यूपी में हो रहे उपचुनावों में बसपा की गैर-मौजूदगी का सीधा लाभ भाजपा को हो सकता है
उत्तर प्रदेश में तीन सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं किंतु सपा को अपनी मुलायम सिंह की परंपरागत सीट बचाने की ही चिंता है। प्रदेश के चुनाव से उसे कुछ लेना−देना नही हैं। मायावती की बसपा ही नहीं, कांग्रेस और आप भी चुनावी समर से गायब हैं। यूपी में इस वक्त मैनपुरी, रामपुर, खतौली तीन सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं। मैनपुरी लोकसभा सीट है तो खतौली और रामपुर विधान सभा सीट। सपा ने खतौली सीट अपने गठबंधन के साथी रालोद को सौंप दी है। मैनपुरी लोकसभा और रामपुर विधानसभा सीट में मुख्य मुकाबला बीजेपी और सपा के बीच है। खतौली में रालोद और भाजपा में सीधा मुकाबला है। इस चुनाव में बसपा, कांग्रेस और आप का कोई भी प्रत्याशी मैदान में नहीं है।
मुलायम सिंह के निधन के कारण खाली हुई मैनपुरी की लोकसभा सीट खबरों में सबसे ज्यादा है। इस सीट पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपनी पत्नी डिंपल यादव को मैदान में उतारा है। भाजपा ने रघुनाथ सिंह शाक्य को उम्मीदवार बनाया है। इस सीट पर मुलायम सिंह की विरासत को बचाने की चुनौती है। भाजपा के रघुनाथ सिंह शाक्य भी अपने को मुलायम सिंह का शिष्य और इस सीट पर अपने को मुलायम सिंह का वारिस बताते हैं। दरअसल भाजपा में आने से पूर्व रघुनाथ सिंह शाक्य मुलायम सिंह के शिष्य थे। वह ये बात सरेआम स्वीकारते भी हैं। मैनपुरी आने पर उन्होंने अपनी बात मुलायम सिंह से ही शुरू की। कहा कि मुलायम सिंह उनके गुरु हैं। विरासत पर पुत्र का नहीं, शिष्य का अधिकार होता है। इतना ही नहीं नामांकन से पूर्व वह मुलायम सिंह की समाधि पर भी गए। श्रद्धा सुमन अर्पित किए।
मुलायम सिंह की इस सीट को बचाने के लिए अखिलेश यादव और उनका पूरा कुनबा लगा है। शिवपाल को आंख दिखाने वाले अखिलेश ने इस सीट को बचाने के लिए शिवपाल के पांव पकड़ अपने से जोड़ लिया है। चुनाव में पूरे कुटुंब में एकजुटता दिखाई दे रही है। चुनाव के बाद क्या होगा, नहीं कहा जा सकता। क्योंकि मतलब निकलते ही अखिलेश यादव अपने चाचा शिवपाल से दूरी बना लेते हैं। मैनपुरी से सपा प्रमुख अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव चुनाव लड़ रही हैं। संघर्ष कितना कड़ा है ये इसी से समझा जा सकता है कि अपनी पारिवारिक सीट को बचाने के लिए अखिलेश यादव को घर-घर जाकर वोट मांगने पड़ रहे हैं। क्षेत्र में चार−चार रैलियां करनी पड़ रही हैं। डिंपल इससे पहले सपा की मजबूत सीटें रहीं फिरोजाबाद और कन्नौज को सुरक्षित नहीं रख सकी थीं। देखना है कि तीन दशक से जिस सीट पर सपा जीत दर्ज कर रही है, उस पर भी डिंपल यादव जीत पाती हैं या नहीं।
गौरतलब है कि 2019 में सपा-बसपा गठबंधन में मैनपुरी सीट मुलायम सिंह यादव सिर्फ 95 हजार वोटों से जीते थे। इस चुनाव में मुलायम सिंह को 5,24,926 और प्रेम सिंह शाक्य को 4,30,537 वोट मिले थे। मुलायम सिंह को 53 प्रतिशत और प्रेम सिंह शाक्य को 44.09 प्रतिशत वोट मिले थे। इस बार चुनाव में बसपा नहीं लड़ रही है। माना जा रहा है कि उसके इस बार न लड़ने का फायदा भाजपा को हो सकता है। पश्चिम उत्तर प्रदेश में अखिलेश काफी समय से दखल नहीं देते हैं। यह क्षेत्र उन्होंने पूर्व मंत्री आजम खान को सौंप रखा है। पूर्व मंत्री आजम खान पर हेट स्पीच की वजह से लगी रोक के बाद रामपुर की यह सीट खाली हो गई। अखिलेश ने आजम खान के खास आसिम रजा को फिर से यहां से टिकट दिया है। अगर ये प्रत्याशी हारता है तो इसका अपयश अखिलेश के मुकाबले आजम को ज्यादा जाएगा। सीट आजम खान के अयोग्य घोषित होने के कारण रिक्त हुई है, इसलिए ये टिकट आजम खान के परिवार के सदस्य को दिया जाना चाहिए था। आजम खान के परिवार के सदस्य को टिकट न दिए जाने में हो सकता है कि अखिलेश यादव की कोई रणनीति रही हो। वैसे भी आजम खान जब तक जेल में रहे, अखिलेश यादव ने उनसे मुलाकात नहीं की। लगता है कि अखिलेश आजम खान से छुटकारा चाहते हैं। उधर आजम के दो खास लोग फसाहत खान उर्फ शानू भाई और चमरौवा के पूर्व विधायक यूसुफ अली बीजेपी में शामिल हो गए हैं। ये दोनों बिना आजम की सहमति के भाजपा में नहीं गये होंगे। इस तरह रामपुर जो आजम और सपा का मजबूत किला था, अब ध्वस्त होने जा रहा है।
खतौली विधान सभा सीट पर रालोद सपा गठबंधन से मदन भैय्या प्रत्याशी हैं तो भाजपा ने राजकुमारी सैनी को उनके मुकाबले मैदान में उतारा है। यह चुनाव मुजफ्फरनगर की एक अदालत द्वारा बीजेपी विधायक विक्रम सैनी को सजा सुनाए जाने पर खतौली सीट को रिक्त घोषित कर दिये जाने पर हो रहा है। उपचुनाव के लिए बीजेपी ने रालोद−सपा गठबंधन के प्रत्याशी मदन भैया के खिलाफ विक्रम सैनी की पत्नी राजकुमार सैनी को मैदान में उतारा है। पिछले चुनाव में आरएलडी ने सपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था। आरएलडी के राजपाल सैनी भाजपा के विक्रम सैनी से हार गए थे। तीनों सीटों पर मुकाबला कड़ा है। बसपा के प्रत्याशी मैदान में न होने का फायदा भाजपा को होने की उम्मीद ज्यादा है। चुनाव रोचक है। पांच दिसंबर का मतदान तय करेगा कि प्रत्याशी किस दल का भाग्य लिखेंगे।
-अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
Bjp can directly benefit from the absence of bsp in the by elections in up