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नोआखली गांधी आश्रम के 75 साल: अब भी शांति स्थापना और ग्रामीण विकास का कार्य कर रहा

नोआखली गांधी आश्रम के 75 साल: अब भी शांति स्थापना और ग्रामीण विकास का कार्य कर रहा

नोआखली गांधी आश्रम के 75 साल: अब भी शांति स्थापना और ग्रामीण विकास का कार्य कर रहा

बांग्लादेश के नोआखली में विभाजन पूर्व हुए दंगों के जख्मों को भरने के लिए स्थापित गांधी आश्रम आज भी महात्मा गांधी के शांति, सामाजिक सौहार्द्र और ग्रामीण विकास के अभियान को आगे बढ़ाने के कार्य में जुटा हुआ है। इसकी स्थापना 75 साल पहले की गई थी। गांधी नोआखली में शांति मिशन के तहत नवंबर 1946 से जनवरी 1947 तक के अपने चार महीने के प्रवास के दौरान यहां जयग में 29 जनवरी, 1947 को आये थे। इस दौरान उन्होंने सांप्रदायिक दंगों के जख्मों को भरने के लिए करीब 47 गांवों का दौरा करके प्रार्थना सभाओं का आयोजन किया, जिसमें सभी समुदायों के लोगों को आमंत्रित किया गया।

यह दंगा घनी आबादी वाले इस जिले में अक्टूबर 1946 में हुआ था। जयग गांव में एक धनी बैरिस्टर (वकील) हेमंत कुमार घोष की ओर से दान में मिली भूमि और भवनों के कारण गांधी को एक आश्रम ट्रस्ट स्थापित करने में समर्थ बनाया। यह आश्रम ग्रामीण अभ्युदय और भाईचारे की स्थापना के उनके काम को आज भी जारी रखे हुए है। गांधी आश्रम ट्रस्ट (जीएटी) के निदेशक राहा नबकुमार ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘1971 में बांग्लादेश के अस्तित्व में आने के बाद से यह ट्रस्ट (न्यास) आज भी लोगों के साथ मिलकर सामुदायिक भाईचारे और शांति की विचारधारा को आगे बढ़ा रहा है और इसका बृहद नोआखली क्षेत्र में काफी प्रभाव है जिसमें लखीमपुर, फेनी और नोआखली शामिल है।’’

बांग्लादेश में पिछले साल 15 अक्टूबर को सांप्रदायिक दंगे भड़कने के बाद नोआखली जिले के रामगंज उपजिला के लोगों के एक समूह ने हिंदू मंदिर पर हमले का प्रयास किया, लेकिन इसे क्षेत्र के एक अन्य मुस्लिम समूह ने इसे रोक दिया। राहा के मुताबिक, यह समूह गांधी आश्रम के दर्शन से प्रभावित था। उन्होंने दावा किया 1994 से जीएटी बातचीत के जरिये और बहुत सी महिलाओं को विधिक तथा वित्तीय सहायता प्रदान करके 27 हजार से अधिक घरेलू हिंसा और पारिवारिक विवाद के मामलों में मध्यस्थता करने में सफल रहा।

राहा ने कहा, ‘‘असल में क्षेत्र के लोग घरेलू हिंसा और पारिवारिक विवाद के मामले में पुलिस थाने या अदालत जाने के बजाय समाधान के लिए हमारे पास आते हैं और हम अपने तरीके से उनकी समस्या का समाधान करने का प्रयास करते हैं।’’ राहा ने कहा कि इसके परिणामस्वरूप तलाक के मामलों में कमी आई है। जयग गांव की 26 वर्षीय महिला नसरीन अख्तर ने इस संवाददाता से कहा कि उसका पति और पेशे से ऑटो रिक्शा चालक मनन हुसैन उसे पीटा करता था और उसे घर से बाहर कर दिया था।

नसरीन ने कहा, ‘‘मैंने इस मामले से गांधी आश्रम को अवगत कराया और पति पर मुआवजे के रूप में बड़ी राशि देने के लिए दबाव बनाया। मैं सहमत हो गई, क्योंकि मैं भी उस आदमी के साथ नहीं रहना चाहती थी।’’ राहा ने कहा कि अगस्त 1947 में विभाजन खासकर महात्मा गांधी की हत्या के बाद कुछ को छोड़कर गांधी के ज्यादातर समर्थकों ने नोआखली छोड़ दिया। पाकिस्तान सरकार ने बचे हुए गांधी समर्थकों के प्रति अनुचित रवैया अपनाया और उनमें से ज्यादातर को जेल भेज दिया। राहा ने कहा कि ट्रस्ट की संपत्ति को लूट लिया गया और असामाजिक तत्वों ने ज्यादातर जमीन पर कब्जा कर लिया।

उन्होंने बताया कि ‘शांति मिशन’ के टीम प्रबंधक चारु चौधरी को हिरासत में ले लिया गया और उन्हें बांग्लादेश की आजादी के बाद ही रिहा किया गया। उन्होंने कहा कि चौधरी ने स्वतंत्र बांग्लादेश में आश्रम को फिर से पुनर्गठित करने का काम शुरू किया और जमीन के एक हिस्से को हासिल कर लिया। बांग्लादेश सरकार की राजपत्रित अधिसूचना में ‘अंबिका कलगंगा चैरिटेबल ट्रस्ट’(आश्रम परिसर को मूल रूप से यही नाम दिया गया था) का नाम बदल कर ‘गांधी आश्रम ट्रस्ट’ कर दिया गया। ट्रस्ट की गतिविधियों के संचालन के लिए बांग्लादेश और भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाली एक समिति का गठन किया गया।

75 years of noakhali gandhi ashram still working for peacekeeping and rural development

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