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समुद्री क्षेत्र अब तक क्यों सुरक्षित नहीं हो पाया? गिनी में बंधक भारतीय नाविकों की रिहाई में देरी क्यों?

समुद्री क्षेत्र अब तक क्यों सुरक्षित नहीं हो पाया? गिनी में बंधक भारतीय नाविकों की रिहाई में देरी क्यों?

समुद्री क्षेत्र अब तक क्यों सुरक्षित नहीं हो पाया? गिनी में बंधक भारतीय नाविकों की रिहाई में देरी क्यों?

समुद्री क्षेत्र भारतीय नाविकों व मछुआरों के लिए अभी भी सुरक्षित नहीं हैं। खतरे ही खतरे हैं। बीच समुद्र में लहरों के बीच हिचकोले खाते जहाजों के समक्ष अब खतरे और ज्यादा मंडराने लगे हैं। आधुनिक तकनीकों और सख्त पहरेदारी और सतर्कता के बावजूद ये हाल है। जल सीमा में खतरे क्यों बढ़े हैं और उनमें लगातर इजाफा क्यों हुआ है, इसको लेकर केंद्र सरकार भी चिंतित है। भारतीय शिपों, जहाजों, मछुआरों, नाविकों को खतरे समुद्री तूफानों से नहीं, बल्कि समुद्री लुटेरों से ज्यादा हैं। करीब आठ हजार किलोमीटर दूर गिनी की समुद्री सीमा में हमारा एक जहाज पिछले दिनों दिन के उजाले में खुलेआम लूटा गया था। जिस पर ना ज्यादा चर्चा है और ना ही बंधकों की रिहाई पर अधिकारी स्तर पर मुकम्मल प्रयास हो रहे हैं। बंधकों के परिजन दर-दर भटक रहे हैं। अगस्त के दूसरे सप्ताह की बात है, जब दबंगई से हथियारों के बल पर अफ्रीकी मुल्क इक्वेटोरियल गिनी के लोगों ने हमारे एक जहाज जिसमें 16 भारतीय नाविक सवार हैं, को अगवा कर लिया। गुनाह भी उन्होंने कोई ऐसा नहीं किया, जो अगवा होने का कारण बने। भारतीय नाविक किसकी गिरफ्त में है, ये पता करने में ही महीना बीत गया। सच्चाई सामने आई तो अधिकारियों में हलचल हुई। हमारे जहाज को वहां की अधिकृत नेवी ने नहीं, बल्कि लुटेरों में बंधक बनाया।
  
हिमाकत ऐसी कि बंधक भारतीयों से बातचीत भी नहीं कराते, सिर्फ वहां स्थित भारतीय दूतावास से ही संपर्क करने देते हैं। नाविकों के परिवार जन परेशान हैं, अपनों के घर पहुंचने का तीन महीने से बेसब्री ये इंतजार कर रहे हैं, परिजन दिल्ली में अधिकारियों से गुहार लगाते फिर रहे हैं। पर, अभी तक उन्हें किसी भी तरह का कोई संतुष्टि पूर्ण जवाब नहीं मिला। राज्यसभा सांसद एए रहीम ने अपने स्तर से कोशिशें शुरू की हैं। उन्होंने विदेश मंत्री एस जयशंकर को खत लिखा है जिसमें उन्होंने उनसे जहाज ‘एमवी हीरोइक इदुन’ के सभी चालकों को गिनी में बंधक से आजाद करवाने के लिए हस्तक्षेप करने की मांग की है। उनके अनुरोध के बाद विदेश मंत्रालय में हलचल हुई है, दिल्ली से गिनी में अपने दूतावास को फोन किए गए हैं, मौजूदा स्थिति जानी गई है। वहां से जवाब आया कि भारतीय दूतावास के अधिकारियों और ‘पपुआ न्यू गिनी’ प्रशासन के बीच सकारात्मक बातचीत जारी है। बंधक नाविकों के कप्तान से भी बात की गयी है। जहाज अब वहां के अधिकृत अधिकारियों की निगरानी में है। लेकिन रिहाई कब होगी, किसी को नहीं पता?

