विदेशी बाजारों में तेजी के रुख के बीच दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में सोमवार को कच्चा पामतेल और पामोलीन तेल कीमतों में मजबूती देखने को मिली। निर्यात और स्थानीय मांग होने से मूंगफली तेल तिलहन में भी सुधार रहा। वहीं सस्ते आयातित तेलों के सामने दाम ऊंचा होने की वजह से मांग प्रभावित होने के कारण सरसों एवं सोयाबीन तेल तिलहन और बिनौला तेल कीमतों में गिरावट आई। बाकी तेल तिलहनों की कीमतें पूर्वस्तर पर बनी रहीं। बाजार सूत्रों ने कहा कि सस्ते आयातित तेलों की बहुतायत में उपलब्धता से देश के सरसों और सोयाबीन की कीमतों पर भारी दवाब है।
प्रसंस्करण के बाद हमारे देशी तेल की लागत सस्ते आयातित तेलों से अधिक होने के कारण गैर-प्रतिस्पर्धी हो रहे हैं। इस ओर तत्काल ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है। वैसे सोयाबीन तेल तिलहन के भाव मजबूत ही हैं लेकिन सोयाबीन तेल की बिक्री पर जो पहले 8-10 रुपये प्रति किलो प्रीमियम का फायदा लिया जा रहा था वह प्रीमियम अब घटकर लगभग सात रुपये किलो रह गया है जिसे गिरावट के रूप में देखा जा रहा है। यही प्रीमियम की राशि सूरजमुखी तेल के मामले में 20 रुपये किलो का है।
सूत्रों ने कहा कि तेल तिलहन कारोबार का यह सबसे बुरा दौर कहा जा सकता है। स्थिति को देश के किसानों के हित में लाने और उपभोक्ताओं को खाद्य तेलों की महंगाई से निजात दिलाने के लिए खुदरा बिक्री के लिए निर्धारित किये जाने वाले अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) की सख्त निगरानी करनी होगी। इसी की आड़ में विदेशों में दाम टूटने के बावजूद उपभोक्ताओं को उसका लाभ नहीं दिया जा रहा। सरकार के संबंधित मंत्रालय को बाजार के सामान्य उपभोक्ता से ब्योरा लेना चाहिये कि वे बाजार से किस भाव से सोयाबीन या सूरजमुखी तेल खरीद रहे हैं।
सूत्रों ने कहा कि निर्यात के साथ साथ स्थानीय खाने की मांग के कारण मूंगफली तेल तिलहन कीमतों में मजबूती रही जबकि मलेशिया एक्सचेंज के मजबूत होने से सीपीओ और पामोलीन तेल कीमतों में तेजी आई। देश खाद्यतेलों की अपनी आवश्यकता को पूरा करने के लिए लगभग 60 प्रतिशत आयात पर निर्भर है। यह सोचनीय है कि इसके बावजूद स्थानीय पेराई मिलें क्यों हताश हैं और बंद होने के कगार पर हैं। सूत्रों के अनुसार एक और विरोधाभास है कि देश में तेल तिलहन का उत्पादन बढने के बावजूद आयात क्यों बढ़ रहा है?
देश में वर्ष 2021 नवंबर में खाद्यतेलों का आयात लगभग एक करोड़ 31.3 लाख टन का हुआ था जो नवंबर 2022 में बढ़कर लगभग एक करोड़ 40 लाखकरोड़ टन का हो गया। क्या यह तथ्य इस बात की ओर संकेत नहीं करता कि हमारे देशी तेल तिलहन बाजार में खप नहीं रहे हैं। आयात पर निर्भरता बढ़ने की वजह से हमारे तेल तिलहन कारोबार में रोजगार की स्थिति भी प्रभावित होगी। सोमवार को तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे: सरसों तिलहन - 6,835-6,885 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली - 6,685-6,745 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) - 15,800 रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली रिफाइंड तेल 2,495-2,760 रुपये प्रति टिन। सरसों तेल दादरी- 13,600 रुपये प्रति क्विंटल। सरसों पक्की घानी- 2,070-2,200 रुपये प्रति टिन। सरसों कच्ची घानी- 2,130-2,255 रुपये प्रति टिन। तिल तेल मिल डिलिवरी - 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 13,500 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 13,350 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 11,700 रुपये प्रति क्विंटल। सीपीओ एक्स-कांडला- 8,650 रुपये प्रति क्विंटल। बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 12,200 रुपये प्रति क्विंटल। पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 10,350 रुपये प्रति क्विंटल। पामोलिन एक्स- कांडला- 9,350 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल। सोयाबीन दाना - 5,675-5,775 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन लूज- 5,420-5,440 रुपये प्रति क्विंटल। मक्का खल (सरिस्का)- 4,010 रुपये प्रति क्विंटल।
Cpo palmolein oil prices firm up amid rally overseas
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