काकोरी ट्रेन एक्शन के अमर नायक शहीद राजेंद्र नाथ लाहिड़ी का 96वां बलिदान दिवस जिले में श्रद्धा एवं भक्ति भाव से मनाया गया। इस अवसर पर जिला कारागार में आर्य समाज द्वारा वैदिक मंत्रों के साथ हवन-पूजन एवं शांति पाठ किया गया। प्रभारी जिला जज पूजा सिंह और जिलाधिकारी डॉ. उज्ज्वल कुमार की अगुवाई में जिले के न्यायिक और प्रशासनिक अधिकारियों ने हवन किया। अमर शहीद लाहिड़ीकी प्रतिमा पर माल्यार्पण के उपरान्त लाहिड़ी को सलामी दी गई और राष्ट्रगान की धुन बजाई गई। प्रभारी जिला जज ने कहा कि लाहिड़ी जैसे व्यक्तित्व और सच्चे राष्ट्र भक्तों के बलिदान के कारण ही हम भारतीय आज आजाद भारत में सांस ले पा रहे हैं।
उन्होने लोगों से आह्वान करते हुए कहा कि हम सबको निस्वार्थ भाव से राष्ट्र सेवा का संकल्प लेना चाहिए और आजादी के दीवानों के सपनों का भारत बनाने में अपना योगदान करना चाहिए। जिलाधिकारी ने कहा कि देश को गुलामी की दास्तां से मुक्ति दिलाने के लिए 26 वर्ष की उम्र में अपने देश के लिए फांसी के फंदे को हंसते हुए चूमने वाले अमर शहीद लाहिड़ी जी का सम्पूर्ण जीवन प्रेरणा से भरा हुआ है। इस अवसर पर आंबेडकर चौराहे से तिरंगा रैली निकाली गई जो कार्यक्रम स्थल पर आकर समाप्त हुई।
जिलाधिकारी डॉ. उज्ज्वल कुमार ने बताया कि उप्र शासन के निर्देश पर काकोरी ट्रेन एक्शन की श्रृंखला पर आधारित पांच दिन का कार्यक्रम बृहस्पतिवार से शुरू हुआ है, जो 19 दिसंबर को समाप्त होगा। यहां गोंडा जेल में 17 दिसंबर 1927 को अपनी फांसी से कुछ समय पूर्व तत्कालीन जेलर से अपनी भावना व्यक्त करते हुए लाहिड़ी ने कहा था ‘मुझे विश्वास है कि मेरा बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। मैं हिन्दू होने के नाते पुनर्जन्म में आस्था रखता हूं। इसलिए मैं मरने नहीं, वरन् आजाद भारत में फिर से जन्म लेने के लिए जा रहा हूं।’
गोंडा जिला जेल में बिताए गए राजेंद्र नाथ लाहिड़ी के आखिरी दिनों पर प्रकाश डालते हुए, वर्तमान डिप्टी जेलर शरेंदु कुमार त्रिपाठी ने पीटीआई- को बताया कि राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को साथी क्रांतिकारियों अशफाक उल्ला खान, राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह के साथ मौत की सजा सुनाई गई थी। उन्होंने कहा, ’’ लाहिड़ी को 19 दिसंबर को उन्हें फांसी दी जानी थी, लेकिन अधिकारियों को पता चला कि चंद्रशेखर आजाद अपने साथी क्रांतिकारियों के साथ गोंडा में हैं और वे राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को जेल से मुक्त करा देंगे, तो आनन-फानन में लाहिड़ी जी को 17 दिसंबर को फांसी दे दी गई।
राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी का जन्म 23 जून 1901 को वर्तमान पावना जिला के मोहनपुर गांव में क्षिति मोहन लाहिड़ी व बसंत कुमारी के घर हुआ था। उनके जन्म के समय पिता व बड़े भाई बंगाल में चल रही अनुशीलन दल की गुप्त गतिविधियों में योगदान देने के आरोप में जेल में थे। परिस्थितियों के कारण मात्र वह नौ वर्ष की उम्र में ही वह बंगाल से अपने मामा के घर उत्तर प्रदेश के वाराणसी आ गए। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई। उन दिनों वाराणसी क्रांतिकारी गतिविधियों का प्रमुख केंद्र हुआ करता था। वाराणसी में उनकी भेंट प्रसिद्ध क्रांतिकारी शचींद्रनाथ सान्याल से हुई।
उनसे प्रभावित होकर वह अपनी परास्नातक की पढ़ाई के दौरान ही हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) के सक्रिय सदस्य बन गए और कई आन्दोलनों में अहम भूमिका निभाई। अंग्रेजी हुकूमत से लड़ने के लिए ब्रिटिश माउजर खरीदने के वास्ते पैसे का प्रबंध करने के लिए पं. राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, अशफाक उल्ला खां के साथ मिलकर राजेन्द्र लाहिड़ी ने अपने आधा दर्जन अन्य सहयोगियों के साथ नौ अगस्त 1925 की शाम सहारनपुर से चलकर लखनऊ पहुंचने वाली आठ डाउन ट्रेन पर काकोरी रेलवे स्टेशन पर धावा बोल दिया और सरकारी खजाना लूट लिया।
उसी ट्रेन में सफर कर रहे अंग्रेज सैनिकों तक की हिम्मत न हुई कि वे मुकाबला करने को आगे आएं। ट्रेन से सरकारी खजाना लूटने की घटना से हड़कंप मच गया। इसकी खबर ब्रिटेन तक पहुंची। जांच के लिए उच्च स्तरीय अधिकारियों को लगाया गया। घटना को अंजाम देने वालों के बारे में सुराग देने वालों के लिए पुरस्कार की घोषणा की गई। लेकिन मौके से बरामद एक चादर के सहारे अंग्रेज शाहजहांपुर के उस धोबी तक तक पहुंच गए, जिसने चादर धोया था। वहां से मिले सुराग के आधार पर देशभर से एचआरए के 40 क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर उन पर सम्राट के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने तथा हत्या का मुकदमा चलाया गया।
तमाम अपीलों व दलीलों के बावजूद सरकार टस से मस न हुई और अन्ततः लखनऊ के वर्तमान जीपीओ पार्क हजरत गंज में अंग्रेज जज हेल्टन द्वारा चार क्रांतिकारियों राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खां को फांसी की सजा सुनाई गई। अंग्रेजी हुकूमत द्वारा सभी क्रांतिवीरों को प्रदेश के अलग-अलग जेलों में रखा गया। राजेन्द्र नाथ लाहिडी को गोंडा जेल भेजा गया। सभी क्रांतिकारियों की फांसी के लिए 19 दिसंबर 1927 की तारीख तय की गई थी, लेकिन लाहिड़ी को जेल से जबरन छुड़ाकर ले जाने के लिए चन्द्रशेखर आजाद के गोंडा पहुंचने की खुफिया सूचना पर तत्कालीन हुकूमत ने आनन-फानन में उन्हें तय तिथि से दो दिन पूर्व ही 17 दिसंबर 1927 को फांसी पर लटका दिया। उनका अंतिम संस्कार जेल से 500 मीटर दूर स्थित टेढ़ी नदी के बूचड़ घाट पर किया गया जहां उनकी समाधि बनी हुई है। जिला प्रशासन ने उनकी यादों का अक्षुण्ण रखने के लिए यहीं पर उद्यान स्थापित किया है।
Amar shaheed rajendra nath lahiris 96th martyrdom day celebrated in gonda
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