इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने छत्रपति साहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर के कुलपति विनय पाठक के खिलाफ भ्रष्टाचार के एक मामले में दर्ज प्राथमिकी रद्द करने का अनुरोध करने वाली उनकी याचिका मंगलवार को खारिज कर दी। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि प्राथमिकी और रिकार्ड में दर्ज तथ्य पाठक के खिलाफ संज्ञेय अपराध होने का खुलासा करते हैं, इसलिए प्राथमिकी रद्द नहीं की जा सकती और इस प्रकार से एसटीएफ द्वारा गिरफ्तारी से उन्हें संरक्षण नहीं दिया जा सकता।
न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान और न्यायमूर्ति विवेक कुमार सिंह की पीठ ने पाठक की याचिका पर यह आदेश पारित किया। पीठ ने नौ नवंबर को सुनवाई पूरी की थी और मंगलवार को अपना आदेश सुनाया। यह आदेश पारित करते हुए पीठ ने मेसर्स निहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले को आधार बनाया। पीठ ने कहा, ‘‘प्राथमिकी में लगाए गए आरोपों और जांच के दौरान एकत्रित किए गए साक्ष्यों को देखने से प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध होने का खुलासा होता है, इसलिए हमें प्राथमिकी रद्द करने के इच्छुक नहीं हैं।’’
पीठ ने हालांकि स्पष्ट किया कि संबंधित निचली अदालत की जांच एजेंसी इस निर्णय में की गई टिप्पणी से प्रभावित नहीं होगी। पाठक के लिए निचली अदालत से अग्रिम जमानत की मांग करने का विकल्प खुला है और यदि जमानत की अर्जी दाखिल की जाती है तो इस पर सुनवाई टाले बगैर त्वरित निर्णय किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि पाठक ने एक निजी कंपनी का बिल पास करने के लिए कथित तौर पर 1.41करोड़ रुपये का कमीशन लेने के लिए अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को चुनौती दी थी।
यह प्राथमिकी डेविड मारियो नाम के एक व्यक्ति की शिकायत पर इंदिरा नगर पुलिस थाना में दर्ज की गई थी। पाठक ने याचिका में दलील दी थी कि प्राथमिकी में उनके खिलाफ अपराध का कोई मामला नहीं बनता और भ्रष्टाचार के मामले में अभियोग चलाने की मंजूरी के बगैर उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। वहीं दूसरी ओर, राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि चूंकि प्राथमिकी में गंभीर अपराध होने का खुलासा हुआ है, इसलिए उसे रद्द नहीं किया जा सकता।
Chhatrapati sahuji maharaj university vice chancellors petition rejected
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