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सख्त कानूनों के बावजूद आखिर क्यों नहीं लग पा रही है रैगिंग की बढ़ती घटनाओं पर लगाम?

सख्त कानूनों के बावजूद आखिर क्यों नहीं लग पा रही है रैगिंग की बढ़ती घटनाओं पर लगाम?

सख्त कानूनों के बावजूद आखिर क्यों नहीं लग पा रही है रैगिंग की बढ़ती घटनाओं पर लगाम?

शिक्षण संस्थाओं में रैगिंग के मामलों पर लगाम नहीं लग रही। नोएडा के एक निजी इंजीनियिंरग कॉलेज के हॉस्टल में रैगिंग के दौरान बीटैक अंतिम वर्ष के चार छात्रों द्वारा प्रथम वर्ष के एक छात्र के साथ इस कदर मारपीट की गई कि उसके कंधे की हड्डियां टूट गईं। घटना के बाद से चारों छात्र फरार हैं और पुलिस उनकी तलाश में छापेमारी कर रही है। कुछ ही दिन पहले असम में सिलचर के राजकीय डेंटल कॉलेज के प्रथम वर्ष के कुछ छात्रों द्वारा नेशनल एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन पर सीनियर्स के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के बाद कॉलेज प्रशासन द्वारा 14 सीनियर छात्रों को छात्रावास से निष्कासित किया गया था। असम में ही डिब्रूगढ़ यूनिवर्सिटी में भी एक जूनियर छात्र की रैगिंग करने के आरोप में यूनिवर्सिटी ने 18 छात्रों को निष्कासित तथा तीन हॉस्टल वार्डन को निलंबित किया। एम.कॉम प्रथम वर्ष के छात्र ने हॉस्टल में अपने सीनियर्स की रैगिंग से बचने के लिए अपने हॉस्टल की दूसरी मंजिल से छलांग लगा दी थी, जिसके बाद उसके हाथ और रीढ़ में फ्रैक्चर हो गया था। ओडिशा के संबलपुर में सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज वीर सुरेंद्र साई यूनिवर्सिटी ऑफ टैक्नोलॉजी में सामने आए रैगिंग के एक मामले में पीड़ित छात्र के मुताबिक चौथे वर्ष के करीब 15 छात्रों ने उसे रोक कर आंखें नीची करने को कहा, गालियां देने लगे और रैगिंग के दौरान उसकी पिटाई की गई।

तमिलनाडु के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज में रैगिंग का वीडियो वायरल होने के बाद 7 सीनियर छात्रों को सस्पेंड किया गया। वायरल वीडियो में देखा गया था कि कैसे रैगिंग के नाम पर जूनियर मेडिकल छात्रों के कपड़े उतरवा कर सभी को कैंपस में घुमाया गया और उनके साथ अश्लील हरकतें की गईं। उन पर पानी के पाइपों से पानी डालते हुए सामान फैंका गया और कुछ छात्रों को तो टेस्टिकल्स तक पर मारा गया। ओडिशा के गंजम जिले में एक सरकारी कॉलेज में एक छात्रा के साथ अश्लील रैगिंग में शामिल 12 छात्रों को संस्थान से निष्कासित किया गया और पुलिस ने घटना में शामिल होने के आरोप में पांच छात्रों को गिरफ्तार किया। हैदराबाद के एक बिजनेस स्कूल के आठ छात्रों को भी पिछले दिनों कथित रूप से रैगिंग करने और एक छात्र की पिटाई के मामले में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया। मामले में कार्रवाई करने में कथित तौर पर नाकाम रहने के लिए बिजनेस स्कूल प्रबंधन के नौ सदस्यों के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया।

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रैगिंग के ऐसे ही एक अन्य मामले में उत्तराखण्ड के वीर चंद्र सिंह राजकीय मेडिकल कॉलेज श्रीनगर में एमबीबीएस प्रथम वर्ष के छात्रों की रैगिंग करने पर सात सीनियर छात्रों को तीन माह के लिए निलंबित किया गया और सभी को स्थायी रूप से हॉस्टल से निष्कासित किया गया। मामला उजागर भी तब हुआ, जब एमबीबीएस प्रथम वर्ष के एक छात्र ने छात्रावास में रैगिंग होने की शिकायत राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) के पोर्टल पर की थी। आईआईटी खड़गपुर के छात्रावास में एक छात्र की रहस्यमयी मौत के बाद आईआईटी प्रबंधन द्वारा करीब एक माह बाद संस्थान में एंटी रैगिंग स्क्वाड बनाने की घोषणा की गई। उस मामले में मृत छात्र के पिता द्वारा बेटे की हत्या के गंभीर आरोप के साथ-साथ आईआईटी प्रबंधन पर लापरवाही का आरोप लगाया गया था, जिसके बाद मामले की जांच सीआईडी को सौंपी गई थी। कुछ माह पहले इन्दौर के इंडेक्स मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस प्रथम वर्ष के छात्र ने तो सीनियर छात्रों द्वारा की जाने वाली रैगिंग से परेशान होकर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी।

