीं आएगी। यह देश का दुर्भाग्य है कि हिंदी को देश की राजभाषा घोषित करने पश्चात भी एक राजनीतिक षड्यंत्र के कारण विदेशी भाषा अंग्रेजी में कार्य करने को विशेष महत्व दिया जाता रहा है। अंग्रेजी के कारण हिंदी सहित लगभग सभी भारतीय भाषाएं पिछड़ती चली गईं। ये सब भाषाएं आज भी अपने मान-सम्मान के लिए संघर्ष कर रही हैं। किन्तु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अथक प्रयासों से चिकित्सा एवं तकनीकी पढ़ाई हिंदी में प्रारम्भ होने से यह आशा जगी है कि भारतीय भाषाओं को उनका खोया हुआ मान-सम्मान पुन: प्राप्त हो सकेगा।
read moreपसमांदा मुस्लिमों को जोड़ने के लिए भाजपा की योजना जानकर अन्य दल हैरान रह जाएंगे 2024 लोकसभा चुनावों तथा उससे पूर्व जम्मू-कश्मीर सहित कई राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देने का काम शुरू का दिया है। इसी कड़ी में जब हैदराबाद में आयोजित भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पसमांदा मुस्लिम समाज की चर्चा की और स्नेह यात्रा निकालने की बात कही तबसे भाजपा और पसमांदा मुस्लिम समाज के संबधों की चर्चा जोर पकड़ रही है। अब पसमांदा समाज को अपनी ओर मोड़ने के लिए उत्तर प्रदेश भाजपा ने भी अपना अभियान तेज कर दिया है। भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि 2022 के विधानसभा चुनावों और उसके बाद आजमगढ़ और रामपुर जहां 50 प्रतिशत मुस्लिम आबादी रहती है वहां पर पसमांदा मुस्लिम समाज के 8 प्रतिशत लोगों ने भाजपा को अपना मत दिया जिसकी वजह से पार्टी को सफलता मिली है। अब उसी फीडबैक के आधार पर भाजपा ने अपनी तैयारियों को धार देना शुरू कर दिया है। आंकड़ों के अनुसार भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में विकास की योजनाओं का सर्वाधिक लाभ मुस्लिम समाज को ही मिला है। कोरोना कालखंड में फ्री राशन योजना का 80 प्रतिशत, सब्सिडी वाले राशन से 51 प्रतिशत सहित स्वास्थ्य बीमा, खाते में पैसा डालने की योजना का लाभ सहित पसमांदा मुस्लिम समाज को सरकार की घर बनाने में मदद और लड़कियों की शादी में मदद तो मिल ही रही है वहीं रोजगार और कौशल विकास योजना में भी पसमांदा मुस्लिम समाज के लोगों को लाभ मिला है। वहीं उज्ज्वला योजना जैसी योजनाओं का लाभ भी पसमांदा मुस्लिम समाज के लोगों को मिल रहा है।
read moreहिंदी में चिकित्सा की पढ़ाई कराना ऐसा क्रांतिकारी कदम है जिसके दूरगामी परिणाम होंगे हिन्दी को उसका गौरवपूर्ण स्थान दिलाने के लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार को साधुवाद दिया जाना चाहिए कि उनके प्रयासों से देश में पहली बार मध्य प्रदेश में चिकित्सा की पढ़ाई हिंदी में शुरू होने जा रही है। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हिन्दी में मेडिकल की पढ़ाई का शुभारम्भ कर एक नए युग की शुरुआत की है, इससे न केवल हिन्दी का गौरव बढ़ेगा बल्कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा एवं राज-काज की भाषा बनाने में आ रही बाधाएं दूर होंगी। अंग्रेजी भाषा पर निर्भरता की मानसिकता को जड़ से खत्म करने की दिशा में यह एक क्रांतिकारी एवं युगांतकारी कदम होने के साथ अनुकरणीय भी है, जिसके लिये अन्य प्रांतों की सरकारों को बिना राजनीतिक आग्रहों एवं पूर्वाग्रहों के पहल करनी चाहिए।
