श्रीलंका के बिगड़ते हालात इस द्विपीय राष्ट्र को और कमजोर कर देंगे
भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका एक बार फिर से विरोध प्रदर्शनों का सामना कर रहा है जिससे देश के हालात एक बार फिर से खराब होने का अंदेशा है। दरअसल आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका को दोबारा अपने पैरों पर खड़े होने के लिए जितनी मदद चाहिए उतनी उसे मिल नहीं पा रही है। श्रीलंका की सरकार के पास भी सीमित संसाधन है जिससे वह लोगों की जरूरतें पूरी नहीं कर पा रही है और इसके चलते लोगों का आक्रोश भड़कता जा रहा है। श्रीलंका के लोगों को लगता है कि अस्थायी सरकार उनके मसलों का हल नहीं निकाल सकती इसीलिए वहां जल्द से जल्द चुनाव कराये जाने चाहिए ताकि देश पर छाया संकट दूर हो सके।
श्रीलंका के लोगों को लग रहा है कि रानिल विक्रमसिंघे मुलाकातें तो बहुत-सी अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं के प्रतिनिधियों से कर रहे हैं लेकिन उसका कोई सकारात्मक हल नहीं निकल रहा है। लोगों को लगता है कि नये चुनाव ही सभी समस्याओं का समाधान हैं लेकिन वहां का निर्वाचन आयोग नये चुनाव कराये कहां से जब उसके पास पैसे ही नहीं हैं। लेकिन लगता है कि लोग एक बार फिर से कुछ सोचने और समझने को तैयार नहीं हैं इसलिए सड़कों पर प्रदर्शन बढ़ते दिख रहे हैं। इसके अलावा लोग इसलिए भी भड़क रहे हैं कि प्रदर्शनों को सरकार सख्ती से कुचल रही है।
हम आपको बता दें कि रानिल विक्रमसिंघे ने जबसे श्रीलंका के राष्ट्रपति के रूप में पदभार ग्रहण किया है, तब से कई लोगों को हिरासत में लिया गया है। हिरासत में वह लोग भी शामिल हैं जोकि बुनियादी सुविधाओं और जरूरतों की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे। दरअसल रानिल विक्रमसिंघे की सरकार ने हाल ही में कुछ कठोर आर्थिक कदम उठाये जिससे रोजमर्रा की वस्तुओं की कीमतों में जहां तगड़ा उछाल आया है वहीं गैस तथा कैरोसीन ऑयल जैसी बुनियादी जरूरत की चीजों के भी महंगा हो जाने से आम आदमी का खाना पका कर खाना भी दूभर हो गया है। अपनी अधिकतर जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर इस राष्ट्र के खजाने में विदेशी मुद्रा भंडार भी नहीं है जिससे कि वह बाहर से वस्तुओं का आयात कर सके। श्रीलंकाई लोगों ने इस दूभर जिंदगी को देखते हुए विदेशों की राह पकड़ना भी शुरू कर दिया है। जिसके पास थोड़ा बहुत पैसा है वह बाहर निकल जाना चाहता है इसीलिए विदेशी दूतावासों के बाहर लोगों की भीड़ देखी जा सकती है लेकिन वीजा मिलना आसान नहीं है इसके चलते लोगों को परेशानी का सामना भी करना पड़ रहा है।
श्रीलंका में स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाओं में हाल में कुछ सुधार देखा गया था क्योंकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने काफी मदद की थी लेकिन अब फिर से वहां व्यवस्था चरमराती दिख रही है। श्रीलंका अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संगठनों से मदद की गुहार लगा रहा है लेकिन यह मदद उसे तभी मिलेगी जब वह कड़ा वित्तीय अनुशासन बरतेगा और उधार देने वालों को अपने पैसे की वापसी की कोई गुंजाइश लगेगी। लेकिन राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के सामने परेशानी यह है कि वह जैसे ही कड़े कदम उठाते हैं तो जनता भड़क जाती है। उनके हाल के कदमों ने महंगाई रूपी आग में घी डालने का काम कर दिया है जिससे जनता भड़क गयी है और इसी के फलस्वरूप विरोध प्रदर्शन और दंगे फसाद वहां देखने को मिल रहे हैं। इस सबको रोकने के लिए श्रीलंका सरकार ने कठोर कदम उठाये हैं और कई प्रदर्शनकारियों पर गंभीर धाराओं के तहत आरोप लगाये गये हैं ताकि कानून व्यवस्था को हाथ में लेने वाले लोगों के मन में भय पैदा हो सके। इस बीच, सत्तारुढ़ सरकार को दमनकारी बताते हुए विपक्षी नेता भी प्रदर्शनों में शामिल हो गए हैं जिससे स्थिति के और बिगड़ने का अनुमान है।
बहरहाल, ऐसा लगता है कि इस द्वीपिय राष्ट्र में विरोध प्रदर्शनों ने यदि तेजी पकड़ी तो यह पहले से ही कमजोर सरकार को और कमजोर कर सकते हैं। श्रीलंका अभी तक सात दशकों में सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है। लेकिन यह संकट तभी दूर होगा जब देश एकजुटता के साथ इसका सामना करेगा। श्रीलंकाई लोगों को समझना होगा कि इस स्थिति से उबारने के लिए कोई और नहीं पहल करेगा बल्कि खुद देश के लोगों को स्थिति संभालनी होगी और इसके लिए उन्हें अपनी सरकार पर भरोसा करना ही होगा।
-नीरज कुमार दुबे
Deteriorating conditions in sri lanka will further weaken the island nation