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गुजरात विधानसभा चुनाव: भूकंप के 21 साल बाद भुज में विकास के भरोसे भाजपा का प्रचार

गुजरात विधानसभा चुनाव: भूकंप के 21 साल बाद भुज में विकास के भरोसे भाजपा का प्रचार

गुजरात विधानसभा चुनाव: भूकंप के 21 साल बाद भुज में विकास के भरोसे भाजपा का प्रचार

गुजरात के भुज में विनाशकारी भूकंप आने के दो दशक बाद कच्छ जिले में बेशक अभूतपूर्व औद्योगिक विकास हुआ है लेकिन पर्यावरणविद और शहर के पुराने निवासियों के मन में यह सवाल जरूर रहता है कि क्या भुज ने कोई सबक सीखा और क्या वह अब ऐसी प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए तैयार है। जनवरी 2001 में भुज शहर और कच्छ जिले में विनाशकारी भूकंप आया था जिसमें 20,000 से अधिक लोगों की मौत हो गयी थी, हजारों घर ध्वस्त हो गए और लाखों लोग बेघर हो गए थे। भूकंप के बाद गुजरात सरकार ने एक बड़ी पुनर्निर्माण एवं पुनर्वास नीति की घोषणा की जिसके तहत जिले में पिछले दो दशकों में अभूतपूर्व औद्योगिक विकास हुआ है।

वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों को लगता है कि कच्छ के भूकंप के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्र होने के नाते प्रशासन को औद्योगीकरण और नगर योजना जैसी विकास गतिविधियों को अंजाम देते वक्त अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए। चुनाव के करीब आते ही भूकंप के पीड़ित और वैज्ञानिक राजनीतिक दलों से देर होने से पहले खतरे को भांपने पर ध्यान देने का अनुरोध करते हैं।

भुज विधानसभा सीट पर पहले चरण के तहत एक दिसंबर को मतदान होगा। केएसकेवी कच्छ विश्वविद्यालय में पृथ्वी एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रमुख प्रोफेसर एम जी ठक्कर ने कहा कि कच्छ में कई ‘एक्टिव फॉल्ट लाइंस’ (भूकंप के लिहाज से बेहद संवेदनशील क्षेत्र) हैं। ठक्कर ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘कई शोधपत्र हैं जिनमें हमने इन फॉल्ट लाइंस का जिक्र किया है। 2010 के बाद विज्ञान मंत्रालय ने हमें उन फॉल्ट लाइंस का मानचित्रण करने के लिए विभिन्न परियोजनाएं आवंटित कीं। लेकिन मुद्दा यह है कि हम नगर योजना के दौरान इन वैज्ञानिक निष्कर्षों पर विचार नहीं कर रहे हैं।’’ उन्होंने पूछा कि क्या दो दशक बाद भी यह जिला भविष्य में 2001 के भुज भूकंप जितने विनाश को झेलने के लिए अच्छी तरह से तैयार है।

भुज भूकंप के पीड़ित ठक्कर ने कहा, ‘‘क्या हम ऐसी प्राकृतिक आपदा का सामना करने के लिए तैयार हैं? जवाब है नहीं। दो दशक बाद भी हम तैयार नहीं हैं। अगर दोबारा इतनी तीव्रता का कुछ होता है तो आपदा प्रबंधन अब भी इतना मजबूत नहीं है। हमें जनता को किसी भी परिस्थिति के लिए तैयार रखना होगा।’’ उन्होंने कहा कि इलाके में भूकंपीय ‘फॉल्ट लाइंस’ के संबंध में विस्तृत शोध कार्य पर विचार-विमर्श करने के बाद ही विकास परियोजनाओं को मंजूरी दी जानी चाहिए। कच्छ के जिलाधिकारी दिलीप राणा ने कहा कि पारिस्थितिकी संतुलन और इलाके के भूकंप के लिहाज से संवेदनशील होने को ध्यान में रखते हुए ही नगर योजना और औद्योगीकरण किया जा रहा है।

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भुज भूकंप के दौरान राहत कार्य करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता एडम चाकी ने कहा कि प्रशासन को किसी भूकंप के दौरान अपनी रक्षा करने के बारे में जनता को जागरूक करने के लिए अति सक्रिय होना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘ज्यादातर घरों में भूकंप किट नहीं हैं। भूकंप के बाद अभूतपूर्व विकास हुआ है लेकिन हमें भविष्य में किसी भी प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है।’’ करीब 2.80 लाख मतदाताओं वाला भुज निर्वाचन क्षेत्र जिले में सबसे अधिक अल्पसंख्यक आबादी वाले इलाकों में से एक है। यह 1960 के दशक के अंत से पारंपरिक रूप से कांग्रेस की सीट रही है लेकिन राम मंदिर आंदोलन की लहर में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 1990 में कांग्रेस से यह सीट छीन ली थी। हालांकि, 2002 में हुए दंगों के बाद भाजपा यहां से हार गयी और फिर 2007 में जीत हासिल की तथा तब से इसे भाजपा का गढ़ कहा जाता है।

भाजपा ने इस बार दो बार की मौजूदा विधायक और विधानसभा अध्यक्ष नीमाबेन आचार्य को टिकट नहीं दिया है। इसके बजाय भाजपा ने पार्टी नेता केशवलाल पटेल को उम्मीदवार बनाया है जिन्हें उनके संगठनात्मक कौशल के लिए जाना जाता है। भाजपा के सूत्रों के मुताबिक, आचार्य को हटाने को लेकर जिला इकाई में काफी असंतोष है। आचार्य का पार्टी में काफी दबदबा है। भाजपा के भुज निर्वाचन क्षेत्र के अध्यक्ष घनश्याम ठक्कर ने कहा, ‘‘हमें जीत का विश्वास है। भुज में भाजपा के शासन में पिछले 10 दशक में जिस तरह का विकास हुआ है वह अद्वितीय है। देश के पिछड़े इलाकों को भुज जितना विकास करने में कम से कम 100 साल लगेंगे।’’ वहीं, कांग्रेस इलाके में गुपचुप अभियान चला रही है और इस सीट पर कब्जा जमाने के लिए राज्य में भाजपा सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर पर सवार है। कांग्रेस ने अर्जन भूरिया को टिकट दिया है।

बहरहाल, आम आदमी पार्टी (आप) और असदुद्दीन ओवैसी की अगुवाई वाली एआईएमआईएम के मुकाबले में आने से यह चतुष्कोणीय मुकाबला हो गया है और इससे कांग्रेस की संभावनाएं कमजोर हो सकती हैं जिसने 2017 में कुल मतों में से 42 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। आप के उम्मीदवार राजेश पिंडोरा पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मुद्दों को लेकर घर-घर जाकर प्रचार कर रहे हैं। एआईएमआईएम ने शकील सामा को टिकट दिया है और पार्टी ने खुद को कांग्रेस के विकल्प के रूप में पेश कर अल्पसंख्यकों तक पहुंचने का हरसंभव प्रयास किया है।

Gujarat assembly elections 21 years after the earthquake bjp campaigns on development in bhuj

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