गुजरात में इस बार कौन-से वे बड़े मुद्दे हैं जो किसी भी राजनीतिक पार्टी के भाग्य का निर्धारण करेंगे
गुजरात विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान हो चुका है। हर राजनीतिक दल जनता के बीच नये-नये वादे लेकर पहुँच रहा है। लेकिन जनता के कई ऐसे मुद्दे हैं जिनका निराकरण अब तक नहीं हुआ है। जनता इस इंतजार में है कि क्या उसके मन की बात को भी कोई पार्टी अपने चुनावी घोषणापत्र में जगह देगी। इसके अलावा जनता को इस बात का भी इंतजार है कि इस बार कौन-सी पार्टी किस चेहरे को आगे रखकर चुनाव लड़ेगी। मसलन मुख्यमंत्री उम्मीदवार कौन-कौन होंगे? आम आदमी पार्टी ने तो अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिया है लेकिन भाजपा क्या भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर चुनाव लड़ेगी या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर ही चुनाव लड़ेगी, यह अभी पूरी तरह साफ नहीं है। इसके अलावा क्या कांग्रेस अपनी रणनीति में बदलाव कर किसी नेता को आगे कर चुनाव लड़ती है यह भी देखने वाली बात होगी।
बहरहाल, आइये जरा नजर डालते हैं 10 उन प्रमुख मुद्दों पर जो गुजरात में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दबदबे से लेकर महंगाई और बेरोजगारी पर उभरे असंतोष तक राज्य के विधानसभा चुनाव में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं-
1. नरेंद्र मोदी: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पास प्रधानमंत्री के रूप में एक तुरूप का पत्ता है। वह 2001 से 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे हैं। वह आठ साल पहले यह पद छोड़ चुके हैं, लेकिन उनके गृह राज्य में समर्थकों के बीच उनका जादू अब भी कायम है और अनेक राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आगामी चुनाव परिणाम में प्रधानमंत्री की भूमिका अहम होगी।
2. बिल्कीस बानो मामले के दोषियों को सजा पूरी होने से पहले माफी: गुजरात को संघ परिवार के हिंदुत्व की प्रयोगशाला माना जाता है। बिल्कीस बानो सामूहिक दुष्कर्म और हत्याकांड में दोषी ठहराये गये लोगों की सजा कम करने का असर बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदायों के लिए अलग-अलग रहेगा। मुसलमान बिल्कीस बानो के लिए न्याय की मांग कर रहे हैं, वहीं हिंदू इस मुद्दे पर ध्यान नहीं देना चाहेंगे।
3. सत्ता-विरोधी लहर: भाजपा 1998 से 24 साल से गुजरात की सत्ता में है और राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार समाज के कुछ वर्गों में उसे लेकर असंतोष उपजा है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि लोग मानते हैं कि महंगाई, बेरोजगारी और अन्य बुनियादी मुद्दों का भाजपा के इतने साल के शासन के बाद भी कोई हल नहीं निकला है।
4. मोरबी पुल हादसा: मोरबी में 30 अक्टूबर को पुल गिरने से 135 लोगों की जान चली गयी। इस घटना से प्रशासन और अमीर लोगों के बीच सांठगांठ सामने आई है। मतदान के लिए जाते समय लोगों के दिमाग में यह मुद्दा रह सकता है।
5. प्रश्नपत्र लीक और सरकारी भर्ती परीक्षाओं का स्थगित होना: बार-बार प्रश्नपत्र लीक होने की घटनाएं और सरकारी भर्ती परीक्षाओं के स्थगित किये जाने से सरकारी नौकरी पाने की आस में मेहनत कर रहे युवाओं की उम्मीदों पर पानी फिरा है और असंतोष बढ़ा है।
6. राज्य के दूरदराज के क्षेत्रों में बुनियादी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी: अगर ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों में कक्षाएं बनाई जाती हैं तो शिक्षक नहीं होते। अगर शिक्षकों की भर्ती की जाती है तो पढ़ाई के लिए कक्षाएं नहीं होतीं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और चिकित्सकों की कमी भी ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को प्रतिकूल तरीके से प्रभावित करती है।
7. किसानों का मुद्दा: राज्य के अनेक हिस्सों में किसान आंदोलन कर रहे हैं क्योंकि उन्हें पिछले दो साल में अत्यधिक बारिश के कारण फसलों के नुकसान के ऐवज में मुआवजा नहीं दिया गया है।
8. खराब सड़कें: गुजरात को पहले इसकी बेहतर सड़कों के लिए जाना जाता था। हालांकि पिछले पांच-छह साल में राज्य सरकार और नगर निगमों ने नयी सड़कों का निर्माण नहीं किया है और वे पुरानी सड़कों का रखरखाव नहीं कर सके हैं। पूरे राज्य से सड़कों पर गड्ढों की शिकायतें आना आम बात है।
9. बिजली के अधिक बिल: गुजरात देश में बिजली की सर्वाधिक दरों वाले राज्यों में शामिल है। लोग आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के 300 यूनिट बिजली प्रति महीने मुफ्त देने के वादों की ओर देख रहे हैं। सदर्न गुजरात चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने हाल में वाणिज्यिक विद्युत दरों को कम करने की मांग की थी।
10. भूमि अधिग्रहण: अनेक सरकारी परियोजनाओं के लिए जिन किसानों और भूस्वामियों की जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है, उनमें असंतोष है। किसानों ने अहमदाबाद और मुंबई के बीच हाईस्पीड बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण का विरोध किया था। उन्होंने वड़ोदरा और मुंबई के बीच एक्सप्रेसवे परियोजना के लिहाज से भूमि अधिग्रहण का भी विरोध किया।
- गौतम मोरारका
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