जिन तालिबानियों को पाकिस्तान ने धन और गन देकर पाला, आज वही उसका जीना मुहाल किये हैं
तालिबान को अफगानिस्तान की बागडोर संभाले हुए एक साल से ज्यादा हो गया है। लेकिन अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच सीमा पर तनाव अभी तक सुलझा नहीं है। एक तरफ अफगानिस्तान तालिबान ने पाकिस्तान की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं तो दूसरी ओर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने भी पाकिस्तानियों का जीना हराम कर दिया है। हम आपको याद दिला दें कि साल 2022 में अफगान-पाक सीमा पर शत्रुता इतनी बढ़ गयी थी कि पाकिस्तान का जीना उन्हीं तालिबानियों ने मुहाल कर दिया जिन्हें धन और गन देकर पाकिस्तान ने पाला था। इस विवाद का बड़ा कारण डूरंड रेखा को माना गया। अफगान तालिबान सीमा पर यथास्थिति में किसी भी 'एकतरफा' बदलाव को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। उधर पाकिस्तान भी पीछे हटने को तैयार नहीं है।
जहां तक डूरंड रेखा की बात है तो आपको बता दें कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच 2670 किलोमीटर लंबी यह सीमा रेखा 1893 में एक समझौते के माध्यम से स्वीकार की गयी थी। डूरंड रेखा पश्तून जनजातीय क्षेत्र से होकर दक्षिण में बलूचिस्तान के बीच से होकर गुजरती है। इस प्रकार डूरंड रेखा पश्तूनों और बलूचों को दो भागों में बांटती है। दुनिया में सबसे खतरनाक सीमा रेखा माने जाने वाली डूरंड रेखा को अफगानिस्तान नामंजूर करता रहा है। हम आपको यह भी बता दें कि इसका डूरंड रेखा नाम इसलिए पड़ा क्योंकि इसे सर मार्टिमेर डूरंड के नाम पर रखा गया। उल्लेखनीय है कि सर मार्टिमेर डूरंड ने ही अफगानिस्तान के तत्कालीन अमीर अब्दुर रहमान खाँ को इसे सीमा रेखा मानने पर राजी किया था।
दूसरी ओर, हाल की हिंसा की घटनाओं के बाद अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच तनाव अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गया है। पश्तून जो लंबे समय से पाकिस्तान के एकतरफा दबाव का शिकार रहे हैं, वे 2022 के दौरान भी सर्वाधिक प्रभावित रहे और तालिबानियों और पाकिस्तानियों की भिड़ंत में पश्तून ही सर्वाधिक मारे गये। अत्याचार सह-सहकर पश्तूनों का धैर्य भी जवाब देने लगा है। एक तो पाकिस्तान में हो रहे अत्याचार दूसरा अफगान तालिबान की ओर से गोलीबारी। पश्तूनों को दोनों तरफ से मौत दिख रही है इसलिए अब वह सड़कों पर उतर रहे हैं। अफगानिस्तान की सीमा से लगते पश्चिमोत्तर पाकिस्तान के कबाइली इलाकों में आतंकवाद और अपहरण की बढ़ती घटनाओं से भी लोग बेहद परेशान हैं। इस सप्ताह इन इलाकों में हजारों लोग सड़कों पर उतरे और पाकिस्तान सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए क्षेत्र में तत्काल शांति बहाली की मांग की।