उत्तर प्रदेश सरकार ने सरकारी खजाने का पैसा बचाने के इरादे से अपने विभिन्न विभागों और एजेंसियों को विशेष निजी अधिवक्ताओं को इलाहाबाद उच्च न्यायालय और उसकी लखनऊ खंडपीठ में उनके मामले लड़ने के लिए नियुक्त करने पर रोक लगा दी है। शासन के न्याय विभाग के विशेष सचिव इंद्रजीत सिंह ने शुक्रवार को इस संबंध में आदेश जारी किया। आदेश में कहा गया है कि उच्च न्यायालय में पहले से नियुक्त सरकारी अधिवक्ता मामलों को संभालने के लिए पर्याप्त रूप से सक्षम हैं।
आदेश के मुताबिक विशेष निजी अधिवक्ताओं की नियुक्ति से न केवल सरकार के खजाने पर भारी वित्तीय बोझ पड़ता है, बल्कि पहले से तैनात सरकारी अधिवक्ताओं का मनोबल भी गिरता है और उनकी छवि धूमिल होती है। शासनादेश में कहा गया है कि अब से केवल अपरिहार्य परिस्थितियों में विभागों और अन्य एजेंसियों द्वारा विशेष निजी अधिवक्ता को नियुक्त किया जाएगा और वह भी महाधिवक्ता की संस्तुति के बाद।
महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्रा ने सरकार को पत्र लिखकर कहा था कि बिना किसी खास कारण के सक्षम सरकारी अधिवक्ताओं के होते हुए भी राज्य सरकार और इसकी एजेंसियां सामान्य मुकदमों में भी बिना किसी खास कारण को इंगित किये विषेश अधिवक्ताओं की नियुक्ति कर दे रही हैं। उन्होंने कहा कि इससे सरकारी खजाने पर फिजूल का भार पड़ रहा है। महाधिवक्ता ने कहा कि विषेश अधिवक्ताओं का पारिश्रमिक करीब पांच लाख रुपये प्रति पेशी के हिसाब से तय किया जा रहा है। यानी कि यदि मुकदमा महीने में तीन बार लग गया, तो विषेश अधिवक्ता को 15 लाख रुपये फीस देनी पड़ती है।
Government bans appointment of private advocate for appearing in departmental matters
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