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उचित कर्म का विज्ञापन (व्यंग्य)

उचित कर्म का विज्ञापन (व्यंग्य)

उचित कर्म का विज्ञापन (व्यंग्य)

महाभारत के कृष्ण विज्ञापन में हैं। सुदर्शन चक्र गतिमान है। बचपन में जो कैलेण्डर देखे थे उनमें उनकी छवि डिज़ाइनर वस्त्र और गहनों से इतनी ज़्यादा लदी नहीं होती थी। अब तो उनके शंख पर भी स्वर्ण मढ़ दिया है। सुर्ख रंग, भारी और आकर्षक वस्त्र पहना दिए गए हैं। जूते शानदार, सोना जड़ित, खालिस डिज़ाइनर शू हैं। उनके चहरे पर उद्देश्य भेदक सोच दिखती है। वे शंखनाद कर युद्ध घोषित कर सकते हैं। महापराक्रमी सुदर्शन चक्र भी तो स्थिर मुद्रा में नहीं है और गोपियों को रिझाने, नृत्य विभोर करने वाली बांसुरी नहीं दिख रही। वैसे उनकी पोशाक युद्ध वाली नहीं लगती। 

दुनिया के सबसे बड़े राजनयिक कृष्ण को एक शिक्षा कोचिंग संस्थान ने अपना ब्रांड एम्बेसडर बना लिया है। शिक्षा जैसे सर्वोच्च कर्म के लिए, गीता के श्लोक मुफ्त में उद्धृत करने के लिए, कृष्ण से बेहतर मॉडल कौन हो सकता है। विज्ञापन शुरुआत करता है, “जिस तरह आत्मा शस्त्र से नष्ट नहीं की जा सकती, अग्नि जला नहीं सकती, जल गीला नहीं कर सकता, वायु सूखा नहीं सकती, आत्मा अमर है, सभी तरह के साधनों से अप्रभावित है, उसी तरह हमारा कोचिंग संस्थान भी समाज में फ़ैली नकारात्मकता से अप्रभावित है”। संस्थान ‘कृष्ण’ और ‘राम’ की शाश्वत शिक्षाओं का पालन करने के मार्ग पर चल रहा है। महा समझौतावादी बातावरण में कोई समझौता नहीं करते । विज्ञापन का कर्म कहता है, ‘हम वही करते हैं, जो कहते हैं।’ सही कहा, आजकल करने के बाद, कहने का दस्तूर है।  

विज्ञापन, विकास की नई सांस्कृतिक ऊंचाई से प्रेरित है। कर्मयुग है, जो कर्म करेगा वही फल पाएगा। कर्म करते हुए सतर्क रहते, सुनिश्चित करना होगा कि कौन सा स्वादिष्ट फल मिलेगा। आजकल गीता का प्रसिद्धतम श्लोक, ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फ्लेषु कदाचन’ विज्ञापित नहीं कर सकते। श्लोक अगर समझ आ गया तो असामयिक उपदेश देगा। श्लोक को आत्मसात हो गया तो शांत रह, आंखें मींच, चैन की बंसी बजाते रहना होगा, परिणाम की चिंता नहीं करनी होगी। दरअसल यह श्लोक जंग खाकर कालग्रस्त हो गया है। कोचिंग भी एक विराट श्लोक है उसका चिंतन मनन करने के बाद कोई ऐसा कैसे सोच सकता है। तभी विज्ञापन के अगले श्लोक के अनुसार फूल और फ़ल निश्चित समय पर दिखते हैं, कभी समय का उल्लंघन नहीं करते।  कर्म, अच्छे या बुरे परिणाम दिखा देता है। सन्देश स्पष्ट है, प्रत्येक व्यक्ति को उचित कर्म कर सफल होना ही चाहिए।

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विज्ञापन समझाता है कि, “कर्म, अचूक, अमोघ, अभ्रांत है। ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जो भविष्य बिगाड़ दे क्यूंकि कर्म सिद्धांत ही भाग्य का निर्माण करेगा। हमारे संस्थान का कर्म, चरित्र और मूल्य दूसरों से ऊपर हैं । हमने कभी ऐसा कुछ नहीं किया जो नकारात्मकता उगाए। हम शिक्षा को शुद्ध करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।” एक और श्लोक को मंच पर समझाया गया कि कोयले जैसे काले शैतान व्यक्ति से मित्रता या संबंध रखने से परेशानी पैदा होती है । विज्ञापन ने बुद्धू अभिभावकों को मुफ्त में कोच किया कि शिक्षा जैसे पवित्र क्षेत्र में कुछ संस्थान, माफिया डाकुओं जैसी शैली में दूसरे संस्थानों का अच्छा काम लूट रहे, झूठे परिणाम छाप रहे, सफल मेहनती विद्यार्थियों और महंगे अध्यापकों को अवैध रूप से खरीद रहे हैं। उचित कर्म करना आवश्यक है। महाभारत रचयिता के प्रभावशाली चित्र के बहाने कहा कि हमारा संस्थान अद्वितीय है। प्रवचन पढ़कर कर शैक्षिक योजना हमसे ही लेना ।  

उचित कर्म के विज्ञापन की आज बहुत ज़रूरत है ताकि कहीं कहीं फ़ैले आध्यात्मिक, नैतिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक व शैक्षिक अंधेरे में श्लोक के नए अर्थ रोशनी कर दें। माधुर्य घोलते हुए, गोपियों को शास्वत नृत्य करवाने वाली कृष्ण की बांसुरी भी तो ज़िंदगी और विज्ञापन से बाहर है।

- संतोष उत्सुक

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