Politics

क्या भारत को आजादी दिलाने में कांग्रेस का ही रहा है योगदान?

क्या भारत को आजादी दिलाने में कांग्रेस का ही रहा है योगदान?

क्या भारत को आजादी दिलाने में कांग्रेस का ही रहा है योगदान?

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के इस बयान ने देश में बहस छेड़ दी है कि भारत को आजादी दिलाने में सिर्फ कांग्रेस का ही योगदान रहा। साथ में उन्होंने यह भी कह दिया कि भाजपा संघ अथवा किसी और का एक कुत्ता भी मरा हो तो उसका नाम बता दें। उनके इस अमर्यादित बयान ने एक बार फिर यह बात उजागर कर दी है कि कांग्रेस देश को आजादी दिलाने का श्रेय स्वयं के पास ही रख किसी भी अन्य सेनानी को इतिहास में स्थान नही देना चाहती है। आज देश को इस सत्य से अवगत कराने का वक्त आ गया है कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत कांग्रेस ने की ही नहीं। सही मायने में तो इसकी शुरुआत कांग्रेस की स्थापना से बहुत पहले हो चुकी थी। जिसमें सभी वर्गों ने यथा क्षमता भाग लिया और कुर्बानियां दीं। बाबजूद हमें पाठ्य पुस्तकों में यह पढ़ाया जाता रहा कि देश को कांग्रेस ने स्वतंत्र कराया। उन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को तो कभी प्राथमिकता दी ही नहीं गई, जिन्होंने आजादी के लिए अपने सिर कलम करवा दिए। सिद्धू मुर्मू, कानू मुर्मू और उनके संथाली भाइयों के बलिदान की चर्चा करना उचित होगा। इस परिवार के चार सदस्य अंग्रेजो द्वारा मार डाले गए। जबकि आजादी के संग्राम में 10 हजार संथाल आदिवासियों ने अपना बलिदान दिया है। 

 कांग्रेस के नेता जिस हिंदू महासभा की दिन रात आलोचना करते हैं उन्हें यह पता होना चाहिए कि एक ही व्यक्ति एक साथ हिंदू महासभा एवं कांग्रेस दोनों का सदस्य हो सकता था। यहां तक कि अध्यक्ष भी। पंडित मदन मोहन मालवीय हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे और कांग्रेस के भी। वास्तव में सबका लक्ष्य अंग्रेजों से भारत की मुक्ति था और उसमें आज की तरह तथाकथित विचारधारा का तीखा विभाजन नहीं था। वर्तमान कांग्रेस तब के कांग्रेस के उन नेताओं का नाम नहीं लेती जिनकी विचारधारा को हिंदुत्ववादी या संप्रदायिक मानती है। अंग्रेजों को प्रतिवेदन देने वाले मंच से प्रखर संघर्ष के रूप में कांग्रेस को परिणत करने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बाल गंगाधर तिलक के योगदान को कांग्रेस उस रूप में नहीं स्वीकारती जैसा था। यही बात लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल जैसे नेताओं के साथ लागू होता है। तिलक और लाला लाजपत राय दोनों उन स्वतंत्रता सेनानियों के प्रतिनिधि थे जो हिंदुत्व तथा धर्म अध्यात्म के आधार पर भारत का विचार करते थे। क्या इनका आजादी के आंदोलन में योगदान नहीं था? यह एक उदाहरण बताता है कि आजादी के आंदोलन को लेकर वर्तमान कांग्रेस की सोच संकुचित और विकृत है। एक और उदाहरण लीजिए। डॉ राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी धारा के नेता भी कांग्रेस के साथ ही स्वतंत्रता संघर्ष में सक्रिय थे। क्या कांग्रेस कभी इनकी और इनकी तरह दूसरे नेताओं के महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करती है? वास्तव में छोटे बड़े संगठनों, संगठनों से परे और कांग्रेस में भी ऐसे लाखों की संख्या में विभूतियां थीं जिन्होंने अपने-अपने स्तरों पर स्वतंत्रता की लड़ाई में योगदान दिया,  अपनी बलि चढ़ाई। आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर उन गुमनाम स्वतंत्र सेनानियों को तलाश कर सामने लाया जा रहा है। जितने सेनानियों के विवरण आ रहे हैं वे बताते हैं कि कोई एक संगठन ,कुछ नेता या कोई एक पार्टी स्वतंत्रता का श्रेय नहीं ले सकती।

