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Economic War: रूस के खिलाफ आर्थिक युद्ध छेड़ना यूरोपीय देशों को ही पड़ने लगा महंगा? भारत इस पूरे खेल में एक साथ कई मोर्चों पर कैसे बना रहा बढ़त

Economic War: रूस के खिलाफ आर्थिक युद्ध छेड़ना यूरोपीय देशों को ही पड़ने लगा महंगा? भारत इस पूरे खेल में एक साथ कई मोर्चों पर कैसे बना रहा बढ़त

Economic War: रूस के खिलाफ आर्थिक युद्ध छेड़ना यूरोपीय देशों को ही पड़ने लगा महंगा? भारत इस पूरे खेल में एक साथ कई मोर्चों पर कैसे बना रहा बढ़त

5 दिसंबर 2022 से जी-7 देशों ऑस्ट्रेलिया और यूपोपीय संघ ने रूसी तेल का दाम 60 डॉलर प्रति बैरल निर्धारित किया था। इन देशों की कोशिश है कि एक तरफ जहां यूक्रेन के खिलाफ रूस के छेड़े गए जंग की मशीनरी को उपलब्ध हो रहे राजस्व में कटौती हो और तेल के दाम इकने भी न बढ़ जाएं कि इससे कोविड से पहले ही खस्ता हाल से जूझ रही अर्थव्यवस्था की रिकवरी मोड पर व्यापक असर हो। ये रूस और कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका और यहां तक ​​कि ऑस्ट्रेलिया सहित दुनिया के 8 सबसे शक्तिशाली देशों के बीच आर्थिक युद्ध के एक और दौर की शुरुआत का प्रतीक है। पश्चिमी देशों के रूस के खिलाफ इस लामबंदी ने पूरी दुनिया की चिंताएं बढ़ा दी है! क्यों? क्योंकि उसके जवाब में रूस ने जी7 और इस मूल्य सीमा का पालन करने वाले अन्य सभी देशों को सभी तेल निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर दी है। क्रूड ऑयल और प्रतिबंधों की तरह इस आर्थिक लड़ाई का भारत, चीन और दुनिया के हर दूसरे देश पर स्थायी प्रभाव पड़ने वाला है। भारत वस्तुतः इन महत्वपूर्ण आर्थिक युद्धों के बीच कूटनीति की एक बारिक रेखा पर खड़ा है। ऐसे में सवाल यह है कि इस आर्थिक युद्ध में कौन जीतेगा और भारत पर इसका क्या प्रभाव पड़ने वाला है?

प्राइव कैप स्ट्रेटर्जी क्या है 

सबसे पहले बात करते हैं कि ये प्राइव कैप स्ट्रेटर्जी क्या है और ये कैसे काम करता है। रूसी की तेल बिजनेस को पंगु बनाने की यूरोपीय देशों की क्या है रणनीति और इसके जवाब में रूस क्या कदम उठा रहा है। इन सबका भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा। पूरी स्थिति को समझने के लिए थोड़ा फ्लैशबैक में जाते हैं। 22 फरवरी 2022 को रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया। जवाब में ईयू, यूके और अमेरिका ने रूस पर कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगाए। यहां गौर करने वाली बात है कि यूरोप का 40 प्रतिशत से अधिक तेल रूस से आता है। रूस ने इसका फायदा उठाया और इसकी आपूर्ति घटानी शुरू कर दी। परिणामस्वरूप तेल की कीमत में वृद्धि हुई। नवंबर 2021 में 70 डॉलर प्रति बैरल की कीमत से ये जुलाई 2022 में 116.85 डॉलर प्रति बैरल पर आ पहुंचा। इससे साफ है कि प्रतिबंधों के बाद रूस और ज्यादा पैसा कमाने लगा। क्योंकि अब वे कम तेल बेच सकते थे और दाम दोगुने कर सकते थे। 

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क्या ये यूरोप को ही कर रहा बैक फायर?

 सामान्य दिनों के दौरान रूस का औसत राजस्व मार्च से जुलाई के बीच 50 बिलियन डॉलर के करीब था। लेकिन 2022 के मार्च से जुलाई के महीने में ये आंकड़ा लगभग दोगुना हो गया। रूस की आय का प्रमुख स्रोत तेल है, जो अभी भी उन्हें हर महीने 20 बिलियन डॉलर दे रहा है। इससे साफ है कि यूरोप के लगाए गए प्रतिबंध हवा-हवाई साबित हो रहे हैं।  उल्टा ये उसे ही बैक फायर कर रहा है। 

