Politics

संविधान की शपथ लेने वाले केजरीवाल को यह कैसे नहीं मालूम कि देश संविधान से चलता है धर्म से नहीं

संविधान की शपथ लेने वाले केजरीवाल को यह कैसे नहीं मालूम कि देश संविधान से चलता है धर्म से नहीं

संविधान की शपथ लेने वाले केजरीवाल को यह कैसे नहीं मालूम कि देश संविधान से चलता है धर्म से नहीं

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बुधवार को एक प्रेस वार्ता में एक अजीबोगरीब बयान देते हुए भारतीय रुपये पर भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की फोटो लगाने की मांग की। गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश चुनाव से ठीक पहले केजरीवाल ने हिंदुत्व कार्ड खेलते हुए तर्क दिया कि नोट पर एक तरफ गांधीजी और दूसरी तरफ लक्ष्मी-गणेश की फोटो होगी तो इससे पूरे देश को उनका आशीर्वाद मिलने के साथ आर्थिक संकट से मुक्ति मिलेगी। निश्चित ही लक्ष्मीजी को समृद्धि की देवी माना गया है तो वहीं गणेशजी सभी विघ्न को दूर करते हैं। लेकिन प्रश्न है कि धर्मनिरपेक्ष भारत में ऐसे सवाल खड़े होना देश के लिए क्या अच्छी बात हैं? क्या अपनी राजनीति को चमकाने के लिये एकाएक ऐसे बयान से बहुसंख्यक समाज को आकर्षित करना औचित्यपूर्ण है? क्या इस तरह की मूल्यहीन एवं स्वार्थप्रेरित राजनीति लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अवरोध एवं सौहार्द-भंग का कारण नहीं बनती? देश संविधान से चलता हैं किसी धर्म से नहीं? अब ऐसे कई सवाल उठने लगे हैं, विवाद खड़े हो रहे हैं एवं देश की एकता एवं सांझा-संस्कृति की अक्षुण्णता को लेकर राजनीतिक चर्चाएं गरमा रही हैं। आर्थिक विकास हर व्यक्ति की अभीप्सा है, लेकिन क्या नोटों पर देवी-देवता की तस्वीर छाप देने मात्र से यह संभव है?

भारत एक लोकतांत्रिक एवं धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, जहां विभिन्न जाति, धर्म, वर्ग, भाषा, मान्यता के लोग मिल-जुलकर रहते आये हैं। यही विविधता में एकता भारत की ताकत भी है और सौन्दर्य भी है। किसी भी राष्ट्र को उन्नत और समृद्धि की ओर अग्रसर करने में सक्रिय, साफ-सुथरी, स्वार्थरहित एवं मूल्यों पर आधारित राजनीति की सर्वाधिक आवश्यकता रहती है। वही शासन-व्यवस्था या राजनीति अच्छी है जो किसी एक धर्म के प्रति विशेष झुकाव नहीं रखती। मुद्रा पर महात्मा गांधी के फोटो का औचित्य समझा जा सकता है, जब सवाल उठाया गया कि गांधीजी ही क्यों? देश में और भी कई ऐसे नाम थे जो देश को आजाद कराने में आगे खड़े रहे। इस संबंध में आरबीआई ने बताया कि गांधीजी का इसलिए चयन किया गया क्योंकि कोई वर्ग उनका विरोध नहीं कर सकता था। इसके अलावा देश को अंग्रेजों से आजाद कराने में उनकी अहम भूमिका रही। लेकिन अगर वहां देवताओं की तस्वीरें लगेंगी, तो एक नया विवाद एवं बिखराव का सिलसिला शुरू होगा। अन्य धर्मों की ओर से भी ऐसी ही मांग उठेगी और शायद मुद्रा का धार्मिकीकरण हो जाएगा। फिर आप मुद्रा पर किन-किन धर्म-प्रमुखों की तस्वीरें लगाते रहेंगे? 

किसी एक धर्म-विशेष के देवी-देवताओं की तस्वीर मुद्रा पर देने से अन्य मजहब के लोगों के द्वारा आपत्ति किया जाना स्वाभाविक है। लेकिन इसकी गंभीरता को समझे बिना राजनीतिक स्वार्थ से प्रेरित केजरीवाल का कहना है कि अगर इंडोनेशिया में नोट के ऊपर गणेशजी की फोटो लगाई जा सकती है तो भारत में क्यों नहीं लगाई जा सकती? आरोप लगाने वाले तो 100 आरोप लगाएंगे उन्हें आरोप लगाने दीजिए, इस तरह एक स्थापित राजनेता का देश की जनता को बांटने वाला बयान हास्यास्पद होने के साथ चिन्ताजनक है। प्रश्न है कि मुस्लिम वोटरों को आकर्षित करने वाले केजरीवाल एकाएक हिन्दू वोटरों को क्यों रुझाने लगे? राजनीति एक विचारधारा एवं सिद्धान्त पर चलनी चाहिए। मुद्रा पर किसी देव या देवी की मूर्ति होने से देश की अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा और देश में माहौल दैवीय हो जाएगा, अच्छी सोच है, लेकिन ऐसी सोच रखने वाले कौन लोग हैं, उसका क्या स्वार्थ है, यह विशेष महत्व रखता है।