निरन्तर सामने आ रहे रैगिंग के ऐसे मामलों की लंबी फेहरिस्त है। शिक्षण संस्थानों में रैगिंग रोकने के लिए सख्त अदालती दिशा-निर्देश हैं लेकिन फिर भी देशभर के कॉलेजों में रैगिंग के सामने आ रहे मामले चिंता बढ़ाने के लिए पर्याप्त हैं। एंटी रैगिंग हेल्पलाइन पर किसी न किसी कॉलेज से रैगिंग की शिकायतें लगातार मिल रही हैं, जिससे स्पष्ट है कि सीनियर छात्रों को अपनी क्षणिक मस्ती, उद्दंडता और रौब कायम करने के लिए अदालती आदेशों की भी परवाह नहीं है। उन्हें इस बात की भी चिंता नहीं कि रैगिंग में उनकी संलिप्तता साबित होने पर उनके भविष्य का क्या हश्र होगा। वर्ष 2009 में हिमाचल के एक मेडिकल कॉलेज में अमन काचरू नामक छात्र की रैगिंग से मौत के बाद सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी शिक्षण संस्थानों में रैगिंग विरोधी कानून सख्ती से लागू करने के आदेश दिए थे, जिसके तहत दोषी पाए जाने पर ऐसे छात्र को तीन साल के सश्रम कारावास और आर्थिक दंड का प्रावधान किया गया था।

रैगिंग करने का दोषी पाए जाने पर आरोपी छात्र को कॉलेज तथा हॉस्टल से निलंबित या बर्खास्त किया जा सकता है और उसकी छात्रवृत्ति तथा अन्य सुविधाओं पर रोक, परीक्षा देने या परीक्षा परिणाम घोषित करने पर प्रतिबंध लगाने के अलावा किसी अन्य संस्थान में उसके दाखिला लेने पर भी रोक लगाई जा सकती है। इसके अलावा रैगिंग के मामले में कार्रवाई न करने अथवा मामले की अनदेखी करने पर कॉलेज के खिलाफ भी कार्रवाई हो सकती है, जिसमें कॉलेज पर आर्थिक दंड लगाने के अलावा कॉलेज की मान्यता रद्द करने का भी प्रावधान है।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा देश के प्रत्येक उच्च शिक्षण संस्थान में रैगिंग के खिलाफ एक समिति बनाने से लेकर संबंधित नियमों का पालन नहीं करने पर संस्थान की मान्यता रद्द करने तक के सख्त निर्देश हैं लेकिन फिर भी रैगिंग के लगातार सामने आते मामलों को देखकर हैरानी होती है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अरिजीत पसायत, न्यायमूर्ति डी.के. जैन तथा न्यायमूर्ति मुकुन्दकम शर्मा की खण्डपीठ ने पहली बार 11 फरवरी 2009 को रैगिंग को लेकर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा था कि रैगिंग में मानवाधिकार हनन जैसी गंध आती है। खण्डपीठ ने राज्य सरकारों और केन्द्र शासित प्रदेशों को शिक्षण संस्थानों में रैगिंग पर रोक लगाने के लिए राघवन कमेटी की सिफारिशों को सख्ती से लागू करने का निर्देश देते हुए कहा था कि वे रैगिंग रोकने में विफल रहने वाले शिक्षण संस्थाओं की मान्यता रद्द करें। सुप्रीम कोर्ट ने 2001 में भी उन्नीकृष्णन समिति की सिफारिश के आधार पर रैगिंग पर प्रतिबंध लगाते हुए इसके लिए कठोर सजा का प्रावधान करते हुए अपने आदेश में स्पष्ट कहा था कि शिक्षा परिसरों में रैगिंग रोकना शिक्षा संस्थानों का नैतिक ही नहीं, कानूनी दायित्व भी है, जिसे न रोक पाना दण्डनीय अपराध की श्रेणी में लाया जाएगा और ऐसे संस्थानों की संबद्धता तथा उन्हें प्रदत्त सरकारी वित्तीय सहायता समाप्त की जा सकती है।

चिंता की बात है कि सख्त अदालती निर्देशों के बावजूद रैगिंग अभी भी कॉलेजों में नासूर बनकर नवोदित छात्रों को भविष्य बर्बाद कर रही है। कोविड काल से पहले के आंकड़े देखें तो रैगिंग के खिलाफ सख्त कानून बनने के बाद भी 18 अप्रैल 2012 से लेकर 23 अगस्त 2019 तक करीब सात वर्षों की अवधि में रैगिंग की 4893 शिकायतें सामने आई जबकि इन सात वर्षों में 54 छात्रों ने रैगिंग से परेशान होकर अपना जीवन खत्म करने की राह चुनी। रैगिंग के खिलाफ बनाए गए एंटी रैगिंग कॉल सेंटर में दर्ज कराए गए मामलों पर नजर डालें तो 2019 तक 11 वर्षों में कॉल सेंटरों में कुल 6187 केस दर्ज हुए, जिनमें सर्वाधिक 1078 केस वर्ष 2018 में दर्ज हुए। वर्ष 2017 में किए गए एक सर्वे के अनुसार तो देश के अधिकांश कॉलेजों में करीब 40 फीसदी छात्रों को किसी न किसी रूप में रैगिंग या सीनियर छात्रों द्वारा धमकाने का सामना करना पड़ा। बहरहाल, अब जरूरत इस बात की है कि कॉलेज प्रशासन रैगिंग में लिप्त पाए जाने वाले छात्रों के खिलाफ ऐसे कठोर कदम उठाए, जो न केवल उस कॉलेज बल्कि अन्य कॉलेजों के छात्रों के लिए नजीर बनें।

-योगेश कुमार गोयल
(लेखक 32 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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