मांग कमजोर होने के कारण बीते सप्ताह दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में सरसों, सोयाबीन, मूंगफली सहित अधिकांश तेल-तिलहन कीमतों में गिरावट आई, जबकि सबसे सस्ता होने की वजह से वैश्विक मांग के चलते कच्चे पामतेल (सीपीओ) और पामोलीन तेल कीमतों में मजबूती दिखाई दी। देश में ‘कोटा प्रणाली’ लागू होने की वजह से बाकी आयात प्रभावित होने से कम आपूर्ति की स्थिति पैदा होने के कारण सोयाबीन तेल (दिल्ली) के भाव में सुधार आया।
बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि लगभग छह माह पूर्व जिस सूरजमुखी तेल का भाव कांडला बंदरगाह पर 2,500 डॉलर प्रति टन था वह विदेशों से आपूर्ति में सुधार होने के कारण अब घटकर 1,360 डॉलर प्रति टन रह गया है। सोयाबीन तेल से जिस सूरजमुखी तेल का भाव 350 डॉलर ऊंचा था वह अब सोयाबीन तेल के दाम के मुकाबले 100 डॉलर नीचे हो गया है। यानी जिस सूरजमुखी तेल का भाव लगभग 200 रुपये किलो हुआ करता था वह 88 रुपये घटकर अब 112 रुपये किलो रह गया है। इस बीच, सरकार ने सूरजमुखी का उत्पादन बढ़ाने के लिए इसके न्यूनतम समर्थन मूल्य को 5,400 रुपये क्विंटल से बढ़ाकर 5,800 रुपये क्विंटल कर दिया है लेकिन कोटा व्यवस्था के तहत आयातित सूरजमुखी तेल के कम भाव (112 रुपये किलो) के मुकाबले देश में सूरजमुखी उत्पादक किसानों को सूरजमुखी तेल निकालने की लागत लगभग 40 रुपये किलो अधिक बैठेगी।
इस आयातित सस्ते सूरजमुखी तेल के सामने स्थानीय किसानों के 152 रुपये का भाव कैसे प्रतिस्पर्धा करेगा? कोई भी किसान इस जोखिम को लेने से कतरा सकता है। सूत्रों ने कहा कि देश में किसान सोयाबीन की बुवाई करने में इसलिए भी दिलचस्पी लेते हैं क्योंकि इससे खाद्य तेल के अलावा भी करीब 82 प्रतिशत डी-आयल्ड केक (डीओसी) निकलता है जिसका मुर्गीदाना और पशु आहार के रूप में प्रयोग होता है। किसान स्थानीय बिक्री के साथ-साथ डीओसी के निर्यात से अतिरिक्त लाभ भी कमाते हैं।
सूत्रों ने कहा कि अगले महीने महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, हरियाणा और पंजाब सहित कुछ राज्यों में सूरजमुखी की बिजाई होनी है। गौरतलब है कि पहले सूरजमुखी का इतना उत्पादन था कि हमें थोड़ी बहुत मात्रा में ही इस तेल का आयात करना होता था। देश में सूरजमुखी तेल का घरेलू उत्पादन 1-2 लाख टन के बीच होता है। उन्होंने कहा कि इस स्थिति के बीच सूरजमुखी तेल का भाव सोयाबीन से नीचे होना चाहिये था लेकिन कम आपूर्ति की स्थिति को देखते हुए थोक बाजार में सूरजमुखी तेल 155-160 रुपये और खुदरा में लगभग 180 रुपये किलो बिक रहा है।
कीमत टूटने के बावजूद कम आपूर्ति की स्थिति का फायदा उठाते हुए विक्रेता उपभोक्ताओं से प्रीमियम राशि वसूल कर रहे हैं। देश के प्रमुख तेल संगठनों को इस स्थिति के बारे में भी सरकार को बताना चाहिये। उन्हें बताना चाहिये कि शुल्कमुक्त आयात के कोटा प्रणाली के कारण देश में ‘शार्ट सप्लाई’ (कम खाद्यतेल आपूर्ति) की स्थिति बनी है और सरकार को कोटा प्रणाली को तत्काल खत्म करने के बारे में आगाह करना चाहिये और पहले की तरह इस तेल पर अधिकतम आयात शुल्क लगाने के बारे में सोचना चाहिये।
सूत्रों ने कहा कि महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक में मुर्गीदाने और मवेशी चारे के लिए सूरजमुखी के डीओसी और इसके खल का चलन है। सूरजमुखी का उत्पादन नहीं बढ़ा तो इन राज्यों को डीओसी और खल की आपूर्ति कहां से होगी? देश में तिलहन उत्पादन तभी बढ़ सकता है जब किसानों को अपने उपज के अच्छे दाम मिलें। सूत्रों ने बताया कि विदेशी बाजारों में खाद्य तेलों के दाम टूटने से सभी तेल- तिलहन कीमतों पर दबाव कायम हो गया लेकिन इसके बावजूद उपभोक्ताओं को कोई राहत नहीं है। इसकी वजह सरकार की तेल आयात के संबंध में अपनायी गई ‘कोटा प्रणाली’ है।
