भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता और त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा ने राज्य में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और कांग्रेस के गठबंधन को शनिवार को ‘अपवित्र’ गठजोड़ करार देते हुए शनिवार को कहा कि जनता दोनों दलों के गठबंधन को मुहंतोड़ जवाब देगी। माकपा और कांग्रेस ने शुक्रवार को कहा था कि वे आगामी त्रिपुरा विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ेंगे। साहा ने यह भी आरोप लगाया कि उन्होंने पूर्वोत्तर राज्य में अस्तित्व के लिए एक दूसरे के साथ गठबंधन किया, जहां दोनों दलों को कट्टर प्रतिद्वंद्वी माना जाता था।
मुख्यमंत्री ने एक सरकारी कार्यक्रम के इतर पत्रकारों से कहा, “बीती रात माकपा और कांग्रेस के बीच जो घटनाक्रम हुआ, उसे देखना अजीब था और दोनों दलों के नेता एक-दूसरे को गले लगाते नजर आए।” उन्होंने कहा, “माकपा ने कांग्रेस के सैकड़ों कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित किया था और अब दोनों दलों के नेता अस्तित्व के लिए एक-दूसरे से हाथ मिला रहे हैं।” कांग्रेस महासचिव अजय कुमार और माकपा के राज्य सचिव जितेंद्र चौधरी के बीच शुक्रवार शाम को हुई बैठक के बाद गठबंधन की घोषणा की गई।
माकपा के प्रदेश मुख्यालय में हुई बैठक में वाम मोर्चा के संयोजक नारायण कार भी मौजूद थे। यह घोषणा राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में बड़ा बदलाव है। दरअसल, माकपा-नीत वाम मोर्चे के राज्य पर 25 साल के शासन के दौरान कांग्रेस त्रिपुरा में मुख्य विपक्षी पार्टी हुआ करती थी। भाजपा ने 2018 में वाम मोर्चे की सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया था। साहा ने यह भी कहा, “यह एक अपवित्र गठबंधन है... लोग माकपा और कांग्रेस के बीच के अनकहे समझौते को जानते हैं। वे उन्हें चुनाव में करारा जवाब देंगे।”
त्रिपुरा विधानसभा की 60 सीटों पर इस साल चुनाव होने हैं। उन्होंने त्रिपुरा में भोजन, आश्रय और आजीविका की कमी के आरोपों को भी खारिज कर दिया और कहा कि पूर्वोत्तर राज्य में हो रहे चौतरफा विकास को विपक्षी दल नहीं देख पा रहे हैं। साहा ने कहा, त्रिपुरा में शांति, समृद्धि और विकास देखने के लिए उन्हें तुरंत ‘मोतियाबिंद’ की सर्जरी कराने की जरूरत है। पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब ने भी विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा से मुकाबला करने के लिए माकपा और कांग्रेस के बीच गठजोड़ की आलोचना की। अब राज्यसभा सदस्य देब ने कहा, “कल रात हमने जो देखा उससे पुष्टि होती है कि माकपा के कांग्रेस के साथ अच्छे संबंध हैं। वामपंथी दल 25 साल तक राज्य पर इसलिए शासन कर सका, क्योंकि कांग्रेस और माकपा के बीच मौन समझौता था।
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