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एक खबर में सबकी क़बर (व्यंग्य)

एक खबर में सबकी क़बर (व्यंग्य)

एक खबर में सबकी क़बर (व्यंग्य)

एक पत्रकार ने नौकरी छोड़कर यूट्यूब चैनल शुरु कर दिया। तब एक यूजर ने पूछा, यदि पहले की तरह किसी ने इसे भी खरीद लिया तो कहाँ जाओगे? पहले दिन उस पत्रकार ने पूरा मन लगाकर काम किया। तब एक यूजर ने फिर से पूछा, आज तुमने कितनी खबरें दिखाईं? पत्रकार ने कहा कि मैंने तो सिर्फ एक खबर ही दिखाई। यूजर चौंककर बोला, क्या सिर्फ एक ही खबर। आम तौर पर भौंकू चैनलों पर काम करने वाले हर भौंकने वाले पत्रकार दस से पंद्रह खबर तो छींक मारकर दिखा देते हैं। अच्छा ये बताओं तुमने कौनसी खबर दिखाई? 

एक खबर में सबकी क़बर । पत्रकार बोला। 

क्या! लेकिन तुमने यह कैसे किया? आश्चर्यजनक रूप से यूजर ने पूछा।

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पत्रकार ने कहा, एक यूजर ने कमेंट बॉक्स में लिख डाला कि दम है तो अपनी खबर से मुझे कबर तक पहुँचाओ। मैंने सबसे पहले दो हजार रुपए की नोट ली। उसे ऊपर से नीचे की ओर फेंक दिया। मैंने कहा इसे कहते हैं रुपए का गिरना। वह काफी प्रभावित हुआ। फिर मैंने कहा कि इसे मैं कहीं से भी ढूँढ़ सकता हूँ। मैंने अपने फोन में वाईफाई ऑन कर दो हजार के नोट में छिपे चिप से लिंक किया। गूगल मैप की तर्ज पर मुझे दो हजार रुपए का पता मिल गया। यूजर का होश उड़ता जा रहा था। मैं यहीं तक नहीं रुका। फिर मैंने कहा कि यह नोट गुलाबी है। गुलाबी रंग से प्यार बढ़ता है। इसलिए इस नोट को अपने जेब में संभाले रखना। प्रेम खर्च करने से जीवन में शांति के साथ-साथ बची-खुची खुशी भी चली जाएगी। इतना कहते ही यूजर ने अपना पर्स टटोला। उसमें रखी दो हजार की नोट गायब थी। मैंने उसे ढांढस बंधाते हुए कहा कि इसमें रोने जैसी कोई बात नहीं है। एक बार अपने फोन का मैसेज इनबॉक्स देख लो। उसमें संदेश आया होगा कि फलां केर फंड में दो हजार जमा करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद। आपकी देशभक्ति वेरिफाइड हो चुकी है। यह पढ़कर उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने अपने साथ-साथ एक लाख फॉलोवर्स को मेरे यूट्यूब चैनल पर सब्सक्राइब करवाकर मेरा गुणगान कर रहा है।

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पहले यूजर ने कहा, वाह यह तो बड़े कमाल की बात है। लेकिन मुझे यह समझ नहीं आता कि बीस-पच्चीस ऐसे भी यूजर हैं जो बार-बार तुम्हारी हर प्रेजेंटेशन पर तारीफों के पुल बाँधते नजर आते हैं। वैसे ये हैं कौन? 

तब पत्रकार ने कहा, ये बड़े-बड़े न्यूज चैनलों के एंकर हैं, जो मेरा मसाला चुराकर अपने चैनलों पर लड़ने-झगड़ने की तड़कदार-भड़कदार रेसिपी बनाते हैं। अंदर की बात यह है कि बेवकूफ बनने वाले भी बेवकूफ बनाने का मसाला यहीं से ले जाते हैं। कुछ लोग मुझसे सवाल-जवबा तलब करते हुए इसी का प्रदर्शन करते हैं।

- डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’
(हिंदी अकादमी, मुंबई से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)

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