कोटा प्रणाली लागू होने के बाद बाकी आयात ठप पड़ने से बाजार में कम आपूर्ति की स्थिति से सूरजमुखी और सोयाबीन तेल उपभोक्ताओं को पहले से कहीं अधिक दाम पर खरीदना पड़ रहा है। पिछले साल सोयाबीन और पामोलीन के भाव में जो अंतर 10-12 रुपये का होता था वह इस वर्ष बढ़कर लगभग 40 रुपये प्रति किलो का हो गया है। पामोलीन इस कदर सस्ता हो गया है कि इसके आगे कोई और तेल टिक नहीं पा रहा है।
यही वजह है कि जाड़े की मांग होने के बावजूद खाद्य तेलों के भाव भारी दबाव में नीचे जा रहे हैं। सूत्रों ने कहा कि बिनौला में यही हाल है। एक तो विदेशों में बाजार टूटे हुए हैं तथा किसान सस्ते में बिक्री के लिए मंडियों में कम आवक ला रहे हैं। इस वजह से जिनिंग मिलें चल नहीं पा रही हैं जो बिनौला से रुई और नरमा को अलग करती हैं। छोटे उद्योगों की हालत बहुत ही खराब है। कोटा प्रणाली से किसान, तेल उद्योग और उपभोक्ताओं में से किसी को कोई राहत मिलती नहीं दिख रही है।
सूत्रों ने कहा कि देश में तेल-तिलहन उद्योग की हालत सुधारने और देश को आत्मनिर्भरता की राह पर ले जाने की जिम्मेदारी तेल संगठनों को भी निभानी होगी और इसके लिए उन्हें समय रहते सरकार को जमीनी वस्तुस्थिति की जानकारी देनी चाहिए। सूत्रों के मुताबिक पिछले सप्ताहांत के मुकाबले बीते सप्ताह सरसों दाने का भाव 25 रुपये घटकर 7,275-7,325 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों दादरी तेल समीक्षाधीन सप्ताहांत में 100 रुपये घटकर 14,750 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
वहीं सरसों पक्की घानी और कच्ची घानी तेल की कीमतें भी क्रमश: 20-20 रुपये घटकर क्रमश: 2,230-2,360 रुपये और 2,290-2,415 रुपये टिन (15 किलो) पर बंद हुईं। सूत्रों ने कहा कि विदेशों में खाद्य तेलों के भाव टूटने से समीक्षाधीन सप्ताह में सोयाबीन दाने और लूज के थोक भाव क्रमश: 100-100 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 5,575-5,675 रुपये और 5,385-5,435 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुए। ‘कोटा प्रणाली’ के कारण आयात प्रभावित होने की वजह से देश में ‘शार्ट सप्लाई’ के कारण सोयाबीन इंदौर और सोयाबीन डीगम तेल जहां अपने पिछले सप्ताहांत के स्तर पर पूर्ववत बंद हुए, वहीं सोयाबीन दिल्ली तेल 50 रुपये के लाभ के साथ 14,250 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
नई फसल की आवक बढ़ने के कारण समीक्षाधीन सप्ताह में मूंगफली तेल-तिलहनों कीमतों में गिरावट देखने को मिली। समीक्षाधीन सप्ताहांत में मूंगफली तिलहन का भाव 75 रुपये टूटकर 6,510-6,570 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। पूर्व सप्ताहांत के बंद भाव के मुकाबले समीक्षाधीन सप्ताह में मूंगफली तेल गुजरात 150 रुपये टूटकर 14,950 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ जबकि मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड का भाव 15 रुपये की गिरावट के साथ 2,425-2,690 रुपये प्रति टिन पर बंद हुआ।
सूत्रों ने कहा कि सबसे सस्ता होने की वजह से दुनिया में सीपीओ और पामोलीन तेल की मांग बढ़ी है। इस वजह से समीक्षाधीन सप्ताह में कच्चे पाम तेल (सीपीओ) का भाव 400 रुपये बढ़कर 8,950 रुपये क्विंटल पर बंद हुआ। जबकि पामोलीन दिल्ली का भाव 150 रुपये बढ़कर 10,450 रुपये और पामोलीन कांडला का भाव 200 रुपये लाभ के साथ 9,600 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। तेल कीमतों पर दबाव होने के बीच समीक्षाधीन सप्ताह में बिनौला तेल भी 200 रुपये टूटकर 12,400 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बंद हुआ।
Edible oil prices fell last week due to weak demand
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