read moreहिमाचल विधानसभा चुनावों में इस बार त्रिकोणीय मुकाबला नजर आ रहा है हिमाचल प्रदेश की 68 विधानसभा सीटों के भाग्य का फैसला लिखे जाने की तारीखों की घोषणा मुख्य चुनाव आयोग ने कर दी है। 12 नवम्बर 2022 को वोटिंग एवं 8 दिसम्बर को परिणाम घोषित किये जायेंगे। इस बार अकेले हिमाचल में हो रहे चुनाव काफी दिलचस्प एवं अहम होने के साथ कांटे की टक्कर वाले होंगे। हिमाचल में अब तक मुख्य चुनावी दंगल भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होता आया है लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी भी अपना भाग्य आजमाने के लिये मैदान में है। आम आदमी पार्टी के लिये पूर्वानुमान लगाना इसलिये पैचीदा है कि उसकी मुफ्त रेवड़ी वाली संस्कृति कभी तो अपूर्व असरकारक हो जाती है और कभी एकदम गुब्बारे से निकली हवा की तरह फिस्स। फिर भी आप हिमाचल के लोगों को भी लुभाने की कोशिश कर रही है, उसके हौसले भी बुलन्द हैं, इसलिए देखना होगा कि हिमाचल की जनता इस पार्टी को कितना आशीर्वाद देती है। जो भी हो, आम आदमी पार्टी की चुनावी उपस्थिति भाजपा एवं कांग्रेस दोनों ही दलों के लिये एक चुनौती बन रही है। निश्चित ही इस बार हिमाचल के चुनाव खास हैं।
read moreमोहन भागवत ने जिन मुद्दों की ओर ध्यान आकर्षित किया है, उस पर हर भारतीय को चिंतन करना चाहिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रतिवर्ष दशहरे पर नागपुर मुख्यालय में आयोजित होने वाला प्रबोधन उत्सव संपन्न हुआ। संघ के परमपूजनीय सरसंघचालक मोहनराव जी भागवत ने अपने उद्बोधन में कहा कि किसी भी देश में जनसंख्या असंतुलन उस देश के विभाजन का कारण बन सकता है। उन्होंने कहा- हमें समझना होगा कि जब-जब जनसांख्यिकीय असंतुलन होता है, तब-तब उस देश की भौगोलिक सीमाओं में परिवर्तन होता है। उन्होंने कहा कि जन्म दर में असमानता के साथ-साथ लोभ, लालच, जबर्दस्ती से चलने वाला मतांतरण भी जनसंख्या असंतुलन का बड़ा कारण बनता है। हमें इसका भी ध्यान रखना होगा। भागवत जी के अनुसार जनसंख्या नियंत्रण के साथ-साथ पांथिक आधार पर जनसंख्या संतुलन भी महत्त्व का विषय है, जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। उन्होंने देश में एक ऐसी समग्र जनसंख्या नीति निर्माण का आग्रह रखा जो सभी पर समान रूप से लागू होना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट मत रखा कि जनसंख्या असंतुलन भौगोलिक सीमाओं में बदलाव का कारण बनती है, ऐसे में नई जनसंख्या नीति सब पर समान रूप से लागू हो और किसी को छूट नहीं मिलनी चाहिए। भारत के लिए ये कोई नया विषय नहीं है। देश के प्रमुख विचारक, चिंतक, लेखक, राजनीतिज्ञ इस विषय को समय समय पर अपने शब्दों में प्रकट करते रहे हैं। इस संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी प्यु रिसर्च ने जो कहा है उस पर पूरे देश को ध्यान केंद्रित करना चाहिए। भारत के वर्ष 2011 के जनगणना के आंकड़ों पर अमेरिकी राजधानी वाशिंगटन में मुख्यालय वाले “प्यु रिसर्च सेंटर” ने भारत के संदर्भ में बहुत ही विस्फोटक तथ्य रखे हैं। मोहनराव जी भागवत ने अपने दशहरा उद्बोधन में जो कहा उसकी प्रसंशा या आलोचना करने से पूर्व हमें यह रिपोर्ट पढ़ लेनी चाहिए। रिपोर्ट मे कहा गया था कि भारत में हिंदू व मुस्लिम जनसंख्या में तेजी से बढ़ता असंतुलन भारत के कई राज्यों व सैंकड़ों जिलों में अलगाव, अशांति, टकराव व सामाजिक दुर्भाव की स्थितियां उत्पन्न करेगा। “प्यु रिसर्च सेंटर” की यह रिपोर्ट देश भर में समय समय पर पूर्णतः सत्य साबित हुई है। सबसे बड़ी खतरनाक बात इस रिपोर्ट में हमें आगाह करते हुए यह कही गई है कि वर्ष 2050 तक भारत विश्व का सबसे अधिक मुस्लिम जनसँख्या वाला देश बन जाएगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व में मुसलमानों और ईसाइयों की जनसंख्या लगभग बराबर हो जाएगी। प्यु ने अपनी रिपोर्ट में वर्ष 2070 तक इस्लाम के विश्व में सबसे बड़े धर्म बन जाने की भविष्यवाणी भी की है। विश्व भर में मुस्लिमों द्वारा अपनाई जा रही अधिकतम प्रजनन दर के कारण यह स्थिति उत्पन्न होने वाली है। एक तथ्य यह भी है कि मुस्लिमों की जनसंख्या में यह वृद्धि कोई संयोग नहीं है, या कोई सामाजिक प्रवृत्ति नहीं है बल्कि यह एक षड्यंत्र पूर्ण योजना का एक अंश है। मुस्लिमों में जनसंख्या को बढ़ाना व लक्षित क्षेत्र या देश में पहले निर्णायक होना व फिर वहां का शासक होना एक अभियान बन गया है। इस अभियान में सम्पूर्ण विश्व के मुस्लिम एक मत से मतान्ध होकर सम्मिलित हो गए हैं।इसे भी पढ़ें: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ खुद को बदल रहा है या सिर्फ अपने बारे में भ्रम दूर कर रहा है ?
read moreरूस जैसे तेवर और भी बड़े देशों ने दिखाये तो इस दुनिया से छोटे देशों का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा यूक्रेन के कुछ हिस्सों के रूस में विलय के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र महासभा में मतदान के बाद विश्व भर में बहस चल रही है कि यदि ताकतवर देश इस तरह छोटे देशों पर कब्जा करने लगेंगे तो यह दुनिया किस ओर जायेगी?
read moreप्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों से भारत में सांस्कृतिक पुनर्जागरण हो रहा है 23 अक्टूबर, 2019 को प्रधनमंत्री नवोन्मेष शिक्षण कार्यक्रम के समापन समारोह को संबोधित करते हुए पूर्व उपराष्ट्रपति एम.
read moreविकसित देशों के अर्थशास्त्री भारत की तेज विकास दर को जानबूझकर अनदेखा कर रहे हैं विकसित देशों के कुछ अर्थशास्त्रियों ने भारत के विरुद्ध जैसे एक अभियान ही चला रखा है और भारत के आर्थिक विकास को वे पचा नहीं पा रहे हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था ने अप्रैल-जून 2022 तिमाही में 13.
