किसी भाषा का विरोध करना ठीक नहीं, सभी भारतीय भाषाओं का समान सम्मान होना चाहिए
आज दो खबरों ने बरबस मेरा ध्यान खींचा। एक तो मुख्य न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड़ के बयान ने और दूसरा गृहमंत्री अमित शाह के बयान ने! दोनों ने वही बात कह दी है, जिसे मैं कई दशकों से कहता चला आ रहा हूं लेकिन देश के किसी न्यायाधीश या नेता की हिम्मत नहीं पड़ती कि भाषा के सवाल पर वे इतनी पुख्ता और तर्कसंगत बात कह दें।
चंद्रचूड़ ने ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ की संगोष्ठी में बोलते हुए कह दिया कि कोई यदि अच्छी अंग्रेजी बोल सकता है तो इसे उसकी योग्यता का प्रमाण नहीं माना जा सकता और उसकी योग्यता इस बात से भी नापी नहीं जा सकती कि वह व्यक्ति कौन से नामी-गिरामी स्कूल या कालेज से पढ़कर निकला है। हमारे देश में इसका एकदम उल्टा ही होता है। इसका एकमात्र कारण हमारे नेताओं और नौकरशाहों की बौद्धिक गुलामी है।
अंग्रेजों की लादी हुई औपनिवेशिक व्यवस्था ने भारत की शिक्षा और चिकित्सा दोनों को चौपट कर रखा है। महर्षि दयानंद, महात्मा गांधी और डॉ. रामनोहर लोहिया ने इस राष्ट्रीय कलंक के विरुद्ध क्या-क्या नहीं कहा था? इस औपनिवेशिक और पूंजीवादी मनोवृत्ति के खिलाफ हमारे वामपंथियों ने भी जब-तब बोला और लिखा है लेकिन अब देश के सर्वोच्च न्यायाधीश यह बात बोल रहे हैं तो वे सिर्फ बोलते ही न रह जाएं।
इस दिशा में कुछ करके भी दिखाएं। भारत की सभी अदालतों में भारतीय भाषाओं में फैसले और बहस भी हों, ऐसी घोषणा वे क्यों नहीं करते? वे संसद को सारे कानून हिंदी में बनाने के लिए बाध्य या प्रेरित क्यों नहीं करते?
गृहमंत्री अमित शाह ने इस प्रक्रिया का रास्ता दिखा दिया है। उन्होंने तमिलनाडु सरकार से कहा है कि वह अपने स्कूल-कालेजों की पढ़ाई तमिल माध्यम से क्यों नहीं करवाती? अब से लगभग 30 साल पहले जब उ.प्र. के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह और मैं चेन्नई में मुख्यमंत्री करुणानिधि से मिलने गए थे तो उनका पहला सवाल यही था कि ‘आप दोनों यहां क्या हम पर हिंदी थोपने के लिए आए हैं?’ तो हमारा जवाब था, ‘हम आप पर तमिल थोपने आए हैं।’
यही बात अब अमित शाह ने बेहतर और रचनात्मक तरीके से कह दी है। दक्षिण भारत के नेता ‘हिंदी लाओ’ और ‘अंग्रेजी हटाओ’ का विरोध तो कर सकते हैं लेकिन ‘तमिल पढ़ाओ’ का विरोध किस मुंह से करेंगे? यदि करेंगे तो उनके वोट-बैंक में चूना लग जाएगा। वोट और नोट तो नेताओं की प्राण-वायु है। उसके बिना उनका दम घुटने लगता है। चंद्रचूड़ और अमित शाह ने उनकी प्राणवायु को स्वच्छ बना दिया है।
-डॉ. वेदप्रताप वैदिक
It is not right to oppose any language all languages should be given equal respect