Gyan Ganga: प्रभु गैया चराते-चराते वृन्दावन से निकले और ताल वन में पहुँच गए
Religion Gyan Ganga: प्रभु गैया चराते-चराते वृन्दावन से निकले और ताल वन में पहुँच गए

Gyan Ganga: प्रभु गैया चराते-चराते वृन्दावन से निकले और ताल वन में पहुँच गए सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे !

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Gyan Ganga: परमात्मा को तो हम मानते हैं किन्तु परमात्मा की बात नहीं मानते हैं
Religion Gyan Ganga: परमात्मा को तो हम मानते हैं किन्तु परमात्मा की बात नहीं मानते हैं

Gyan Ganga: परमात्मा को तो हम मानते हैं किन्तु परमात्मा की बात नहीं मानते हैं सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे !

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वाराणसी का महाश्मशान : ‘मणिकर्णिका’ जहां जलती चिताओं के बीच होता है नृत्य
Religion वाराणसी का महाश्मशान : ‘मणिकर्णिका’ जहां जलती चिताओं के बीच होता है नृत्य

वाराणसी का महाश्मशान : ‘मणिकर्णिका’ जहां जलती चिताओं के बीच होता है नृत्य वैसे तो बनारस के सभी 84 गंगा घाट अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है। सबका अपना एक अलग ही इतिहास है अलग ही महत्ता है सभी की अपनी विशेषतायें है। किसी घाट की सुबह प्रसिद्व है तो किसी की शाम, किसी गंगा घाट की आरती लोगो को भाती है तो किसी गंगा घाट का स्नान लोगो आनंददायी लगता है। कुछ घाट ऐसे है जहां केवल दाह संस्कार किये जाते है। उन्ही घाटों में से एक है 'मणिकर्णिका घाट

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भारत में स्थित हैं यह प्रसिद्ध शनि मंदिर, दूर-दूर से दर्शन करने आते हैं लोग
Religion भारत में स्थित हैं यह प्रसिद्ध शनि मंदिर, दूर-दूर से दर्शन करने आते हैं लोग

भारत में स्थित हैं यह प्रसिद्ध शनि मंदिर, दूर-दूर से दर्शन करने आते हैं लोग भगवान शनि देव हिंदू पौराणिक कथाओं में सबसे लोकप्रिय देवताओं में से एक हैं। शनि देव को छायापुत्र के नाम से भी जाना जाता है। वे सूर्य और छाया के पुत्र हैं और यम के भाई और न्याय के देवता हैं। कहा जाता है कि शनिदेव सभी को उनके विचार, वाणी और कर्म के आधार पर फल देते हैं। देशभर में लोग भगवान शनिदेव का पूजन करते हैं और कई प्रसिद्ध मंदिर भी हैं। तो चलिए आज इस लेख में हम आपको भारत में स्थित शनिदेव के कुछ प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में बता रहे हैं-

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Gyan Ganga: कर्मों का फल निश्चित रूप से हर किसी को भोगना ही पड़ता है
Religion Gyan Ganga: कर्मों का फल निश्चित रूप से हर किसी को भोगना ही पड़ता है

Gyan Ganga: कर्मों का फल निश्चित रूप से हर किसी को भोगना ही पड़ता है भगवान श्रीराम जी ने सुग्रीव के मन की थाह पा ली थी। वे तो समझ गए थे कि सुग्रीव के मन में श्रीविभीषण जी के संबंध में अतिअंत ही नकारात्मक विचारों ने आकार ले रखा है। सुग्रीव यह तो देख ही नहीं पा रहे कि कैसे-कैसे श्रीविभीषण जी ने हमें समर्पित होकर, रावण के विरुद्ध लोहा लिया है। रावण के प्रति खुले रूप में विद्रोह करना, साक्षात मृत्यु को दावत थी। लेकिन हमारी खातिर श्रीविभीषण जी ने, अपनी नन्हीं जान की भी चिंता नहीं की। वे अपना सब राज-पाट, यश व वैभव को लात मार कर, हमारी शरणागत होने पधारे हैं। लगता है सुग्रीव को अपने साथ हुए, बालि के अन्याय भूल गए हैं। सुग्रीव को अपने साथ घटित प्रत्येक हिंसा व अत्याचार तो याद है, लेकिन वैसा ही अत्याचार, श्रीविभीषण जी के साथ भी घटा है, इसका उन्हें आभास तक नहीं है। संसार में जीव का यही स्वभाव, उसे आध्यात्मिक व नैतिक स्तर पर, ऊँचा उठने में बाधक बनाये रखता है। जीव दूसरे का सुख व प्रसन्नता देख, स्वयं में वह सुखद अनुभव ढूंढ़ने का तो अथक प्रयास करता है। लेनिक स्वयं को मिली पीड़ा का अनुभव, कभी भी किसी अन्य प्राणी में महसूस करने का प्रयास नहीं करता।

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दक्षिण भारत में स्थित हैं यह खूबसूरत कृष्ण मंदिर
Religion दक्षिण भारत में स्थित हैं यह खूबसूरत कृष्ण मंदिर

