पर्यावरण बचाने के लिए ज़रूरी चिंतन (व्यंग्य)
पर्यावरण बचाने और सजाने के लिए सिर्फ चिंतन ज़रूरी है। जिस भवन में ज्ञान विज्ञान की छत्रछाया हमेशा रहती है वहां बैठकर यह ज़रूरी काम आसानी से किया जा सकता है। भवन के नाम के कारण प्रभाव उगना निश्चित है। जब खुशनुमा, सुगंधित माहौल में बात की जाएगी तो वह चिंतन में बदल जानी स्वभाविक है। आन्दोलन या उद्देश्य का नाम हिंदी में न रखकर अंग्रेज़ी में रखा जाए तो वास्तव में गहन प्रभाव पैदा होता है। बहुत गहरे बैठ, चिंतन कर योजनाओं का प्रारूप बनाया जाता है। ऐसे गहन चिंतन सत्र को आयोजित करने का एक मात्र उद्देश्य, आज के पर्यावरण को किसी भी तरह बचाना ही नहीं, ज़्यादा समझदार हो चुकी आने वाली पीढ़ियों के लिए जागरूक दुनिया तैयार करना होता है।
जागरूकता, शरीर और दिमाग में घुस जाए तो हर असंभव काम संभव हो जाता है। महान संतुष्टि का होना है कि अनेक अध्यात्मिक गुरु यानी सामान्य व्यक्ति बिल्कुल नहीं, इस पुनीत कार्य के चिंतन में व्यस्त हैं। यह प्रशंसनीय और दिलचस्प है कि ऐसे गहन विचार सत्रों में राजनीतिजी ज़रूर तशरीफ़ लाती हैं क्यूंकि उनके बिना कुछ भी नहीं हो सकता। वह बात दीगर है कि पर्यावरण पर चिंतन से भी ज़्यादा गहन चिंतन मनन की ज़रूरत है। आम आदमी को क्या समझ कि पर्यावरण के लिए उचित चिंतन, किस आसन पर बैठकर, किस मुद्रा में, किस दिशा में देखकर कैसे किया जाता है।
यहां वही लोग चिंतन करने आते हैं जिन्हें दुनिया अधिकृत चिंतक मानती है। वैसे हमारे आध्यात्मिक गुरु नदिया किनारे आध्यात्मिक संगीत समारोह आयोजित करते हैं। पर्यावरण दूषित करते हैं। इतना ही नहीं सरकारजी द्वारा बड़ी हिम्मत के बाद किया गया जुर्माना भी अदा नहीं करते। पर्यावरण पर चिंतन शिविर में, अपनी नहीं पड़ोसी की, अपने मोहल्ले की नहीं दूसरे मोहल्ले की, अपने शहर की नहीं पड़ोसी शहर की, अपने राज्य की नहीं किसी और राज्य की, अपने देश की नहीं दूसरे देशों की गलती माननी चाहिए। अपने प्रयासों की खूब तारीफ करनी चाहिए। प्रयास न किए हों तो संभावित प्रयास और देखे जाने वाले खवाबों की प्रशंसा करनी चाहिए।
श्रेष्ठ चिंतन से जब हमारा मन निर्मल हो जाएगा तो हम सकारात्मक सोचने लगेंगे। निश्चित ही हमें लगने लगेगा कि हम ठीक राह पर हैं, उचित कर रहे हैं, नाहक परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। मानव जीवन में सब मिथ्या है, जब जीवन मिथ्या है तो वातावरण, पर्यावरण और चिंताओं का वरण मिथ्या है। मन में यह सोच विकसित होते ही हमें बेहतर महसूस होना शुरू हो जाएगा। लगने लगेगा कि चिंतन बैठक से हमें बहुत लाभ हुआ है। आस पास का वातावरण सुधरा है यानी पर्यावरण को फायदा हुआ है।
पर्यावरण बारे सामान्य संकल्प लेने से ही कई बार बहुत लाभ पहुंचता है। विधिवत संकल्प लेने से और अधिक फायदा होता है। उचित रंग के वस्त्र, सही उच्चारित मंत्र और शुभ मुहर्त में, बहुत से प्रिय लोगों के साथ समूह में विधिवत संकल्प यज्ञ करने से होने वाला लाभ निराला होता है।
- संतोष उत्सुक
Important thoughts to save the environment