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बढ़िया किस्मत वाले गड्ढे (व्यंग्य)

बढ़िया किस्मत वाले गड्ढे (व्यंग्य)

बढ़िया किस्मत वाले गड्ढे (व्यंग्य)

शहर की मुख्य सड़क की उचित मरम्मत, बरसात से पहले निपटाकर कर भुगतान भी निपटा लिया था क्योंकि नेता, अफसर व ठेकेदार को इसके शुद्ध लाभ मालूम थे। मुख्य सड़क से जुड़ने वाली दूसरी सड़कें मरम्मत के लिए कई साल से रो रही थीं लेकिन बिना बजट उनकी तरफ देखना फायदे का सौदा नहीं था। मरम्मत हुई सड़क की बजरी और सीमेंट को पता था कि उन्होंने आने वाली कम बारिश में भी बह जाना है। उससे बेहतर ही हुआ, इस बार ज़्यादा बरसात की गलती के कारण सड़क के गड्ढे पहले से ज़्यादा दिखने लग गए। बारिश होती गई और गड्ढों की लम्बाई, चौड़ाई व गहराई बढ़ती ही गई। कई गड्ढे अब खड्ढे होने लगे। आठ इंच, दस इंच, दो फुट।

कई शहर भक्तों ने नगरपालिका में फोन किया, पार्षद, सचिव, प्रधान से निवेदन किया। इस बीच सबसे बड़े खड्डे सॉरी गड्ढे ने साथी छोटे गड्ढों के साथ मिलकर ऊपर से गुज़रने वाले टायरों से भी कहा मगर वे भी अनसुना कर निकलते रहे। सड़क के किनारे ऊंची दुकान के मालिक को भी कहा कि आप ही कुछ टूटी ईंटें व मिट्टी हम पर डाल दो पर उसने कहा पार्षद हमारा बंदा नहीं है, दूसरी पार्टी का है, हम क्यूं करें। एक दिन बारिश के दौरान एक प्रखर पत्रकार वहां दोपहिया पर निकल रहे थे। पानी में गड्ढे यानि खड्डे के क्षेत्रफल का अंदाज़ा नहीं लगा, सो उन्हें वहाँ गिरना ही पड़ा। पानी के कारण चोट थोड़ी कम लगी।

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दुकानदार ने आकर उन्हें उठाया। दोनों ने मिलकर पानी में डूबे गड्ढों की कई फोटो खींची। दुकानदार ने अपने वर्कर से कई गड्ढे मिटटी से भरकर पूरा विवरण दिया और अगले दिन अखबार में उनकी और खड्डों की रंगीन तस्वीर छ्पी खबर के साथ। 

खबर काफी बड़ी थी, ‘बस अड्डे के नज़दीक हार्डवेयर के प्रसिद्ध शो रूम के सामने वाली सड़क पर बना विशाल गड्ढा लोगों के लिए मुसीबत बना। गड्ढे को दरुस्त करने के लिए संबंधित विभाग कोई माकूल कदम नहीं उठा रहा। वाहन चालकों विशेषकर दोपहिया वाहन चालकों एवं पैदल चलने वालों को परेशानी हो रही है। नगरपालिका अध्यक्ष कहती हैं, ‘हमारे संज्ञान में अभी तक नहीं आया है’, विपक्षी पार्टी के पार्षद कहते हैं कई गड्ढे इतने बड़े चौड़े गहरे व खतरनाक है कि यहाँ कभी भी कोई वाहन चालक या पैदल गिर कर चोटिल हो सकता है। बरसात के मौसम में इन गड्ढों में पानी भर जाता है और कोई भी अपने कपड़ों को गंदा किए सुरक्षित नहीं गुज़र सकता। वर्तमान नगरपालिका नालायक है इसलिए उनके बस में कुछ नहीं है अगले चुनाव में जब हमारी नगरपालिका बनेगी तब हम बढ़िया ढंग से ठीक करवा देंगे। 
 
इधर दुकानदार अखबार पढ़ते हुए अपनी पत्नी को अपनी फोटो बारे बता रहा था सामने गड्ढे अपनी किस्मत पर इतरा रहे थे कि आज उनकी रंगीन फोटो अखबारों में छपी है। उनमें से निकली बजरी, रेत और सीमेंट भी बहुत खुश थे कि उनकी फोटो भी छपी।

- संतोष उत्सुक

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