read moreदशकों तक यूपी की सियासत की धुरी रहे मुलायम अंत में अपने परिवार को एकजुट नहीं कर पाये दशकों तक राजनीतिक दांव-पेंच के पुरोधा और विपक्ष की सियासत की धुरी रहे समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव कभी सियासी फलक से ओझल नहीं हुए। कभी कुश्ती के अखाड़े के महारथी रहे मुलायम सिंह यादव बाद में सियासी अखाड़े के भी माहिर पहलवान साबित हुए। उनका नाम मुलायम जरूर था लेकिन वह कड़े संघर्ष कर अपना सियासी मुकाम बनाने में सफल रहे थे। मुलायम सिंह यादव अपने समर्थकों के बीच हमेशा ‘नेता जी’ के नाम से मशहूर रहे। राम मंदिर आंदोलन के चरम पर पहुंचने के दौरान वर्ष 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन करने वाले मुलायम सिंह यादव को देश के हिंदी हृदय स्थल में हिंदुत्ववादी राजनीति के उभार के बीच धर्मनिरपेक्षतापूर्ण सियासत के केंद्र बिंदु के तौर पर देखा गया था।
read moreलोकसभा और विधानसभा चुनावों से पहले नड्डा के बारे में बड़ा फैसला करने जा रही है भाजपा भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल अगले साल जनवरी में खत्म होने जा रहा है लेकिन माना जा रहा है कि उन्हें साल 2024 के लोकसभा चुनाव तक इस पद पर बरकरार रखा जा सकता है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का मानना है कि संगठन में निरंतरता बनाये रखने की जरूरत है क्योंकि लोकसभा चुनावों से पहले गुजरात, त्रिपुरा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं।
read moreखड़गे के सामने नहीं टिक पा रहे शशि थरूर, गांधी परिवार की योजना सही दिशा में बढ़ रही है सस्पेंस और हॉरर हिंदी फिल्म की तरह हो गया है कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव। प्रत्येक घंटे कुछ ना कुछ अप्रत्याशित बदलाव हो रहे हैं। कौन नामांकन भर रहा है, कौन पीछे हट रहा है, यही ड्रामा बीते कुछ दिनों से दिल्ली के 24 अकबर रोड़ स्थित कांग्रेस मुख्यालय पर देखने को मिल रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर लगाए गए राजनैतिक पंडितों के भी अभी तक के सभी कयास फेल हो गए हैं। कहानी अब मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर पर आकर रूक गई है। जबकि, शुरुआत राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से हुई थी। रेस में उनके पिछड़ने के बाद कांग्रेस के दूसरे कद्दावर नेताओं जैसे दिग्विजय सिंह व कमलनाथ और ना जाने कितने धुरंधरों के ईदगिर्द अध्यक्ष बनने की गेंद घूमती रही। पर, कहानी में घंटे-घंटे भर बाद मोड़ कुछ ऐसे आए जिससे उपरोक्त नाम एक-एक करके किनारे होते गए। इसी दरम्यान मौजूदा अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपनी चुप्पी तोड़ी और अपने सबसे वफादार नेता कमलनाथ के नाम पर उन्होंने गर्दन हिलाकर स्वीकृति देकर उन्हें रात में ही भोपाल से दिल्ली तलब किया। लेकिन जब वह आए तो उन्होंने अपनी भविष्य की राजनीतिक महत्वकांक्षा सोनिया गांधी को बताकर कांग्रेस अध्यक्ष पद के संभावित उम्मीदवार से अपना नाम हटवा लिया। दरअसल, अगले साल मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं, जहां कमलनाथ खुद को मुख्यमंत्री के तौर पर देख रहे हैं। क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद मुख्यमंत्री उम्मीदवारी में उनका नाम सबसे आगे है जिस पर दिल्ली के शीर्ष नेतृत्व की भी हामी है। हालांकि इस कड़ी में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी कतार में हैं। पर, उनकी दावेदारी कई कारणों से कमलनाथ के मुकाबले कमजोर है। लेकिन, मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा उनमें भी कमलनाथ से कम नहीं है। उनके भीतर भी रात दिन मुख्यमंत्री बनने के सपने हिलोरे मारते हैं। इसी कारण उन्होंने भी कांग्रेस अध्यक्ष पद की उम्मीदवारी में कुछ खास दिलचस्पी नहीं दिखाई।
