इजराइली फिल्मकार ने फिल्म का नहीं बल्कि कश्मीरी पंडितों के दर्द का अपमान किया है
फिल्म 'कश्मीर फाइल्स' पर इजरायली फिल्मकार और IFFI के जूरी हेड नदव लापिद के विवादित बयान पर भले उनके देश के राजदूत ने माफी मांग ली है लेकिन सवाल उठता है कि क्या ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में बिना जाने समझे उस पर टिप्पणी करना उचित है? फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' ने कश्मीरी पंडितों की पीड़ा को देश-दुनिया तक पहुँचाया और उन पर हुए अत्याचारों से दुनिया को रूबरू कराया, लेकिन इजराइली फिल्मकार ने उस फिल्म को बकवास और प्रचार का हथकंडा बता दिया जिसे देखने के बाद हर भारतीय की आंखों में आंसू थे।
इजराइली फिल्मकार नदव लापिद को जानना चाहिए कि फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' में जुल्मों को बड़े संयमित तरीके से दर्शाया गया क्योंकि जस का तस पर्दे पर नहीं दिखाया जा सकता था। नदव लापिद को यह भी जानना चाहिए कि कश्मीरी पंडितों के लिए दर्द अब भी खत्म नहीं हुआ है। कश्मीर में पंडित/हिंदू आज भी खौफ के साये में जीने को मजबूर हैं। वैसे, इजराइल के राजदूत नाओर गिलन ने नदव लापिद को खुले पत्र में जो कुछ लिखा है वह काबिलेतारीफ है। इजराइली राजदूत ने माना है कि ये घटना भारत के लिए खुला जख्म है क्योंकि आज भी कई लोग उसकी कीमत चुका रहे हैं।
जहां तक कश्मीर में पंडितों पर हुए अत्याचार की बात है तो वह अब भी जारी है। कश्मीर में जब-तब शांति भंग करने के लिए कश्मीरी पंडितों की हत्या कर दी जाती है। हाल के दिनों में कई ऐसे कश्मीरी पंडितों पर निशाना साधा गया जोकि आतंकवाद के दिनों में भी घाटी से नहीं गये थे। यही नहीं, दूसरे प्रदेशों से आये प्रवासी मजदूरों और कर्मचारियों को भी निशाना बनाया गया क्योंकि डर का माहौल बनाये रखना था। दरअसल आतंकवाद कश्मीर में आखिरी सांसें ले रहा है इसलिए पाकिस्तान की शह पर शांति का माहौल बिगाड़ने और अल्पसंख्यकों के मन में भय पैदा करने के लिए कायरना हरकतें की जाती हैं। जम्मू-कश्मीर का बदलता माहौल जिनको नहीं भा रहा है वही तत्व लोगों की जान के दुश्मन बने बैठे हैं। लेकिन ऐसे तत्वों को सबक सिखाने के लिए हमारे सुरक्षा बल भी पूरी तरह मुस्तैद हैं। यही कारण है कि किसी भी हमले को अंजाम देने वाले 24 से 48 घंटे के अंदर मार गिराये जाते हैं।
जहां तक कश्मीर में आतंक के बदले स्वरूप की बात है तो आपको बता दें कि पाकिस्तान की नई चाल के तहत हाइब्रिड आतंकवाद की समस्या खड़ी हुई है। यह जो हाइब्रिड आतंकवादी होते हैं वह पैसे के लालच में उन्हें दिए गए एक या दो कार्यों को अंजाम देते हैं और उसके बाद अपने सामान्य जीवन में लौट जाते हैं। पहले कोई आतंकवादी बनता था तो सोशल मीडिया पर बम बंदूक के साथ फोटो खिंचवाकर डालता था और ज्यादा से ज्यादा प्रचार पाने के तरीके भी अपनाता था। ऐसे में पुलिस और सुरक्षा बलों के लिए उसके चेहरे की पहचान करना आसान होता था लेकिन अब हाइब्रिड आतंकवादियों की पहचान मुश्किल इसलिए है क्योंकि वह आम लोगों के बीच का ही कोई चेहरा है जो घटना को अंजाम देने के बाद मासूम बन कर जनता के बीच में ही छिप जाता है।
कश्मीर के वर्तमान हालात की बात करें तो यकीनन 2019 में जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन और अनुच्छेद 370 के हटने के बाद यहां लगातार सकारात्मक बदलाव हो रहे हैं। कश्मीर में हाल में लगभग 30 वर्ष बाद खुले सिनेमाघर इसी दिशा में उठाये गये नए कदम हैं। दरअसल कश्मीर में जिस प्रकार विकास की परियोजनाएं आ रही हैं, खेल और मनोरंजन सुविधाओं का विस्तार हो रहा है उसके चलते घाटी का माहौल पूरी तरह बदल चुका है। यहां अब बंद, हड़ताल, पत्थरबाजी, मस्जिदों से मौलानाओं की भड़काने वाली बातें गुजरे जमाने की बात हो चुकी हैं अब यहां स्टार्टअप्स खुल रहे हैं, सरकारी विभागों में पूरी पारदर्शिता के साथ नौकरी मिल रही है, नौकरी उन लोगों को भी मिल रही है जिनके पास 370 हटने से पहले आवेदन करने तक का अधिकार भी नहीं था। कश्मीर में सड़कों का जाल बिछ रहा है, संचार सुविधाओं का विस्तार हो रहा है, पुल और पुलिया बन रहे हैं। इसके अलावा आज कश्मीर घाटी में फैशन शो हो रहे हैं, म्यूजिकल नाइटें हो रही हैं, राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताएं हो रही हैं। साथ ही अब कश्मीर में केंद्र सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का लाभ सब तक पहुँच रहा है। यही नहीं ग्रामीण इलाकों में बिजली, पानी जैसी बरसों पुरानी समस्या का निराकरण हो चुका है। इसके अलावा ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में युवाओं का कौशल निखार कर उन्हें प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराई जा रही है, कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को किसी भी संकट से बचाने के लिए विभिन्न योजनाओं के माध्यम से मदद दी जा रही है। इन सब प्रयासों से एक नया कश्मीर बना है लेकिन कश्मीर का यह बदला माहौल कई लोगों को रास नहीं आ रहा है इसलिए वह अनर्गल बयानबाजी करते रहते हैं।
बहरहाल, इस नये कश्मीर में सुरक्षा बलों के प्रयासों में अब स्थानीय लोग भी पूरी तरह भागीदारी कर रहे हैं। अब कहीं मुठभेड़ के दौरान सुरक्षा बलों के ऑपरेशन में स्थानीय लोगों द्वारा बाधा नहीं खड़ी की जाती बल्कि उनकी मदद की जाती है। हाल ही में एक गांव में कश्मीरियों ने खुद आतंकवादियों को पकड़ कर सुरक्षा बलों के हवाले किया था। सीमावर्ती गांवों में भी संदिग्ध गतिविधियां देख कर गांव वालों की ओर से सुरक्षा बलों को सूचित किया जाता है जिससे उनको काफी मदद मिलती है। इस सबसे शायद इजराइली फिल्मकार परिचित नहीं होंगे या फिर वह पहले से ही अपने मन में कोई धारणा पाले होंगे जिसके चलते उन्होंने नकारात्मक टिप्पणी की है। कश्मीरी पंडितों के अपमान के लिए इजराइली फिल्मकार यदि माफी मांग लेते हैं तो यह उनका बड़प्पन ही कहा जायेगा।
-गौतम मोरारका
Israeli filmmaker has insulted the pain of kashmiri pandits not the film