दक्षिण भारत में स्थित हैं यह खूबसूरत कृष्ण मंदिर भगवान कृष्ण पूरे देश में पूजनीय हैं और देशभर में लोगों ने अपनी आस्था के प्रतीक श्रीकृष्णा के लिए कई मंदिर बनवाए हैं। यूं तो हर राज्य में भगवान कृष्ण के कई मंदिर स्थित हैं, लेकिन दक्षिण भारत में कृष्ण मंदिरों की एक अलग ही छटा देखने को मिलती है। दक्षिण भारत के कुछ कृष्ण मंदिर हैं जहां भगवान कृष्ण के भक्त और समर्पित अनुयायी दर्शन हेतु आते हैं। तो चलिए आज इस लेख में हम आपको कुछ ऐसे ही कृष्ण मंदिर के बारे में बता रहे हैं, जो दक्षिण भारत में स्थित हैं-

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जयंती विशेषः ईश्वर के सच्चे प्रतिनिधि थे गुरुनानक देव जी
Religion जयंती विशेषः ईश्वर के सच्चे प्रतिनिधि थे गुरुनानक देव जी

जयंती विशेषः ईश्वर के सच्चे प्रतिनिधि थे गुरुनानक देव जी विभिन्न धर्म-संप्रदायों की भारतभूमि ने मानव जीवन का जो अंतिम लक्ष्य स्वीकार किया है, वह है परम सत्ता या संपूर्ण चेतन सत्ता के साथ तादात्म्य स्थापित करना। यही वह सार्वभौम तत्व है, जो मानव समुदाय को ही नहीं, समस्त प्राणी जगत् को एकता के सूत्र में बांधे हुए हैं। इसी सूत्र को अपने अनुयायियों में प्रभावी ढंग से सम्प्रेषित करते हुए ‘सिख’ समुदाय के प्रथम धर्मगुरु नानक देव ने मानवता का पाठ पढ़ाया। गुरू नानक जी की जयंती या गुरुपूरब/गुरु पर्व सिख समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला सबसे सम्मानित दिन है। जिसका अर्थ है ‘गुरुओं का उत्सव’। गुरुनानक देव नैतिकता, पवित्रता, कड़ी मेहनत और सच्चाई का संदेश देते हैं। यह दिन महान आस्था और सामूहिक भावना और प्रयास के साथ, पूरे विश्व में उत्साह के साथ मनाया जाता है। गुरु नानक जी का जीवन प्रेम, ज्ञान और वीरता से भरा था।

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भारत की दिव्य विभूति और महान संत गुरु नानक देव जी
Religion भारत की दिव्य विभूति और महान संत गुरु नानक देव जी

भारत की दिव्य विभूति और महान संत गुरु नानक देव जी महान सिख संत व गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 ई में रावी नदी के किनारे स्थित राय भोई की तलवंडी में हुआ था जो ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है और भारत विभाजन में  पाकिस्तान के भाग में चला गया। इनके पिता मेहता कालू गांव के पटवारी थे और माता का नाम तृप्ता देवी था। उनकी एक बहन भी थी जिसका नाम नानकी था। बचपन से ही नानक में प्रखर बुद्धि के लक्षण और सासांरिक चीजों के प्रति उदासीनता दिखाई देती थी। पढ़ाई- लिखाई में इनका मन कभी नहीं लगा। सात वर्ष की आयु में गांव के स्कूल में जब अध्यापक पंडित गोपालदास ने पाठ का आरंभ अक्षरमाला से किया लेकिन अध्यापक उस समय दंग रह गये जब नानक ने हर एक अक्षर का अर्थ लिख दिया। गुरु नानक के द्वारा दिया गया यह पहला दैविक संदेश था। 

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गुरु नानक देव जी वह 10 शिक्षाएं जो हर किसी का जीवन संवार देती हैं
Religion गुरु नानक देव जी वह 10 शिक्षाएं जो हर किसी का जीवन संवार देती हैं

गुरु नानक देव जी वह 10 शिक्षाएं जो हर किसी का जीवन संवार देती हैं गुरु नानक देवजी सिखों के पहले गुरु थे। अंधविश्वास और आडंबरों के कट्टर विरोधी गुरु नानक का प्रकाश उत्सव (जन्मदिन) कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है हालांकि उनका जन्म 15 अप्रैल 1469 को हुआ था। पंजाब के तलवंडी नामक स्थान में एक किसान के घर जन्मे नानक के मस्तक पर शुरू से ही तेज आभा थी। तलवंडी जोकि पाकिस्तान के लाहौर से 30 मील पश्चिम में स्थित है, गुरु नानक का नाम साथ जुड़ने के बाद आगे चलकर ननकाना कहलाया। गुरु नानक के प्रकाश उत्सव पर प्रति वर्ष भारत से सिख श्रद्धालुओं का जत्था ननकाना साहिब जाकर वहां अरदास करता है।

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देवताओं को अमृतपान कराकर अमर किया था धन्वन्तरि ने
Religion देवताओं को अमृतपान कराकर अमर किया था धन्वन्तरि ने

देवताओं को अमृतपान कराकर अमर किया था धन्वन्तरि ने दीवाली से दो दिन पूर्व ‘धनतेरस’ नामक त्यौहार मनाया जाता है, जो इस वर्ष 22 अक्तूबर को मनाया जा रहा है। हालांकि कुछ लोगों द्वारा यह पर्व 23 अक्तूबर को भी मनाया जाएगा। दरअसल इस बार धनतेरस मनाने की तिथि को लेकर भ्रम बना रहा है। धनतेरस के प्रचलन का इतिहास बहुत पुराना माना जाता है। यह त्यौहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है तथा इस दिन आरोग्य के देवता भगवान धन्वन्तरि एवं धन व समृद्धि की देवी लक्ष्मी का पूजन किया जाता है।

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