read moreजम्मू-कश्मीर में विकास और बदलाव देखकर गुपकार गठबंधन के होश उड़ना स्वाभाविक है जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35-ए का समापन होने के बाद अब केंद्र सरकार ने वहां की राजनीति में भी अहम बदलाव करने की तैयारी प्रारंभ कर दी है। विजयादशमी के अवसर पर गृहमंत्री अमित शाह ने माता वैष्णो देवी मंदिर के दर्शन करके अपनी धारदार यात्रा की शुरुआत करते हुए गुपकार समूह की हवा निकालते हुए उन सभी विरोधियों को कड़ा संदेश दिया जो हमेशा पाकिस्तान की तरफदारी करते रहते हैं। भारतीय जनता पार्टी ने जम्मू-कश्मीर में अपनी सरकार बनाने की तैयारी आरम्भ कर दी है और वहां पर विकास की तीव्र होती गति व दुरुस्त होती कानून व्यवस्था का सहारा लेकर परिवारवाद की राजनीति करने वाले विरोधी दलों का सफाया करने का जिम्मा गृहमंत्री अमित शाह ने स्वयं अपने हाथों में ले लिया है। आज़ादी के बाद से राज्य के तीन परिवारों ने महज अपनी राजनीति चमकाने के लिए राज्य का बेड़ा गर्क कर के रखा था। आतंकवाद, भ्रष्टाचार, भाई भतीजावाद ने जन सामान्य का जीवन दुश्वार कर दिया था। अब अनुच्छेद 370 का समापन हो जाने के बाद आगामी चुनावों में इन सभी परिवारवादी दलों की राजनीति का समापन करने की तैयारी भी कर ली गई है।
read moreसांप्रदायिक सद्भाव को मजबूत करने वाला है संघ प्रमुख मोहन भागवत का भाषण विजयदशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के वार्षिक विजय-उद्बोधन का न केवल राष्ट्रीय बल्कि सामाजिक एवं राजनीतिक महत्व है। सर संघचालक ने अपने विजय-उद्बोधन में राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों का उल्लेख करते हुए संघ सोच को एक बार फिर से स्पष्ट किया है। उन्होंने देश में साम्प्रदायिक सद्भाव पर अपना विस्तृत दृष्टिकोण पेश करते हुए न केवल हिन्दू शब्द का विरोध करने वालों पर करारा प्रहार किया है, बल्कि देश में अराजकता का माहौल पैदा करने वाले मुस्लिम संगठनों पर भी सीधी चोट की है। उन्होंने देश के समग्र एवं त्वरित विकास के लिये जनसंख्या नियंत्रण की नीति पर जोर दिया है। यह विजय-उद्बोधन देकर उन्होंने जहां देश की जनता को जगाया वहीं राजनीतिक दलों की नींद उड़ा दी। सरकार को कुछ जरूरी कार्यों का दिशा-निर्देश भी दिया गया। संघ की नजरों में धर्मांतरण और घुसपैठ से जनसंख्या का संतुलन बिगड़ा है और देश का विकास बाधित हुआ है, भागवत इन समस्याओं से निपटने और उनके खिलाफ जनमत का निर्माण करने के लिए संकल्प ले चुके हैं। उन्होंने देश के सामने कुछ ऐसी बड़ी चुनौतियों को रेखांकित किया, जिसे लेकर राजनीतिक दलों एवं साम्प्रदायिक संगठनों की भृकुटि कुछ तन गई है।
read moreसंघ को प्रशंसा या आलोचना से कोई फर्क नहीं पड़ता, वह तो बस राष्ट्रसेवा में लीन रहने वाला संगठन है हिन्दू संगठन और राष्ट्र को परमवैभव पर ले जाने के जिस उद्देश्य को लेकर सन 1925 में विजयादशमी के दिन नागपुर में डॉ.
read moreयूपी में कांग्रेस के नये अध्यक्ष खुद अपना चुनाव दो बार से हार रहे हैं, वह पार्टी को कैसे खड़ा कर पाएंगे?
read moreमुस्लिमों को सबसे ज्यादा पद्म पुरस्कार किसने दिये?
