रेगिस्तान के जहाज ऊंट के संरक्षण की दिशा में राजस्थान सरकार ने की अभिनव पहल
राजस्थान सरकार एक बार फिर रेगिस्तान के जहाज ऊंट के संरक्षण और विकास के लिए गंभीर नजर आने लगी है। दरअसल राजस्थान ही नहीं देश में भी ऊंटों की संख्या दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है। यह सब तो तब है जब देश में ऊंट की घटती संख्या को लेकर सरकारों से लेकर गैरसरकारी संगठन तक गंभीर हैं। राजस्थान की सरकार ने तो कुछ सालों पहले से ही ऊंट को राज्य पशु घोषित कर रखा है। ऊंटों के संरक्षण और उनको तस्करी से बचाने के लिए लाख प्रयास किए जा रहे हैं पर परिणाम अधिक उत्साहजनक नहीं रहे हैं। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ऊंटों के संरक्षण और विकास के लिए अभिनव पहल की है। राजस्थान में अब मादा ऊंट व बच्चे की पहचान पर पशुपालक को दो किश्तों में दस हजार रुपए प्रोत्साहन स्वरूप दिए जाएंगे। इस अभिनव योजना में पशु चिकित्सक द्वारा मादा ऊंट व बच्चे को टैग लगाकर पहचान पत्र दिया जाएगा। इस पहचान को दिए जाने के बाद संबंधित पशुपालक को पांच हजार रुपए दिए जाएंगे। इसके बाद जब ऊंट का बच्चा एक वर्ष का हो जाएगा तब उसके टैग को दिखाने पर दूसरी किश्त के पांच हजार रुपए दिए जाएंगे। पशु चिकित्सक को भी इसके लिए 50 रुपए की प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। राज्य सरकार द्वारा इसके लिए दस करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है।
राजस्थान की सरकार की ओर से ऊंट को राज्य पशु घोषित करने के साथ ही इनके संरक्षण व संवर्धन के निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। कुछ साल पहले से पीपुल फॉर एनीमल्स नामक गैर सरकारी संगठन ने ऊंटों की कम होती संख्या पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए ऊंटों के सरक्षण का आग्रह किया था। ऊंटों की कम होती संख्या पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए ऊंटों के संरक्षण की आवश्यकता प्रतिपादित की जाती रही है। उस समय राज्य सरकार ने ऊंटों के संरक्षण के लिए ब्रीडिंग की कार्ययोजना बनाने के भी निर्देश दिए थे। ऊंटों की ब्रीडिंग के लिए दुबई के विशेषज्ञों से सलाह ली जाती रही है। एक समय था जब ऊंट को रेगिस्तान के जहाज के रूप में जाना जाता था। आज भी रेगिस्तान में ऊंट का कोई विकल्प नहीं हैं। पिछले वर्षों में ऊंटों की तस्करी व वध से ऊंटों की संख्या में निरतंर कमी होती रही है। ऊंट को रेगिस्तान की जीवन रेखा माना जाता रहा है। ऊंटों का खेती में उपयोग करने के साथ ही आवागमन के साधनों के रूप में प्रमुखता से उपयोग रहा है। कोरोना काल से पहले तक पुष्कर में भरने वाले सालाना अन्तरराष्ट्रीय मेले का एक प्रमुख आकर्षण ऊंट रहने के साथ ही इस मेले में अन्य पशुओं के साथ ही ऊंटों की भी प्रमुखता से बिक्री होती रही है। राज्य में तीन दशक पहले ऊंटों की संख्या लगभग 8 लाख थी जो निरंतर कम होती जा रही है। जानकारों का कहना है कि ऊंटों की संख्या घटते घटते अब 25 प्रतिशत से भी कम रह गई है। वास्तव में यह चिंतनीय है।
राज्य सरकार ने ऊंटों की ब्रीडिंग के लिए पहल शुरू कर दी है। इसके लिए पश्चिमी राजस्थान में ऊंट प्रजनन केन्द्र खोला गया। इसके लिए अन्तरराष्ट्रीय मानकों का ध्यान रखने का निर्णय करते हुए दुबई की संस्थाओं से संपर्क व उनकी भागीदारी तय करने का सकारात्मक निर्णय भी किया गया। ऊंटों की ब्रीडिंग के लिए दुबई में ऊंट प्रजनन केन्द्र बने हुए हैं। यही कारण है कि सरकार ने ऊंटों की नस्ल सुधार व बेहतर सेवाओं के लिए दुबई की कंपनियों का आमंत्रित किया है। पिछले कुछ समय से ऊंट के दूध के व्यावसायिक उत्पादन और निर्यात की संभावनाओं पर भी काफी पढ़ने को मिला है। ऐसे में ऊंट की नस्ल सुधार, नस्ल संरक्षण और ऊंट की संख्या में निरंतर होती कमी को दूर करने के लिए राज्य सरकार का कार्य योजना बनाकर काम करने का निर्णय सराहनीय है।
ऊंट के दूध के व्यावसायिक उत्पादन के साथ ही ऊंट के दूध की निर्यात संभावनाओं को अमली जामा पहनाना होगा। बीकानेर के विश्वविद्यालय को इस दिशा में आगे आकर रेगिस्तान के जहाज की घटती संख्या को रोकने के लिए कारगर उपाय सुझाने होंगे। ऊंट की संख्या में कमी का प्रमुख कारण इनकी तस्करी माना जा रहा है। बांग्लादेश व खाड़ी देशों में ऊंटों की काफी मांग है। कहा जाता है कि वहां ऊंटों की कीमत नस्ल के अनुसार मर्सडीज कार के बराबर तक है। राजस्थान से ऊंटों की काफी अधिक मात्रा में निकासी अन्य प्रदेशों को हो रही है। इसके अलावा ऊंटों का वध भी अधिक हो रहा है। ऊंट के मांस की मांग बांग्लादेश व खा़ड़ी के देशों में अधिक है।
ऊंट को राजकीय पशु घोषित किये लंबा समय हो चुका है। अब सरकार एक बार फिर गंभीर होकर आगे आई है और प्रोत्साहन राशि के माध्यम से पशुपालकों को ऊंट पालन से लेकर उसके पोषण तक सुनिश्चित करने का प्रयास किया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पहल करके दस करोड़ रुपए का प्रावधान भी किया है और दो करोड़ से अधिक की राशि जारी भी कर दी है। ऐसे में अब इस कार्यक्रम की समयबद्ध क्रियान्वित पर भी ध्यान देना होगा। इसी तरह से पशु-पक्षियों की अन्य विलुप्त होती प्रजातियों के संरक्षण पर भी समय रहते ध्यान देना होगा, ऐसा नहीं कि जब अस्तित्व का ही संकट हो जाता है तब चेते तो इसे सही नहीं कहा जा सकता। राज्य सरकार की इस पहल की सराहना की जानी चाहिए तो गैरसरकारी संगठनों को भी आगे आकर पशुपालकों को जागरूक करना चाहिए।
- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
Innovative initiative taken by rajasthan government towards the protection of camel