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, दक्षिणी वजीरिस्तान कबाइली जिले के मुख्यालय वाना में 5,000 से अधिक कबाइलियों ने अपने यहां अशांति, आतंकवाद और अपहरण की बढ़ती घटनाओं के विरोध में रैली निकाली। यह प्रदर्शन विशेष रूप से खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान प्रांतों में बढ़ते आतंकी हमलों के बीच हुआ है। आतंकी हमलों को अफगानिस्तान आधारित प्रतिबंधित तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) समूह द्वारा अंजाम दिया जाता रहा है। पश्तून राष्ट्रवादी और पश्तून तहफुज मूवमेंट (पीटीएम) के नेता मंजूर पुश्तीन ने प्रदर्शनकारियों को संबोधित किया जिनके हाथों में तख्तियां और बैनर थे। प्रदर्शनकारियों ने कबाइली जिलों में शांति और सद्भाव बहाल करने की मांग की। इस कबाइली जिले में हिंसा की घटनाएं बढ़ने के विरोध में वाना बाजार की सभी दुकानें और बाजार बंद रहे। पुश्तीन ने कहा कि यदि कानून व्यवस्था नहीं सुधरी तो कबाइली युवा भी आतंकवादियों की तरह हथियार उठा सकते हैं।
उधर, प्रतिबंधित संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के प्रमुख ने कहा है कि उनका संगठन पाकिस्तान सरकार के साथ संघर्ष विराम समझौते के लिए ‘‘अब भी तैयार’’ है। हम आपको याद दिला दें कि पिछले साल नवंबर में टीटीपी ने जून 2022 में सरकार के साथ हुए अनिश्चितकालीन संघर्ष विराम समझौते को रद्द कर दिया था और अपने आतंकवादियों को सुरक्षाबलों पर हमले करने का हुक्म दिया था। ऐसा माना जाता है कि टीटीपी के अल-कायदा से करीबी संबंध हैं। उसने धमकी दी थी कि अगर सत्तारुढ़ गठबंधन आतंकवादियों के खिलाफ कड़े कदम उठाना जारी रखता है, तो प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की पीएमएल-एन और विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो-जरदारी की पीपीपी के शीर्ष नेताओं को निशाना बनाया जाएगा।
‘डॉन’ अखबार ने एक वीडियो में टीटीपी प्रमुख मुफ्ती नूर वली महसूद के हवाले से कहा, ‘‘हमने अफगानिस्तान की मध्यस्थता में पाकिस्तान के साथ वार्ता की थी। हम संघर्ष विराम समझौते के लिए अब भी तैयार हैं।’’ महसूद के रुख में बदलाव उन खबरों के बीच आया है कि उसने पाकिस्तान में धार्मिक विद्वानों से सलाह ली है। वीडियो संदेश में महसूद ने कहा कि अगर पाकिस्तान के धार्मिक विद्वानों को लगता है कि ‘‘हमारी जिहाद की दिशा गलत है’’ तो उनका संगठन इन विद्वानों द्वारा ‘‘मार्गदर्शन किए जाने के लिए तैयार’’ है। टीटीपी प्रमुख ने कहा, ‘‘अगर आपको हमारे द्वारा छेड़े गए जिहाद में कोई समस्या नजर आती है, अगर आपको लगता है कि हमने अपनी दिशा बदल दी है, हम भटक गए हैं, तो आपसे हमारा मार्गदर्शन करने का अनुरोध किया जाता है। हम खुशी-खुशी अपनी दलीलें सुनने के लिए हमेशा तैयार हैं।’’ उल्लेखनीय है कि महसूद की ये टिप्पणियां पाकिस्तान में बढ़ती हिंसा के बीच आयी हैं।
बहरहाल, पाकिस्तान सरकार ने टीटीपी के बदले रुख के बावजूद अपना कड़ा रुख बरकरार रखा है क्योंकि उसे लगता है कि तालिबानी उसके साथ कोई बड़ा खेल खेल रहे हैं। देखना होगा कि आने वाले दिनों में टीटीपी कौन-सा रास्ता अख्तियार करता है और क्या अफगान-पाक सीमा पर हालात शांतिपूर्ण हो पाते हैं? वैसे तालिबान ने पिछले साल के अंत में 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान की पाकिस्तान सेना के आत्मसमर्पण वाली चर्चित तस्वीर ट्वीट करके पाकिस्तान को संदेश दे ही दिया था कि यदि उसने हिमाकत की तो 1971 को अफगानिस्तान भी दोहरायेगा।
- गौतम मोरारका
Hostilities skyrocketed on afghanistan pakistan border