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गौरतलब है कि जल सीमाओं में सुरक्षा का मुद्दा हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा है, अब ज्यादा हो गया है। केंद्रीय लेवल पर प्रयास बेशक जारी हैं और प्रयासों में मामूली सुधार हुआ भी है। पर, उतना नहीं हुआ, जितने की जरूरत है। समुद्री सीमाओं में रोजाना हमारे गरीब मछुआरे बिलावजह श्रीलंकाई, पाकिस्तानी, चीन, बांग्लादेशी व अन्य जल सीमा क्षेत्रों के देश के लुटेरों से लुटते रहते हैं। बंधक बनाए जाते हैं। लेकिन पर्याप्त कोशिशों के बाद भी उन पर अंकुश नहीं लग पाता। दुख की बात ये है कि घटना होने पर जब हमारे विदेश मंत्रालय से उन देशों से संपर्क किया जाता है तो वह अपना पल्ला झाड़े लेते हैं। अपनी सफाई में घटना की जिम्मेदारी समुद्री लुटेरों पर मढ़ देते हैं। जबकि, इन घटनाओं में प्रत्यक्ष रूप से उनकी नौसेना की भागीदारी होती है। गिनी में बंद हमारे नाविकों के साथ भी यही हुआ है। परिवार के लोगों को अंदेशा है कि कहीं, उन्हें नाइजीरियन को ना सौंप दें, ऐसा होता है तो मामला और उलझ जाएगा। हालांकि, गिनी स्थित भारतीय दूतावास बंधक नाविकों की रिहाई के लिए प्रयासरत है। लेकिन जल्द रिहाई की आस फिलहाल नहीं दिखती।
  
‘एमवी हीरोइक इदुन’ पर नाइजीरियन क्रूड आयल चोरी करने का आरोप लगाया गया है जिसे भारत ने नकार दिया है। सरकार के नकारने के बावजूद भी बंधक नाविकों ने अपने पास से जुर्माना भी भर दिया, तब भी छोड़ने को राजी नहीं है गिनी की नौसेना। वह अब नाइजीरिया नौसेना को सौंपने की तैयारी में है। चालक दल के कप्तान ने केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री कार्यालय से मदद की गुहार लगाई है। उन्होंने कहा कि यह जगह बहुत संवेदनशील है और इसका अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता कि नाइजीरिया को सौंपे जाने के बाद वहां की सरकार भारतीयों के साथ कैसा व्यवहार करेगी। ऐसे में शीघ्र कदम उठाया जाना चाहिए। हिंदुस्तान में इस वक्त चुनावी मौसम है, गुजरात, हिमाचल प्रदेश व दिल्ली एमसीडी चुनाव हो रहे हैं जिसमें सरकार, नेता व शासन-सिस्टम व्यस्त हैं। पर, ऐसे में हम अपने लोगों को मरने के लिए भी नहीं छोड़ सकते? उन्हें किसी भी सूरत में छुड़वाना होगा। केंद्र सरकार को तत्काल प्रभाव से गिनी व नाइजीरिया सरकार से बात करनी चाहिए और सभी बंधक भारतीय नाविकों की रिहाई सुनिश्चित करवानी चाहिए। क्योंकि हुकुमत की ये पहली जिम्मेदारी भी है। गिनी स्थित भारतीय दूतावास स्तर पर प्रयास जारी हैं, पर ऐसा लगता है कि वह नाकाफी हैं।  

बहरहाल, एक नाविक उत्तर प्रदेश के जिले कानपुर के दादा नगर लेबर कॉलोनी से हैं, उनके पिता मनोज सांसद-विधायक से गुहार लगा रहे हैं, वह उन्हें आश्वासन दे रहे हैं, प्रधानमंत्री तक उनकी बात पहुंचाने का भरोसा दे रहे हैं। पर, अपनों के दर्द अपनों के लिए दहल रहे हैं, मां-बाप के कलेजे कंपकंपा रहे हैं। बंधक सभी 16 भारतीय अब गिनी नौसेना की गिरफ्त में हैं, जहां, भारतीय दूतावास के अधिकारियों की उनसे बात हुई है, बताया जा रहा है कि बंधकों में ज्यादातर इस समय बीमार हैं। वायरल, टाइफाइड व बुखार के शिकार हो चुके हैं, उनका उपचार भी अच्छे से नहीं कराया जा रहा। इसमें जब तक केंद्र सरकार के स्तर पर हस्तक्षेप नहीं होगा, तब तक रिहाई सुनिश्चित नहीं होगी। फिलहाल, जब से मीडिया में ये खबर चर्चा में आई है कि केंद्र सरकार ने सभी तरह के प्रयास तेज कर दिए हैं। प्रधानमंत्री खुद भी पूरी घटना पर नजर बनाए हुए हैं। पूरे देशवासियों को बंधकों की रिहाई का इंतजार है। पीड़ितों परिजन अपनों के आने की राह ताक रहे हैं। उन पर क्या गुजर रही है, शायद इस बात का हम-आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते हैं। सभी भारतीयों की सकुशल वापसी के लिए समूचा हिंदुस्तान ईश्वर प्रार्थना कर रहा है। प्रयास और दुआएं दोनों एक साथ की जा रही हैं। अब बस इंतजार उनके आने का है।

- डॉ. रमेश ठाकुर

16 indian sailors detained in equatorial guinea cry for help

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