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जीएम सरसों से शहद-उत्पादक किसानों को नुकसान होने का खतरा: सीएआई

जीएम सरसों से शहद-उत्पादक किसानों को नुकसान होने का खतरा: सीएआई

जीएम सरसों से शहद-उत्पादक किसानों को नुकसान होने का खतरा: सीएआई

जीएम सरसों को पर्यावरणीय परीक्षण के लिए जारी किए जाने पर उठे विवादों के बीच देश में मधुमक्खी-पालन उद्योग के महासंघ ‘कंफेडरेशन ऑफ ऐपीकल्चर इंडस्ट्री’ (सीएआई) ने इस फैसले को ‘मधु क्रांति के लिए बेहद घातक बताते हुए इस पर रोक लगाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दखल देने की मांग की है।

मधुमक्खी-पालन उद्योग संगठन सीएआई के अध्यक्ष देवव्रत शर्मा ने पीटीआई-के साथ बातचीत में कहा, ‘‘हमने प्रधानमंत्री से मांग की है कि वह आनुवांशिक रूप से संशोधित (जीएम) सरसों की फसलों को अनुमति न देकर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सरसों खेती से जुड़े लगभग 20 लाख किसानों और मधुमक्खीपालक किसानों की रोजी-रोटी छिनने से बचाएं। शर्मा ने कहा, जीएम सरसों की खेती होने पर मधुमक्खियों के पर-परागण से ख्राद्यान्न उत्पादन बढ़ाने एवं खाद्यतेलों की आत्मनिर्भरता का प्रयास प्रभावित होने के साथ ही ‘मधु क्रांति’ का लक्ष्य और विदेशों में भारत के गैर-जीएम शहद की भारी निर्यात मांग को भी धक्का लगेगा।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमारे यहां पहले सूरजमुखी की अच्छी पैदावार होती थी और थोड़ी-बहुत मात्रा में ही इसका आयात करना पड़ता था। लेकिन सूरजमुखी बीज के संकर किस्म के आने के बाद आज सूरजमुखी की देश में पैदावार खत्म हो गयी है और अब सूरजमुखी तेल की जरूरत सिर्फ आयात के जरिये ही पूरी हो पाती है। यही हाल सरसों का भी होने का खतरा दिखने लगा है।’’ शर्मा ने कहा कि मधुमक्खी-पालन के काम में उत्तर भारत में लगभग 20 लाख किसान प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं।

इसके अलावा उत्तर भारत के लगभग तीन करोड़ परिवार सरसों खेती से जुड़े हुए हैं। देश के कुल सरसों उत्पादन में अकेले राजस्थान का ही योगदान लगभग 50 प्रतिशत है। उन्होंने कहा, जीएम सरसों का सबसे बड़ा नुकसान खुद सरसों को ही होगा। फिलहाल किसान खेती के बाद अगले साल के लिए बीज बचा लेते हैं लेकिन जीएम सरसों के बाद ऐसा करना संभव नहीं रहेगा और किसानों को हर बार नये बीज खरीदने होंगे जिससे उनकी लागत बढ़ेगी।’’

मधुमक्खियों के पर-परागण के गुण और खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने में मधुमक्खियों की भूमिका के संदर्भ में शर्मा ने कहा, ‘‘जीएम सरसों को कीटरोधक बताया जा रहा है तो मधुमक्खियां भी तो एक कीट ही हैं। जब मधुमक्खियां जीएम सरसों के खेतों में नहीं जा पायेंगी तो फिर वे पुष्प रस (नेक्टर) और परागकण (पोलन) कहां से लेंगी? इससे तो हमारी मधुमक्खियां ही खत्म हो जायेंगी।’’ सीएआई के तत्वावधान में हजारों मधुमक्खीपालकों और सरसों उत्पादक किसानों ने जीएम सरसों पर रोक लगाने की मांग को लेकर विरोध-प्रदर्शन भी किया है।

सीएआई ने सरसों अनुसंधान केंद्र, भरतपुर के निदेशक पी के राय के माध्यम से प्रधानमंत्री और प्रदेश के मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजकरउनसे मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है। शर्मा ने कहा कि जीएम सरसों के पर्यावणीय परीक्षण के लिए जारी करने के संदर्भ में आनुवांशिक अभियांत्रिकी मंजूरी समिति (जीईएसी) ने अपने परीक्षण के दौरान मधुमक्खीपलन और मधु क्रांति के लक्ष्य पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया। उन्होंने कहा कि सरसों बीज के बाजार पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कब्जा हो जाने का खतरा है जो आगे चलकर मनमानी भी कर सकती हैं। शर्मा के मुताबिक, प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अंतर्गत गठित मधुमक्खी विकास समिति (बीडीसी) ने प्रधानमंत्री कार्यालय को सौंपी अपनी रिपोर्ट में लगभग 20 करोड़ ‘मधुमक्खियों की कॉलोनी’ बनाने की जरुरत बताई है जो फिलहाल सिर्फ 34 लाख है।

Cai said honey producing farmers at risk from gm mustard

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