हमारे लोकतंत्र में स्वार्थप्रेरित इस तरह के सुझावों के लिये न जगह है और न समय। देश के संविधान की यही भावना है कि कोई भी राजनीतिक दल वोट के लिए धर्म या उसके प्रतीकों का इस्तेमाल न करे। जहां तक प्रश्न इंडोनेशिया का है, यह सत्य तथ्य है कि वहां की करेंसी नोट पर किसी समय भगवान गणेश की तस्वीर हुआ करती थी। इंडोनेशिया दुनिया का एकमात्र देश है, जहां की 87.5 प्रतिशत आबादी मुस्लिम और 1.7 प्रतिशत आबादी हिंदू है। फिर एक दौर में आर्थिक संकटों से उबरने के लिये यहां 20,000 रुपये के नोट पर भगवान गणेश की तस्वीर छपती थी। दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देश ने यह प्रयोग करते हुए आर्थिक संकटों से निजात भी पाई। लेकिन गौर करने वाली बात यह भी है कि इंडोनेशिया में हिंदू देवताओं और प्रतीकों का उपयोग आम बात है क्योंकि शुरुआती शताब्दियों में, इंडोनेशिया हिंदू धर्म से काफी प्रभावित था। जिसे इस देश में स्थित विभिन्न मंदिरों, मूर्तियों में देखा जा सकता है। लेकिन इंडोनेशिया एवं भारत की राजनीतिक, संवैधानिक एवं लोकतांत्रिक स्थितियों में काफी भिन्नता है। ध्यान रहे कि आधिकारिक तौर पर वहां छह धर्मों को मान्यता मिली हुई है, जबकि भारत में किसी धर्म को आधिकारिक मान्यता नहीं है। विवाद से बचने के लिए ही संविधान निर्माताओं ने न तो ईसाई परंपरा का ग्रेगोरियन कैलेंडर अपनाया और न सनातन परंपरा का विक्रम संवत। हमने शक संवत को आधिकारिक मान्यता दी।

इसे भी पढ़ें: गौतम गंभीर ने केजरीवाल से पूछा- पिछले 7 वर्षों में कितनी बार गाजीपुर लैंडफिल साइट का दौरा किया?

हां, इंडोनेशिया का हमें अध्ययन करना चाहिए, क्योंकि वहां की राजनीति या नीतियां कट्टरता को पोषित नहीं करती हैं। भारत में विभिन्न धर्मों में लोगों की सोच परस्पर उस तरह मेल नहीं खाती, जिस तरह इंडोनेशिया में हम देखते हैं। अगर भारत को अपनी मुद्राओं पर धार्मिक प्रतीक चाहिए, तो सभी दलों को मिल-बैठकर विचार करना होगा। साथ ही सांविधानिक प्रावधानों को परखते हुए आगे बढ़ना होगा। अगर हम केवल राजनीतिक गणित, स्वार्थप्रेरित वोट बैंक पर नजर रखेंगे तो सांप्रदायिक आग में झुलसते रहेंगे।

भारत में देवताओं की तस्वीर वाली मुद्राओं की मांग नई नहीं है। यह तर्क पुराना है कि प्रथम पूजे जाने वाले देवता के रूप में भगवान गणेश के फोटो को भारतीय मुद्रा पर चित्रित किया जा सकता है, जिससे भारत सभी विघ्नों से मुक्त होकर ज्ञान, कला और विज्ञान से परिपूर्ण बन सके। धन की देवी लक्ष्मी को भी मुद्राओं पर दर्शाया जा सकता है। जिससे देश आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरते हुए समृद्ध एवं धनसम्पन्न राष्ट्र बन जाये। इन सद्-इच्छाओं के विरोध की बजाय विवेचना एवं विश्लेषण होना चाहिए। हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि भारत में एक समुदाय की धार्मिक भावना दूसरे समुदाय को आहत कर देती है और इसके दुष्परिणामों से हम लहुलूहान होते रहे हैं।
  
दुनिया की टूटती-बिखरती अर्थ-व्यवस्था के बीच भारत की अर्थ-व्यवस्था संभली हुई है तो यह किन्हीं दैवीय शक्तियों के साथ साफ-सुथरी नीति से शासन करने वालों की देन है। इन सुखद स्थितियों की प्रशंसा की बजाय उसकी आलोचना उचित नहीं है। केजरीवाल का कहना है कि देश में अर्थव्यवस्था की स्थिति अच्छी नहीं है। भारतीय अर्थव्यवस्था काफी नाजुक दौर से गुजर रही है। डॉलर के मुकाबले रुपया दिन प्रतिदिन कमजोर होता जा रहा है। इसकी मार हमारे देश के आम आदमी को भुगतनी पड़ रही है। आजादी के 75 साल बाद भी भारत एक गरीब देश है। हम चाहते हैं कि भारत एक विकसित देश बने, एक अमीर देश बने। क्या नोटों पर देवी-देवताओं के चित्र लगा देने एवं बेशुमार फ्री रेवड़ियां बांट देने से देश विकसित और अमीर हो जायेगा? फ्री रेवड़ियां बांटते-बांटते जब राजनीति अपनी पहुंच सत्ता तक बनाने के लिये धार्मिक प्रतीक एवं मुद्दे खोजने लगती है, तो न केवल चिंता होती है, बल्कि अफसोस का भाव भी जागता है। इस तरह की राजनीति से भेद-रेखाएं जन्मेंगी तो भारत भारत नहीं रहेगा। इस तरह धार्मिक भावनाओं को राजनीति का मोहरा बनाकर देश की जनता को गुमराह करने से न केवल राजनीतिक दलों का बल्कि राष्ट्र का भविष्य भी धुंधलाता है।

-ललित गर्ग
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं)

How does kejriwal not know that country is run by constitution not by religion

Join Our Newsletter

Lorem ipsum dolor sit amet, consetetur sadipscing elitr, sed diam nonumy eirmod tempor invidunt ut labore et dolore magna aliquyam erat, sed diam voluptua. At vero