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भाकपा ने कहा कि नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट के अल्पमत के फैसले को उजागर करने की जरूरत है

भाकपा ने कहा कि नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट के अल्पमत के फैसले को उजागर करने की जरूरत है

भाकपा ने कहा कि नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट के अल्पमत के फैसले को उजागर करने की जरूरत है

भाकपा महासचिव डी. राजा ने सोमवार को कहा कि नागरिकों को नोटबंदी पर उच्चतम न्यायालय के‘असहमति वाले फैसले’ पर उचित विचार करना चाहिए क्योंकि इसने नीतिगत फैसले पर कुछ बुनियादी मुद्दों पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने यहां संवाददाताओं से कहा कि संसद को 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘अचानक’ घोषित की गई नोटबंदी नीति के पक्ष और विपक्ष पर चर्चा करने का अवसर नहीं दिया गया था।

पूर्व राज्यसभा सदस्य ने कहा, “बहुमत (के निर्णय) ने नोटबंदी को सही ठहराया लेकिन असहमति भी दर्ज की गई। असहमति के फैसले ने कुछ बुनियादी मुद्दों पर सवाल उठाया है और हमारे नागरिकों को असहमति के फैसले पर भी उचित विचार करने की जरूरत है। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं? हमारे लोकतंत्र में संसद सर्वोच्च है।”

वामपंथी नेता ने कहा, “जब प्रधानमंत्री ने आश्चर्यजनक रूप से, अचानक, आधी रात को नोटबंदी की नीति की घोषणा की थी, तो संसद से परामर्श नहीं किया गया था। संसद को इसके फायदे और नुकसान पर चर्चा करने का अवसर नहीं दिया गया था।” उन्होंने दावा किया कि प्रधानमंत्री द्वारा बताए गए नोटबंदी के उद्देश्यों से कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता है।उन्होंने आश्चर्य जताया कि काले धन, नकली मुद्रा और आतंकवाद के वित्तपोषण को वापस लाने के संबंध में क्या हुआ। उन्होंने कहा कि सरकार ने संसद में कुछ भी नहीं कहा है और वह संसद में सब कुछ बताते हुए श्वेत पत्र पेश करने को तैयार नहीं है।

उन्होंने कहा कि नोटबंदी आम लोगों के लिए ‘भयावह’ साबित हुई। उन्होंने आरोप लगाया कि यहां तक ​​कि देश की मौद्रिक प्रणाली का प्रबंधन करने लिए स्वतंत्र निकाय ‘भारतीय रिजर्व बैंक’ (आरबीआई) को भी ‘नीति पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं दिया गया’। भाकपा नेता ने दावा किया कि प्रधानमंत्री ने फैसला किया और उन्होंने इन नीतियों को लागू करने के लिए इसे आरबीआई पर थोप दिया। उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार के 2016 में 500 और 1000 रुपये के गुणक वाले नोटों को बंद करने के फैसले को सोमवार को 4:1 के बहुमत के साथ सही ठहराया।

पीठ ने बहुमत से लिए गए फैसले में कहा कि नोटबंदी की निर्णय प्रक्रिया दोषपूर्ण नहीं थी। न्यायमूर्ति एस. ए. नज़ीर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि आर्थिक मामले में संयम बरतने की जरूरत होती है और अदालत सरकार के फैसले की न्यायिक समीक्षा नहीं कर सकती। लेकिन न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना ने कहा कि 500 और 1000 रुपये गुणक के नोट कानून बनाकर ही रद्द किए जा सकते थे, अधिसूचना के जरिए नहीं।

Cpi said need to highlight supreme courts minority verdict on demonetisation

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