read moreपीएफआई पर प्रतिबंध लगने से जो नेता आंसू बहा रहे हैं, देश उन्हें माफ नहीं करेगा केंद्र सरकार ने आतंक के खिलाफ कड़ा कदम उठाते हुए देश के अंदर रहते हुए देश विरोधी गतिविधियां संचालित करने वाले कुख्यात संगठन पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) व उसके सहयोगी संगठनों- रिहैब इंडिया फाउंडेशन, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, ऑल इंडिया इमाम काउंसिल, एनसीएचआरओ, नेशनल वीमेन फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्वायर इंडिया फाउंडेशन, रिहेब फाउंडेंशन (केरल) को पांच साल के लिए यूएपीए कानून के अंतर्गत प्रतिबंधित कर दिया गया है। केंद्र सरकार द्वारा जारी की गयी सूचना के अनुसार अब राज्य सरकारें भी पीएफआई व उसके सहयोगी संगठनों के सदस्यों व समर्थकों पर बेहिचक कड़ी कानूनी कार्यवाही कर सकती हैं और राज्य स्तर पर भी प्रतिबंध लगा सकती हैं।
read moreपीएफआई पर प्रतिबंध का फैसला देर से उठाया गया एक सही कदम है आखिरकार तमाम किन्तु-परंतु के बीच पीएफआई को बैन कर ही दिया गया। केंद्र कि मोदी सरकार ने 27 अक्टूबर को देर रात्रि एक राजपत्र अधिसूचना जारी कर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून के कड़े प्रावधानों के तहत ‘पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पीएफआई (पीएफआई) पर पांच साल के लिए प्रतिबंध लगाए जाने की घोषणा की तो इस पर सियासत भी शुरू हो गई। पीएफआई के साथ-साथ ही आठ अन्य संगठनों की भी नकेल कसी गई है। ये सभी संगठन आतंकी गतिविधियों में शामिल थे। प्रतिबन्ध लगाने के बाद पीएफआई ने पहली प्रतिक्रिया में बहुत ठंडा जवाब देते हुए कहा कि सभी को सूचित किया जाता है कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया को भंग कर दिया गया है। पीएफआई सरकार के इस निर्णय को स्वीकार करता है। पीएफआई पर देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप है। दावा ये भी किया जा रहा है पीएफआई प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन सिमी का ही नया अवतार है। इस आशंका की वजह ये है कि कुछ दिनों से चल रही छापेमारी में देश के अलग-अलग भागों से पीएफआई के जो नेता और पदाधिकारी गिरफ्तार किए गए हैं, इनका पूर्व में सिमी के साथ टेरर कनेक्शन पाया जाचुका था। प्रतिबंध से पूर्व पीएफआई के ठिकानों पर दो बार हुई छापेमारी और इस दौरान अनेक संदिग्ध लोगों को हिरासत में लिया जाना यही बताता है कि इस संगठन का मकड़जाल बेहद मजबूत हो गया था। पहली बार के छापों में एक दर्जन राज्यों में इस संगठन के ठिकानों पर एनआइए और ईडी के छापों के दौरान सौ से अधिक लोगों को पकड़ा गया था। उस समय अनेक ऐसे आपत्तिजनक दस्तावेज मिले थे, जो यही बताते थे कि यह संगठन किसी आतंकी संगठन की तरह देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त है। इसलिस ऐसे संगठन के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई करने के साथ ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए, जिससे भविष्य में ऐसे समूह सिर न उठा सकें।
read moreजब हम गुलाम थे तब एक थे लेकिन आजाद होते ही हम बंट क्यों गये हैं?
read moreमुस्लिमों को समझ आ चुका है कि समाजवादी पार्टी को सिर्फ उनके वोट चाहिए राजनीति के मैदान में लगातार भारतीय जनता पार्टी से पटखनी खा रहे समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने सफलता की सीढ़ियां चढ़ने के लिए नई राह पकड़ ली है। इन दिनों अखिलेश काफी बदले-बदले नजर आ रहे हैं। एक तरफ तो वह सड़क पर संघर्ष करते दिखाई दे रहे हैं तो दूसरी ओर सपा के पुराने और नाराज साथियों को भी मनाने में लगे हैं। राजनीति के कुछ जानकार इस बदलाव को मुलायम की राजनैतिक शैली से जोड़ कर देख रहे हैं। नेताजी के नाम से विख्यात मुलायम हमेशा अपनी सियासत का तानाबाना सड़क पर संघर्ष करते हुए तैयार करते थे तो अपने वफादारों को कभी नाराज या अनदेखा नहीं करते थे। यही नेताजी की सियासी पूंजी हुआ करती थी, लेकिन जबसे समाजवादी पार्टी में अखिलेश युग का प्रारम्भ हुआ तब से समाजवादी पार्टी की सियासत ड्राइंग रूम तक में सिमट कर रह गई थी। अखिलेश हाँ में हाँ मिलाने वाले चटुकारों से घिरे रहते हैं। सपा के संघर्ष के दिनों के नेताओं को यह अच्छा नहीं लगता था, लेकिन उनकी कहीं सुनी नहीं जाती थी, ऐसे में कई नेताओं ने समाजवादी पार्टी से किनारा कर लिया तो कुछ अपने घरों में सिमट गए।
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