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पिछली सीट पर अनुशासन (व्यंग्य)

पिछली सीट पर अनुशासन (व्यंग्य)

पिछली सीट पर अनुशासन (व्यंग्य)

पिछले दिनों एक ख़ास कार दुर्घटना के कारण तकनीकी दृष्टिकोण से समझाया गया कि पिछली सीट पर भी बैल्ट लगाना ज़रूरी होता है। अब आम गाड़ियों के चालान ज़्यादा हुआ करेंगे।  नई गलती के कारण जुर्माना भरेंगे और व्यक्तिगत गौरव महसूस करेंगे। वैसे भी ख़ास आदमी और ख़ास गाड़ियों की चेकिंग का ख़ास रिवाज़ हमारे यहां नहीं है। आम आदमी तो कानून को ज़रा सा ही तोड़ सकता है, लाल बत्ती क्रासिंग, गलत जगह पार्किंग, गाड़ी चलाते हुए फोन करते हुए कानून तोड़ने में आनंद प्राप्त करता है। एक तरह से स्वतंत्र महसूस करता है। 

विशिष्ट हादसे और मौत, क़ानून को पुन लागू करने के लिए बहुत प्रेरित करते हैं। उसी कानून को बहुत ज़्यादा सख्ती से दोबारा लागू कर दिया जाता है जो पहले ही ज्यादा सख्ती से लागू है। इस दौरान कानून परेशान होने लगता है। मौत की घटना, ज़िंदगी, सेहत और दूसरों के प्रति संवेदनशील रहने के लिए संजीदगी से सोचने को उत्प्रेरित करती है हालांकि शमशानघाट से मुख्य सड़क तक आते आते हम ज़िंदगी की पुरानी, मैली, फटी युनिफार्म में लौट आते हैं।

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महा तकनीक से बने हाइवे पर ख़ास आदमी की गाड़ी हादसे के चंगुल में फंस जाए तो तंत्र हिलने लगता है। दर्जनों नए विशेषज्ञ यह बताने में जुट जाते हैं कि हाइवे सचमुच खतरनाक है। आम आदमी की आम गाड़ी वहां कुछ भी कर दे तो कुछ नहीं हिल पाता। हाईवे की तकनीकी योजना भी राजनीति करती होगी। वैसे समझा जाए तो हाइवे सबके लिए नहीं होना चाहिए। काफी गहराई से सोचा जाए तो सब कुछ, सबके लिए नहीं होना चाहिए। कमबख्त ख़्वाब भी तो सब कुछ, सबके लिए दिखाता है। वाहन गति सबके लिए नियंत्रित होनी चाहिए। नींद सबके लिए भरपूर होनी चाहिए। क़ानून सबके लिए एक जैसा है और बराबर लागू है। क़ानून के सामने कोई छोटा बड़ा नहीं है। यह तो गिने चुने कुछ लोग उदाहरण सहित कहते रहते हैं कि बहुत कुछ सभी के लिए समान नहीं। वैसे जब सभी, एक जैसे नहीं हैं तो सभी के लिए सब कुछ, एक जैसा बिलकुल नहीं होना चाहिए। 
 
किसी भी जगह, सबके लिए पहुंचना ज़रूरी नहीं है। अनुशासन सभी के लिए समान होना चाहिए लेकिन अनुशासन के प्रायोजक ही अनुशासन को मर्ज़ी से हड़काते रहते हैं और आम लोगों से कहते हैं कि पैदल चलना चाहिए। पैदल चलना सेहत के लिए अच्छा होता है तो फिर यह सभी की सेहत के लिए अच्छा होता होगा तो फिर सभी को पैदल चलना चाहिए। कुछ ख़ास लोग सड़कों पर कभी कभार पैदल चलते हैं। वे कभी कभार सभी सड़कों पर विचरते रहें तो सड़कों के गड्ढे, खड्डे होने से बच जाएं। लेकिन जो मुश्किल है वो वाकई मुश्किल है। सड़कें सबके लिए हैं लेकिन पैदल होना सबकी पहुंच में नहीं है।

हर गणमान्य व्यक्ति समझता है कि उसका भाग्य उच्च कोटि का है। यह उच्च कोटि भाग्य सुविधा, उसे लापरवाह होने पर भी बचा लेगी। आम व्यक्ति की जान का जाना, ‘होनी’ होता है और ख़ास व्यक्ति की जान जाना, ‘अनहोनी’। तभी तो होनी, तकनीक नहीं पढ़ पाती लेकिन अनहोनी सब कुछ पढ़ती है। पहले से लागू कानून को पुन लागू करवाती है। पिछली सीट पर पसरे अनुशासन को जगाती है। थका हुआ अनुशासन जागता है फिर धीरे धीरे सो जाता है।

- संतोष उत्सुक

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