रूस ने उठाया क्या कदम 

अब यूरोपीय देश और जी-7 एक नई रणनीति के साथ सामने आए। खरीदारों का एकाधिकार के मकसद लिए उन्हें एक साथ हाथ मिलाया । सरल शब्दों में कहे तो उन्होंने मिलकर रूस से आने वाले तेल पर 60 डॉलर प्रति बैरल मूल्य की सीमा तय करने का फैसला किया। सका मकसद रूस को तेल की कीमतों के नियंत्रण से दूर रखना है। अब यूरोपीय देश ऐसा कर रहे थे तो क्या रूस हाथ पर हाथ रख सब देख रहा था। जवाब है नहीं, पुतिन उन यूरपोयिन देशों को तेल का निर्यात नहीं करेंगे जो तेल और तेल उत्पादों की कीमतों को तय करने की जिद कर रहे हैं। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूरोपीय संघ (ईयू) में उन देशों को तेल निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के एक डिक्री पर हस्ताक्षर किए हैं जो रूसी तेल पर मूल्य कैप लगाते हैं। डिक्री के अनुसार, प्रतिबंध 1 फरवरी, 2023 से लागू होगा। क्रेमलिन के फरमान में कहा गया है: "यह ... 1 फरवरी, 2023 को लागू होता है और 1 जुलाई, 2023 तक लागू रहता है।"हालाँकि, डिक्री में एक खंड शामिल है जो पुतिन को विशेष मामलों में प्रतिबंध को खत्म करने की अनुमति देता है।

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किन यूरोपीय संघ के देशों ने रूस से सबसे अधिक तेल आयात किया?

नवीनतम आईईए डेटा के आधार पर जर्मनी नवंबर 2021 में कच्चे तेल के 687,000 बीपीडी और रिफाइंड उत्पादों के 149,000 बीपीडी आयात करने वाला यूरोपीय संघ का शीर्ष खरीदार रहा है। जर्मनी रूसी पाइपलाइन क्रूड का यूरोपीय संघ का सबसे बड़ा आयातक भी था, जो 2021 में 555,000 बीपीडी था, जबकि पोलैंड ने 300,000 बीपीडी पाइपलाइन क्रूड का आयात किया था। दोनों द्रुज़बा पाइपलाइन के उत्तरी मार्ग पर हैं, जो यूरोप में रूसी तेल निर्यात के लिए मुख्य पारगमन मार्ग है। नीदरलैंड, यूरोप का प्रमुख व्यापारिक केंद्र, रूसी कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा आयातक और रूसी परिष्कृत उत्पादों का यूरोपीय संघ का शीर्ष आयातक था। डच ने नवंबर 2021 में 414,000 बीपीडी क्रूड और 335,000 बीपीडी रिफाइंड उत्पादों का आयात किया।

यूरोपीय संघ के कौन से देश रूसी तेल पर सबसे अधिक निर्भर थे?

यूक्रेन के माध्यम से चलने वाली द्रुज़बा पाइपलाइन के दक्षिणी मार्ग पर स्थित देश विशेष रूप से रूसी कच्चे तेल के आयात पर निर्भर हैं। नवंबर 2021 में स्लोवाकिया के कच्चे तेल के आयात में रूसी तेल का हिस्सा 92% था। समुद्र के द्वारा आयात करने वालों के लिए, रूसी तेल का लिथुआनिया द्वारा आयात का 87% और नवंबर 2021 में फिनलैंड के आयात का 84%, आईईए के आंकड़ों से पता चलता है। उन दोनों देशों ने कहा है कि वे अब रूस से खरीदारी नहीं कर रहे हैं।

भारत पर कितना असर

वैसे तो भारत पहले ही साफ कर चुका है कि वो उन देशों में शुमार नहीं है जो पश्चिमी देशों के नियंत्रित दामों को मानेंगे। इसके साथ ही भारत की तरफ से ये भी दो टूक कह दिया गया है कि वो वहीं करेगा जो उसके हित में होगा। यानी भारत और चीन को रूस की तेल की सप्लाई जारी रहने वाली है। 31 मार्च 2022 के वार्षित वित्त वर्ष के आंकड़ों के अनुसार भारत में आयातित रूसी तेल की मात्रा कुल आयात का 0.2 प्रतिशत था। लेकिन अब ये 20 प्रतिशत से भी अधिक हो गया है। भारत की कुल तेल की आवश्यकता 80 प्रतिशत से अधिक आयात से पूरा होता है। 31 मार्च को खत्म हुए वित्त वर्। में भारत का कुल तेल आयात  बिल 119 अरब डॉलर था। 

तेल व्यापार ने बदली परिस्थितियां

वाणिज्य विभाग के द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार,  इस साल भारत का एक्सपोर्ट बढ़ता दिखता है। भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीदकर लगातार निर्यात में बढ़ोतरी कर रहा है। अप्रैल से अक्टूबर के दौरान भारत के एक्सपोर्ट पर एक बार नजर डालें तो नीदरलैंड को 10.4 बिलियन डॉलर का एक्पोर्ट किया जा चुका है। वहीं ब्राजील को 6.3 बिलियन डॉलर का, इंडोनेशिया को 6 बिलियन डॉलर, साउथ अफ्रीका को 5.5 बिलियन डॉलर, फ्रांस को 4.4 बिलियन डॉलर, इजराइल को 4 बिलियन डॉलर, नाइजीरिया को 3.4 बिलियन डॉलर, तंजानिया को 2.4 बिलियन डॉलर का निर्यात किया है। 


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