लखनऊ। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की पहचान माने जाने वाले दो सदी पुराने ऐतिहासिक रूमी दरवाजे में पड़ रही दरारों को ठीक करने का काम शुरू कर दिया है। अवध के नवाबों के दौर की इमारत की मरम्मत का काम पूरा होने में करीब छह महीने लगेंगे। स्थानीय प्रशासन ने रूमी गेट के तीन दरों (दरवाजे) से भारी वाहनों के गुजरने पर प्रतिबंध लगा दिया है। एएसआई के अधिकारियों के मुताबिक, “वक्त के साथ रूमी गेट की मेहराबों को नुकसान पहुंचा है। उसके मोखों में दरारें पैदा हो गई हैं और बीच के हिस्से में पानी का रिसाव भी देखा गया है।”
पुलिस उपायुक्त (यातायात) रईस अख्तर ने रविवार को ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि रूमी दरवाजे के पास ट्रक और बस जैसे भारी वाहनों के आवागमन को पूरी तरह से बंद कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि सिर्फ दो पहिया गाड़ियों और अन्य छोटे वाहनों को वैकल्पिक रास्ते से जाने की इजाजत दी गई है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि एएसआई ने पिछले हफ्ते जिला प्रशासन को एक पत्र भेजकर आग्रह किया था कि रूमी दरवाजे की मरम्मत का काम शुरू करने के मद्देनजर गेट के दरों से वाहनों के गुजरने पर पाबंदी लगाई जाए।
एएसआई के अधीक्षण अधिकारी आफताब हुसैन ने कहा, “रूमी दरवाजा 238 साल पुराना है और इसकी मरम्मत की सख्त जरूरत है। जरूरी सर्वे करने के बाद हमने जिला प्रशासन से गुजारिश की है कि मरम्मत कार्य शुरू करने से पहले वहां से गुजरने वाले यातायात पर रोक लगाई जाए।” हालांकि, यातायात व्यवस्था में इस परिवर्तन की वजह से लोगों को कुछ परेशानी भी हो रही है, लेकिन वे रूमी दरवाजे की मरम्मत कार्य का समर्थन कर रहे हैं। पुराने लखनऊ इलाके में रहने वाले सरकारी कर्मचारी नरेंद्र नाथ त्रिपाठी ने कहा, “रूमी दरवाजे को मरम्मत की जरूरत है। यह न सिर्फ ऐतिहासिक स्मारक है, बल्कि लखनऊ की तहजीब का हिस्सा भी है। हमें अपनी भावी पीढ़ियों के लिए इसे बचाकर रखने की जरूरत है।” इतिहासकारों के मुताबिक, लखनऊ के हुसैनाबाद इलाके में स्थित रूमी दरवाजा अवध के नवाबों के युग से जुड़ा है और यह शहर के प्रमुख पर्यटन स्थलों में भी शामिल है।
दरअसल, वर्ष 1775 से 1797 तक अवध पर हुकूमत करने वाले नवाब आसफउद्दौला ने 1775 में अपनी राजधानी को फैजाबाद से लखनऊ स्थानांतरित किया था। लगभग नौ साल बाद 1784 में उन्होंने आसफी इमामबाड़ा (बड़ा इमामबाड़ा) और उसके नजदीक रूमी दरवाजा बनवाने का ऐलान किया। बताया जाता है कि अकाल के बीच इन इमारतों की तामीर कराने का मकसद लोगों को रोजगार देना था। अकाल के दौरान उत्पन्न संसाधनों की कमी से निपटने के लिए नवाबों ने पत्थर और संगमरमर के बजाय स्थानीय स्तर पर उपलब्ध ईटों और चूना पत्थर से इस इमारत का निर्माण करवाया। स्मारकों को सजाने के लिए गजकारी का इस्तेमाल किया गया और लखौरी ईंट के जरिये नक्काशी उकेरी गई।
एएसआई अधिकारी आफताब हुसैन ने कहा कि नीचे से भारी वाहनों के गुजरने के कारण रूमी दरवाजे में कंपन उत्पन्न होती है, जिससे उसका ढांचा कमजोर हो गया है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), कानपुर की एक टीम ने भी रूमी दरवाजे को खस्ताहाल पाया है। हुसैन के अनुसार, रूमी दरवाजे की मरम्मत के लिए उन्हीं सामग्रियों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिनका प्रयोग इसके निर्माण में किया गया था। इनमें चूना, उड़द दाल का पाउडर, ईंट का पाउडर, बालू, जूट के रेशे और गुड समेत अन्य कुदरती चिपचिपे पदार्थ शामिल हैं। गौरतलब है कि रूमी दरवाजा न सिर्फ लखनऊ, बल्कि उत्तर प्रदेश के लिए भी एक पहचान चिन्ह है। उत्तर प्रदेश मेट्रो रेल कॉरपोरेशन अपने आधिकारिक लोगो में भी इसका इस्तेमाल करता है।
Indian heritage restoration work of historic rumi darwaza begins in lucknow
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