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‘ज्ञान तक पहुंच संबंधी उपनिवेशवाद’ से कैसे निपट रहा अफ्रीका

‘ज्ञान तक पहुंच संबंधी उपनिवेशवाद’ से कैसे निपट रहा अफ्रीका

‘ज्ञान तक पहुंच संबंधी उपनिवेशवाद’ से कैसे निपट रहा अफ्रीका

विज्ञान पर आधारित ज्ञान को अधिक निष्पक्ष रूप से साझा करने के प्रयासों का अफ्रीका में विपरीत प्रभाव पड़ा है, लेकिन एक नई पहल असल समानता ला रही है। मैरी अबुकुत्सा-ओंयागो अपने क्षेत्र में अग्रणी हैं। वह ‘जोमो केन्याटा यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी’ में बागवानी विषय की प्रोफेसर हैं और देशी अफ्रीकी फसलों के क्षेत्र में उन्हें विशेषज्ञता प्राप्त है, लेकिन जब उन्होंने अफ्रीका में गरीबी, कुपोषण और खाद्य असुरक्षा को दूर करने में अफ्रीकी देशी सब्जियों की भूमिका को लेकर अपने हालिया अनुसंधान के निष्कर्षों का वर्णन करते हुए पत्र प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक पत्रिकाओं को भेजे, तो उन्हें अस्वीकार कर दिया गया।

ओंयागो ने कहा, ‘‘इसका कारण यह नहीं था कि अनुसंधान अच्छा नहीं था, बल्कि उनका मानना था कि मैं जिन फसलों के बारे में लिख रही हूं, वे खरपतवार हैं।’’ इसके बाद उन्होंने एक अफ्रीकी पत्रिका को अपने दस्तावेज भेजे जिसने उनके निष्कर्ष को स्थान दिया। उनके अनुसंधान को बड़ी संख्या में लोगों ने पढ़ा और इसने स्कूलों के लिए पोषण योजनाओं के विकास में केन्या सरकार की योजनाओं को प्रभावित किया। अन्य पूर्वी अफ्रीकी सरकारों ने भी इन योजनाओं को अपनाया है। यह इस बात का केवल एक उदाहरण है कि स्थापित विज्ञान प्रकाशक अफ्रीकी अनुसंधान को पर्याप्त स्थान नहीं दे रहे हैं।

विकसित अर्थव्यस्थाओं के लोग यह तय करते हैं कि अच्छा वैज्ञानिक अनुसंधान क्या है, जबकि उन्हें विभिन्न परिस्थितियों का ज्ञान नहीं है। इसका अर्थ है कि अफ्रीकी और दुनिया के अन्य देशों के लोगों का जीवन सुधार सकने वाले वैज्ञानिक अनुसंधानों को साझा नहीं किया जा रहा, उन्हें समझा नहीं जा रहा और उन पर आगे अनुसंधान नहीं किया जा रहा। दुनिया अब सवाल उठाने लगी है कि ज्ञान तक पहुंच को कॉरपोरेट प्रकाशकों का एक छोटा समूह ही क्यों नियंत्रित कर रहा है और ऐसे में अफ्रीकी वैज्ञानिक अनुसंधान के निष्कर्षों को साझा करने के लिए अपने मंच विकसित कर रहे हैं। इसमें दुनिया के अन्य क्षेत्र भी दिलचस्पी दिखा रहे हैं।

इसके अलावा कॉरपोरेट प्रकाशक वैज्ञानिक अनुसंधान पत्रों तक नि:शुल्क पहुंच मुहैया कराने के लिए वैज्ञानिकों से बड़ी अग्रिम राशि लेते है। वित्तीय बाधाओं जैसी अन्य बाधाओं का अर्थ यह भी है कि ‘ग्लोबल साउथ’ के वैज्ञानिकों के अनुसंधान प्रमुख पत्रिकाओं में अक्सर प्रकाशित नहीं होते। अफ्रीकी अनुसंधान के लिए ज्ञान के प्रसार के माध्यमों की आवश्यकता होती है और इसके लिए प्रकाशन परिदृश्य अधिक समावेशी होना चाहिए।

इसमें हर प्रकार के हस्तक्षेप को समानता के सिद्धांतों द्वारा रेखांकित किया जाना चाहिए। सरकारों और अनुदान देने वालों के अच्छे इरादों, प्रकाशकों के व्यापारिक मॉडल और प्रकाशन पारिस्थितिकी तंत्र में अंतर्निहित पूर्वाग्रहों ने एक अफ्रीकी प्रकाशन मंच विकसित करने को बढ़ावा दिया। इस मंच का उद्देश्य अफ्रीकी विशेषज्ञों के ज्ञान को और अधिक सुलभ बनाना है। अनुसंधान पत्रों को प्रकाशित करने के लिए लेखक को कोई शुल्क नहीं देना पड़ता और पढ़ने के लिए पाठक को भी कोई भुगतान नहीं करना पड़ता।

How africa is tackling colonialism of access to knowledge

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