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Haldwani Railway Land मामले में कथित अतिक्रमणकारियों को अभी पूरी तरह राहत नहीं मिली है

Haldwani Railway Land मामले में कथित अतिक्रमणकारियों को अभी पूरी तरह राहत नहीं मिली है

Haldwani Railway Land मामले में कथित अतिक्रमणकारियों को अभी पूरी तरह राहत नहीं मिली है

उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड के हल्द्वानी में रेलवे की दावे वाली 29 एकड़ जमीन से अतिक्रमण हटाने के उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी है जिससे स्थानीय लोगों में खुशी की लहर देखी जा रही है। न्यायालय ने इसे ‘‘मानवीय मुद्दा’’ बताते हुए कहा है कि 50,000 लोगों को रातोंरात नहीं हटाया जा सकता। हम आपको बता दें कि विवादित भूमि पर बसे लोग अतिक्रमण हटाने के आदेश के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका दावा है कि उनके पास भूमि का मालिकाना हक है। जबकि रेलवे के मुताबिक, उसकी भूमि पर 4,365 परिवारों ने अतिक्रमण किया है। यह भी उल्लेखनीय है कि चार हजार से अधिक परिवारों से संबंधित लगभग 50,000 व्यक्ति विवादित भूमि पर निवास करते हैं, जिनमें से अधिकांश मुस्लिम हैं।

आज जब इस मामले की सुनवाई हुई तब न्यायमूर्ति एस.के. कौल और न्यायमूर्ति ए.एस. ओका की पीठ ने कहा कि इस विवाद का एक व्यावहारिक समाधान खोजने की जरूरत है। शीर्ष अदालत ने साथ ही रेलवे तथा उत्तराखंड सरकार से हल्द्वानी में अतिक्रमण हटाने के उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं पर जवाब भी मांगा। पीठ ने कहा, ‘‘नोटिस जारी करने के साथ ही उस आदेश पर रोक रहेगी जिसे चुनौती दी गई है।’’ 

पीठ ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि उन लोगों को अलग करने के लिए एक व्यावहारिक व्यवस्था आवश्यक है, जिनके पास भूमि पर कोई अधिकार न हो... साथ ही रेलवे की जरूरत को स्वीकार करते हुए पुनर्वास की योजना भी जरूरी है, जो पहले से ही मौजूद हो सकती है।’’ न्यायालय ने इसके साथ ही मामले की अगली सुनवाई के लिए सात फरवरी की तारीख मुकर्रर की। शीर्ष अदालत ने कहा कि प्राधिकारियों को "व्यावहारिक रास्ता" निकालना होगा। अदालत ने कहा, ‘‘भूमि की प्रकृति, भूमि के स्वामित्व, प्रदत्त अधिकारों की प्रकृति से उत्पन्न होने वाले कई कोण हैं।’’ शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हम आपसे कहना चाहते हैं कि कुछ हल निकालिये। यह एक मानवीय मुद्दा है।’’

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पीठ ने कहा कि रेलवे की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने रेलवे की जरूरतों पर जोर दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि जिस मुद्दे पर विचार किया जाना है, उसमें राज्य सरकार का रुख भी शामिल है, कि क्या पूरी जमीन रेलवे को देनी है या राज्य सरकार इसके एक हिस्से पर दावा कर रही है। शीर्ष अदालत ने कहा कि इसके अलावा, भूमि पर कब्जा करने वालों के पट्टेदार या लीज होल्ड या नीलामी में खरीद के रूप में अधिकार होने का दावा करने के मुद्दे हैं।

वहीं उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि हमारा शुरू से यह कहना रहा है कि न्यायालय का जो भी आदेश होगा उसका पालन किया जायेगा। उधर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी अदालत के फैसले का स्वागत किया है और मानवीय पहलू पर ध्यान दिये जाने को सराहा है।

हम आपको बता दें कि उच्च न्यायालय ने गत साल 20 दिसंबर को हल्द्वानी के बनभूलपुरा में कथित रूप से अतिक्रमित रेलवे भूमि पर निर्माण को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि अतिक्रमण करने वालों को एक सप्ताह का नोटिस दिया जाए, जिसके बाद उन्हें वहां से बेदखल किया जाए। इस पर विरोध जताते हुए हल्द्वानी के कुछ निवासियों ने उच्चतम न्यायालय का रुख किया था। निवासियों ने अपनी याचिका में दलील दी है कि उच्च न्यायालय ने इस तथ्य से अवगत होने के बावजूद विवादित आदेश पारित करने में गंभीर चूक की कि याचिकाकर्ताओं सहित निवासियों के मालिकाना हक को लेकर कुछ कार्यवाही जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित है।

निवासियों ने दलील दी है कि रेलवे और राज्य प्राधिकारियों द्वारा अपनाए गए ‘‘मनमाने और अवैध’’ दृष्टिकोण के साथ-साथ उच्च न्यायालय द्वारा इसे कायम रखने के परिणामस्वरूप उनके आश्रय के अधिकार का घोर उल्लंघन हुआ है। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि उनके पास वैध दस्तावेज हैं जो स्पष्ट रूप से उनके मालिकाना हक और वैध कब्जे को स्थापित करते हैं। कई निवासियों का दावा है कि 1947 में विभाजन के दौरान भारत छोड़ने वालों के घर सरकार द्वारा नीलाम किए गए और उनके द्वारा खरीदे गए।

हम आपको यह भी बता दें कि रविशंकर जोशी की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने नौ नवंबर 2016 को 10 सप्ताह के भीतर रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था। अदालत ने कहा था कि सभी अतिक्रमणकारियों को रेलवे सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्जेदारों की बेदखली) अधिनियम 1971 के तहत लाया जाए। उल्लेखनीय है कि बनभूलपुरा में रेलवे की अतिक्रमण की गई 29 एकड़ से अधिक जमीन पर धार्मिक स्थल, स्कूल, कारोबारी प्रतिष्ठान और आवास हैं।

Haldwani railway land encroachment case analysis

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