वायुसेना को प्रचंड हेलिकॉप्टर मिल तो गया है, पर विदेशी निर्भरता अब भी बनी हुई है
स्वदेशी तकनीक से बने हल्के युद्धक हेलीकॉप्टर (एलसीएच) प्रचंड भारत की सैन्य सामग्री और उपकरणों की कम होती निर्भरता की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। इसके बावजूद भारत की मंजिल अभी दूर है। भारत को अपनी सैन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए आत्मनिर्भर होने में लंबा सफर तय करना है। भारत का हल्का युद्धक हेलीकॉप्टर (एलसीएच) प्रचंड देश की सुरक्षा में बढ़ते हुए कदमों की दृढ़ता का प्रतीक है। इस हेलीकॉप्टर का निर्माण 45 प्रतिशत स्वदेशी तथा 55 प्रतिशत विदेशी पुर्जों से किया गया है। प्रयास यह किए जा रहे हैं कि हेलीकॉप्टर की तकनीक को 55 प्रतिशत तक स्वदेशी किया जाए ताकि विदेशी निर्भरता कम हो सके। इससे इसकी लागत में भी कमी आएगी। इस हेलीकॉप्टर के इंजिन का नाम शक्ति रखा गया है।
फ्रांस की इंजिन बनाने वाले कम्पनी सफ्रेन और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के संयुक्त उपक्रम से इस हेलीकॉप्टर के इंजिन को बनाया गया है। शक्ति को प्रतिकूल मौसम में अधिक ऊंचाई तक ले जाने के लिए विकसित किया गया है। यह हेलीकॉप्टर 20 हजार फुट की ऊंचाई तक प्रहार और बचाव कार्य कर सकता है। प्रचंड से चीन सीमा पर सुरक्षा और निगरानी को मजबूती मिलेगी। पूर्वी लद्दाख में वर्ष 2020 में चीनी सेना से झड़प के दौरान दो हल्के युद्धक हेलीकॉप्टर का उड़ान परीक्षण किया गया था। लाइट कॉम्बेट हेलिकॉप्टर यानि एलसीएच हेलिकॉप्टर का वजन करीब 6 टन है, जिसके चलते ये बेहद हल्का है जबकि अमेरिका से लिए गए अपाचे हेलिकॉप्टर का वजन करीब 10 टन है।
देश में लड़ाकू विमानों की तरह पुराने हो चुके हेलीकॉप्टर्स को भी बदले जाने की आवश्यकता है। देश की सैन्य जरूरतों के लिहाज 1960-70 के दशक में शामिल किए गए चेतक और चीता हेलीकॉप्टर अब पुराने पड़ चुके हैं। उस वक्त भारत सैन्य सामग्री की आपूर्ति को लेकर काफी हद तक रूस पर निर्भर था। युक्रेन से युद्ध और अमेरिका से लगे प्रतिबंधों के बाद भारत को विदेशी निर्भरता के मामले में प्रतिकूल शर्तों और सैन्य सामग्री को सुचारू बनाए रखने के लिए कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे हालात में भारत को न सिर्फ विदेशी निर्भरता को कम करने बल्कि आयात से बढ़ते खर्चे को नियंत्रित करने के लिए भी जूझना पड़ रहा है।
गौरतलब है कि भारत विश्व के प्रमुख सैन्य सामग्री ही नहीं बल्कि तेल और खाद्यान्न के प्रमुख आयातकों में शामिल है। इसमें काफी विदेशी मुद्रा खर्च होने के साथ निर्यातक देशों की मनमानी भी झेलनी पड़ती है। इससे देश की आर्थिक सेहत पर विपरीत असर पड़ रहा है। ऐसे हालात से भारत के भविष्य की योजनाओं के क्रियान्वयन की बड़ी चुनौती है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के आंकड़ों के मुताबिक हालांकि देश में सैन्य उत्पादों के आयात में वर्ष 2012-16 से 2017-21 की अवधि में करीब 21 प्रतिशत की कमी आई है। इसके बावजूद भारत सैन्य उत्पादों की तकनीक और दक्षता पर खरा उतराना बाकी है। भारत को 2019-20 में सैन्य सामग्री के आयात पर 38 हजार 156 करोड़ रुपए व्यय करने पड़े।
भारत ने रूस में बने हेलकॉप्टर एमआई-25 और एमआई-35 के पुराने पड़ जाने पर अमरीका से मिले अपाचे और चिनूक हेलीकॉप्टर हवाई ताकत में शामिल किया। लेकिन असली विजेता भारत में निर्मित स्वदेशी हल्के युद्धक हेलीकॉप्टर बने हैं। इसका स्थान उसी तरह है जिस तरह युद्धक विमानों के विकल्प के तौर पर हल्के युद्धक विमान तेजस का है। दरअसल हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को सबसे बड़ी चुनौती तब मिली जब रूस से कामोव केए 31 हेलीकॉप्टर का समझौता निरस्त हो गया। इसके अलावा जेट इंजिन के स्वदेशी निर्माण में कावेरी प्रोजेक्ट के विफल हो जाने के बाद महंगे आयात की निर्भरता से छुटकारा पाने को झटका लगा। प्रचंड हेलीकॉप्टर के निर्माण से भारत काफी हद तक इस झटके से उबर गया है। एलसीएच स्वदेशी अटैक हेलिकॉप्टर को करगिल युद्ध के बाद से ही भारत ने तैयार करने का मन बना लिया था। उस वक्त भारत के पास ऐसा युद्धक हेलिकॉप्टर नहीं था जोकि 15-16 हजार फीट की उंचाई पर जाकर दुश्मन के बंकर्स को तबाह कर सके। इस प्रोजेक्ट को 2006 में मंजूरी दी गई थी। हल्के हेलीकॉप्टर के निर्माण की सफलता से भारत भविष्य की मिलने वाली सुरक्षा चुनौतियों से जूझने में सक्षम होने के साथ ही विदेशी तकनीक की निर्भरता से निजात पा सकेगा।
- योगेन्द्र योगी
Air force has got lch but foreign dependence still remains