क्रिसमस के दिन औद्योगिक शहर हावड़ा की पिलखाना बस्ती में कई लोग लेखक डोमिनिक लैपियर को याद करते हैं जिन्होंने अपनी किताब ‘सिटी ऑफ जॉय’ से इस बस्ती को वैश्विक मानचित्र पर पेश किया। जाने-माने फ्रांसीसी लेखक ने हावड़ा रेलवे स्टेशन से लगभग 3-4 किलोमीटर दूर पिलखाना की संकरी गलियों में ईसाई मिशनरियों के साथ गरीबों के लिए काम करते हुए कई महीने बिताए और वह यहां एक लोकप्रिय शख्सियत बन गए थे। पिलखाना से हावड़ा नगर निगम के पूर्व पार्षद नाशिम अहमद ने कहा, ‘‘डोमिनिक लैपियर इस ‘बस्ती’ में वंचित लोगों की मदद करने के लिए ईश्वर के दूत के तौर पर यहां आए थे।’’
पिलखाना को किसी वक्त मुंबई की धारावी के बाद देश की दूसरी सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती माना जाता था। अपनी किताब ‘सिटी ऑफ जॉय’ में लैपियर ने पिलखाना में क्रिसमस का वर्णन किया और पॉश पार्क स्ट्रीट में महंगे रेस्तरां पीटर कैट और फ्लरी के शानदार जश्न के साथ इसकी तुलना की। किताब में कहा गया है, ‘‘सिटी ऑफ जॉय (पिलखाना) में क्रिसमस के जश्न की चमक इससे कम नहीं थी। इसकी गलियां दीपों और रोशनी की झालरों से सजी हुई थी।’’
टेढ़ी-मेढी संकरी गलियों वाले पिलखाना में सेवा संघ समिति अब भी चिकित्सा देखभाल का मुख्य केंद्र है जिसमें किसी वक्त लैपियर ने सहयोग दिया। स्थानीय धर्मार्थ संगठन ‘सेवा संघ समिति’ के सीईओ रेगीनाल्ड जॉन ने कहा, ‘‘लैपियर सच्चे सज्जन और उम्मीद से भरे व्यक्ति थे।’’ यह संगठन पिलखाना की बस्तियों में 50 से अधिक वर्ष से गरीबों के लिए काम कर रहा है। जॉन उन लोगों में से एक थे जो फ्रांसीसी लेखक को पिलखाना ‘बस्ती’ लेकर आए थे और उनका 70 और 80 के दशक में यहां रह रहे लोगों की गरीबी से अभिशप्त जीवन से वास्ता कराया था।
इस बस्ती में पैदा हुए और पले-बड़े 70 वर्षीय अमानुल्ला मोहम्मद ने कहा, ‘‘मैंने लैपियर को कमीज और पेंट पहने तथा उस समय गरीबों के लिए निरंतर काम करते हुए देखा है जब पिलखाना बस्ती में साल के ज्यादातर महीनों में जलभराव रहता था।’’ लैपियर का इस महीने की शुरुआत में निधन हो गया था। उनके प्रशंसक उन्हें ऐसा शख्स बताते हैं जो ‘‘आसानी से लोगों के साथ घुल-मिल सकता था और जिसका दिल बड़ा था।
City of joys lapierre remembered on christmas in pilkhana township
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