इसे भी पढ़ें: कांग्रेस के लिए कई मायनों में बेहद उतार-चढ़ाव वाला साल रहा 2022

सबसे अधिक हैरानी इस बात पर होती है कि कांग्रेस वीर सावरकर को कायर बताकर उनका चारित्रिक हनन करती रहती है। जबकि यह स्थापित सत्य है कि वीर सावरकर एकमात्र ऐसे योद्धा थे जिन्हें अंग्रेजों द्वारा दो आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। उन्हें प्रताड़ित करने के लिए तेल निकालने वाले कोल्हू में बैल के स्थान पर जोता गया। उल्लेखनीय है कि वीर सावरकर के शेष तीनों भाई भी क्रांतिकारी रहे। सब से बड़ी बात तो यह है कि इनके देश प्रेम को आदर्श मानकर ही मदनलाल ढींगरा विदेश गए और शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की हत्या का बदला अंग्रेजों से लिया। देश के अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने सावरकर बंधुओं से देश के लिए मरना सीखा। कांग्रेस और उसके नेता अक्सर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा से यह सवाल भी करते रहते हैं कि उनके किस नेता ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। इस बाबत यह उल्लेख करना उचित रहेगा कि डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार जो कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक हैं, उन्हें एक से अधिक बार जेल हुई। एक बार तो जब वे रिहा होकर नागपुर लौटे तो उनके स्वागत में ढेर सारे कांग्रेसी भी मौजूद हुए। जिनमें मोतीलाल नेहरु प्रमुख रहे। उन्होंने बेहद प्रसन्नता के साथ कहा था कि स्वतंत्रता संग्राम में श्री हेडगेवार की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो चली है। इसके अलावा भी नमक आंदोलन में संघ के आदि सरसंघचालक श्री हेडगेवार का विशेष योगदान रहा। उनके नेतृत्व में हजारों स्वयंसेवक उक्त आंदोलन को मूर्त रुप देने में लगे रहे। संघ की स्थापना तो वर्ष 1925 में की गई। जबकि श्री हेडगेवार इससे पहले भी हजारों स्वयंसेवकों के साथ मिलकर स्वतंत्रता संग्राम में विभिन्न दायित्वों का स्व स्फूर्त होकर निर्वहन करते रहे। वर्ष 1921 में जब असहयोग आंदोलन शुरु हुआ और सत्याग्रह की पहली शुरुआत हुई, तब भी डॉक्टर हेडगेवार उसमें बढ़ चढ़कर शामिल हुए। फलस्वरुप वे अंग्रेजों की आंख में खटकते रहे। जिसके चलते उन्हें गिरफ्तार किया गया और एक साल के कारावास की सजा सुनाई गई। यह सजा 1921 के अगस्त माह से शुरु होकर वर्ष 1922 के जुलाई माह तक जारी रही। बंगाल में अनुसीलन समिति और युगांतर नाम के क्रांतिकारियों के दल काफी सक्रिय थे। इनमें भी रास बिहारी बोस, सचिन नाथ सान्याल, बालेंदु कुमार घोष, महर्षि अरविंद के साथ डॉक्टर हेडगेवार की सक्रियता प्रमुखता से दर्ज है। 1930 में जब सविनय अवज्ञा आंदोलन और नमक सत्याग्रह उफान पर थे, तब भी डॉक्टर हेडगेवार अग्रणी नेता बने रहे। फलस्वरुप उन्हें अंग्रेजों ने गिरफ्तार किया और 9 महीने की सजा सुना दी। आजादी की लडाई में जंगल सत्याग्रह का उल्लेख प्रमुखता से दर्ज है। इसमें संघ के स्वयंसेवकों की भूमिका प्रमुख रही। यह तत्कालीन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने भी माना था। 1942 का स्वतंत्रता संग्राम भी अध्ययन करने योग्य है। सत्ता के दबाव में इतिहासकारों ने यह सच छुपाया कि तब सक्रिय आंदोलनकारियों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका सर्वाधिक सक्रिय दर्ज की गई गई। उस दौरान अधिकतर स्वयंसेवकों ने लाठियां और गोलियां खाईं। जहां तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गठन की बात है तो डॉक्टर हेडगेवार को यह बात कांग्रेस में रहकर ही समझ आई कि जब तक आंदोलन जातियों और वर्गों में बंटा रहेगा, तब तक देश में फूट डालो राज करो कि नीति सफल होती रहेगी। अतः 1925 में संघ की स्थापना हुई और डॉक्टर हेडगेवार ने अपनी पूरी ताकत समाज को एकजुट करने में लगा दी। तो क्या कांग्रेस यह कहना चाहती है कि जो लोग दूसरे दलों के माध्यम से देश की सेवा करते रहे, वे सब देश भक्त थे ही नहीं? बहस तो इसी बात की है कि जिन लोगों ने कॉन्ग्रेस की भेदभाव पूर्ण नीतियों से अलग होकर अलख जगाई, ऐसे सुभाष चंद्र बोस, सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, लाल बहादुर शास्त्री, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय औऱ अन्य गुमनाम नायकों  से देश रु ब रु क्यों न हो?

- डॉ राघवेंद्र शर्मा
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

Has the congress contributed to india independence

Join Our Newsletter

Lorem ipsum dolor sit amet, consetetur sadipscing elitr, sed diam nonumy eirmod tempor invidunt ut labore et dolore magna aliquyam erat, sed diam voluptua. At vero