विदेशी बाजारों में खाद्य तेलों के भाव टूटने से बीते सप्ताह दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में आयातित तेलों के साथ-साथ सभी देशी तेल-तिलहनों पर दबाव कायम हो गया जिससे सरसों, मूंगफली, सोयाबीन तेल-तिलहन, बिनौला, कच्चा पामतेल (सीपीओ), पामोलीन तेल कीमतों में गिरावट आई। बाजार के जानकार सूत्रों ने बताया कि विदेशी बाजारों में खाद्य तेलों के दाम टूटने से सभी तेल- तिलहन कीमतों पर दबाव कायम हो गया लेकिन इसके बावजूद उपभोक्ताओं को कोई राहत नहीं है।
इसकी वजह सरकार की तेल आयात के संबंध में अपनायी गई ‘कोटा प्रणाली’ है। कोटा प्रणाली लागू होने के बाद बाकी आयात ठप पड़ने से बाजार में कम आपूर्ति की स्थिति से सूरजमुखी और सोयाबीन तेल उपभोक्ताओं को पहले से कहीं अधिक दाम पर इनकी खरीद करनी पड़ रही है। पिछले साल सोयाबीन और पामोलीन के भाव में जो अंतर 10-12 रुपये का होता था वह इस वर्ष बढ़कर लगभग 40 रुपये प्रति किलो का हो गया है। पामोलीन इस कदर सस्ता हो गया है कि इसके आगे कोई और तेल टिक नहीं पा रहा है। यही वजह है कि जाड़े की मांग होने के बावजूद खाद्य तेलों के भाव भारी दबाव में नीचे जा रहे हैं।
सूत्रों ने कहा कि बिनौला में यही हाल है। एक तो विदेशों में बाजार टूटे हुए हैं तथा किसान सस्ते में बिक्री के लिए मंडियों में कम आवक ला रहे हैं। इस वजह से जिनिंग मिलें चल नहीं पा रही हैं जो बिनौला से रुई और नरमा को अलग करती हैं। छोटे उद्योगों की हालत बहुत ही खराब है। कोटा प्रणाली से किसान, तेल उद्योग और उपभोक्ताओं में से किसी को कोई राहत मिलती नहीं दिख रही है। सूत्रों ने कहा कि देश के लिए सबसे महत्वपूर्ण किसान हैं और उसके बाद उपभोक्ता और फिर तेल उद्योग का स्थान है।
इन सभी के हितों में समुचित सामंजस्य कायम करने में बड़े तेल संगठनों की अहम भूमिका होनी चाहिये। लेकिन कोटा प्रणाली से अपेक्षित परिणाम नहीं मिल रहा है यानी खाद्य तेलों के दाम सस्ता होने के बजाय महंगा हो गये हैं। इस पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। देश के प्रमुख तेल संगठनों का दायित्व बनता है कि वे सरकार को जमीनी सचाई बताये और समुचित रास्ते के बारे में परामर्श दे। सूत्रों के मुताबिक खाद्य तेल में आत्मनिर्भर होने के लिए सरकार को बहुत प्रयास करने होंगे और इसके लिए खाद्य तेलों का वायदा कारोबार को न खोलना सबसे अहम है।
सूत्रों के मुताबिक पिछले सप्ताहांत के शुक्रवार के बंद भाव के मुकाबले बीते सप्ताह सरसों दाने का भाव 175 रुपये घटकर 7,300-7,350 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों दादरी तेल समीक्षाधीन सप्ताहांत में 550 रुपये घटकर 14,850 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। वहीं सरसों पक्की घानी और कच्ची घानी तेल की कीमतें भी क्रमश: 90-90 रुपये घटकर क्रमश: 2,250-2,380 रुपये और 2,310-2,435 रुपये टिन (15 किलो) पर बंद हुईं। सूत्रों ने कहा कि विदेशों में खाद्य तेलों के भाव टूटने से समीक्षाधीन सप्ताह में सोयाबीन तेल-तिलहन कीमतों में गिरावट दर्ज हुई।
समीक्षाधीन सप्ताह में सोयाबीन दाने और लूज के थोक भाव क्रमश: 125 और 115 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 5,675-5,775 रुपये और 5,485-5,545 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुए। इसी तरह समीक्षाधीन सप्ताह में सोयाबीन तेल कीमतों में भी हानि दर्ज हुई। सोयाबीन दिल्ली का थोक भाव 900 रुपये घटकर 14,200 रुपये पर बंद हुआ। सोयाबीन इंदौर का भाव 950 रुपये घटकर 13,850 रुपये पर बंद हुआ। सोयाबीन डीगम का भाव भी 800रुपये की गिरावट के साथ 12,750 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। नई फसल की आवक बढ़ने के कारण समीक्षाधीन सप्ताह में मूंगफली तेल-तिलहनों कीमतों में गिरावट देखने को मिली।
समीक्षाधीन सप्ताहांत में मूंगफली तिलहन का भाव 225 रुपये टूटकर 6,585-6,645 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। पूर्व सप्ताहांत के बंद भाव के मुकाबले समीक्षाधीन सप्ताह में मूंगफली तेल गुजरात 520 रुपये टूटकर 13,850 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ जबकि मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड का भाव 75 रुपये की गिरावट के साथ 2,445-2,705 रुपये प्रति टिन पर बंद हुआ। सूत्रों ने कहा कि पामोलीन तेल का भाव काफी टूटा हुआ है। समीक्षाधीन सप्ताह में कच्चे पाम तेल (सीपीओ) का भाव 450 रुपये घटकर 8,550 रुपये क्विंटल पर बंद हुआ। जबकि पामोलीन दिल्ली का भाव 500 रुपये टूटकर 10,300 रुपये और पामोलीन कांडला का भाव 400 रुपये की हानि के साथ 9,400 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। तेल कीमतों पर दबाव होने के बीच समीक्षाधीन सप्ताह में बिनौला तेल भी 800 रुपये टूटकर 12,600 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बंद हुआ।
Edible oil prices trended down in the last week due to falling prices in foreign markets
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