विदेशी बाजारों में गिरावट और मांग कमजोर होने के कारण दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में बृहस्पतिवार को भी लगभग सभी तेल-तिलहन कीमतों में गिरावट दिखाई दी लेकिन उपभोक्ताओं को इस गिरावट का लाभ फिलहाल मिलना बाकी है। कारोबारी सूत्रों ने कहा कि मलेशिया एक्सचेंज में 4.5 प्रतिशत की गिरावट रही और यहां शाम का कारोबार बंद है। शिकॉगो एक्सचेंज में भी दो प्रतिशत की गिरावट है। विदेशों की इस गिरावट और मांग कमजोर होने से स्थानीय तेल-तिलहन कीमतों पर दबाव कायम हो गया।
सूत्रों ने बताया कि खाद्य तेल कीमतों की मंदी से तेल उद्योग, किसान परेशान हैं। दूसरी ओर आयातक पूरी तरह बैठ गये हैं, क्योंकि उनपर बैंकों का भारी कर्ज का बोझ आ गया है। सरकार की ‘कोटा व्यवस्था’ के कारण उत्पन्न ‘शॉर्ट सप्लाई’ (कम आपूर्ति) के चलते उपभोक्ताओं को भी खाद्य तेल बाजार टूटने का फायदा नहीं मिल रहा। इसके उलट उन्हें सोयाबीन तेल और सूरजमुखी तेल ऊंचे दाम पर खरीदना पड़ रहा है। सरकार को यदि तेल- तिलहन मामले में आत्मनिर्भरता हासिल करनी है तो एक प्रकोष्ठ बनाकर नियमित तौर पर तेल-तिलहन बाजार की निगरानी रखनी होगी और किसानों को तिलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन बढ़ाना होगा।
सूत्रों ने कहा कि 1985 से पहले रिफाइंड नहीं था और उपभोक्ताओं में वनस्पति का प्रचलन था। देशी तेल-तिलहनों (तिल, सरसों, मूंगफली आदि) का मुकाबला आयातित तेल नहीं कर सकते। उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद, हरदोई, सीतापुर, हल्द्वानी, लखनऊ, रायबरेली जैसे स्थानों पर तिल, सरसों और मूंगफली का अच्छा खासा उत्पादन होता था। इन स्थानों पर तिलहन खेती क्यों प्रभावित हुई इसकी समीक्षा कर फिर से यहां तिलहन खेती को प्रोत्साहन देने के लिए प्रयास किये जाने चाहिये। किसानों को अधिक कीमत मिले भी तो देश का पैसा देश में ही रहेगा उल्टे किसानों की क्रय शक्ति बढ़ेगी और वे तिलहन उत्पादन बढ़ाने का प्रयास करेंगे।
हल्द्वानी में सोयाबीन खूब होती थी जो अब उत्तराखंड में आता है। हल्द्वानी के सोयाबीन से 21-22 प्रतिशत तेल प्राप्ति होती थी जबकि मध्य प्रदेश के सोयाबीन में तेल प्राप्ति का स्तर लगभग 18 प्रतिशत ही है। कर्नाटक में तो हर दूसरे महीने सूरजमुखी की फसल आती थी जो अब लगभग ठप है। पहले पूरे साल में तेल-तिलहन बाजार में पांच प्रतिशत की मंदी-तेजी आती थी लेकिन अब तो हर रोज तेल कीमतों में ऐसा देखने को मिल रहा है।
इसे रोकने के समुचित उपाय किये बिना देश को तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाना असंभव है। पिछले लगभग 30 साल से तमाम प्रयासों के बावजूद देश इस मामले में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने के बजाय धीरे-धीरे आयात पर निर्भर होता गया और अब भी इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो रही सही उम्मीद खत्म हो जायेगी और देश पूरी तरह आयात पर निर्भर होगा। सूत्रों ने कहा कि वर्ष 97-98 में खाद्य तेलों के आयात पर भारत लगभग 10,000 करोड़ रुपये खर्च करता था जो मौजूदा वक्त में बढ़कर लगभग 1,57,000 करोड़ रुपये हो गया है।
वर्ष 1991-92 में हम तेल-तिलहन से विदेशी मुद्रा की कमाई करते थे और आज भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा खाद्य तेलों के आयात पर खर्च करने लगे हैं।
बृहस्पतिवार को तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:
सरसों तिलहन - 7,275-7,325 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली - 6,585-6,645 रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) - 15,100 रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली रिफाइंड तेल 2,445-2,705 रुपये प्रति टिन। सरसों तेल दादरी- 14,750 रुपये प्रति क्विंटल। सरसों पक्की घानी- 2,240-2,370 रुपये प्रति टिन।
सरसों कच्ची घानी- 2,300-2,425 रुपये प्रति टिन। तिल तेल मिल डिलिवरी - 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 14,300 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 14,000 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 12,750 रुपये प्रति क्विंटल। सीपीओ एक्स-कांडला- 8,400 रुपये प्रति क्विंटल। बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 12,700 रुपये प्रति क्विंटल। पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 10,200 रुपये प्रति क्विंटल। पामोलिन एक्स- कांडला- 9,150 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल। सोयाबीन दाना - 5,625-5,725 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन लूज 5,435-5,485 रुपये प्रति क्विंटल। मक्का खल (सरिस्का) 4,010 रुपये प्रति क्विंटल।
Fall in oil oilseed prices no relief to consumers at present
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