हिन्दू मान्यता के अनुसार माता सती के शरीर के टुकड़े जिन स्थानों पर गिरे उनकी पूजा शक्ति पीठ के रूप में की जाती हैं। यहां माता सती की योनि वाला हिस्सा गिरा था अतः यहां माता की आराधना योनि के रूप में ही की जाती है। यह मंदिर तंत्र क्रियाओं के लिए भी जाना जाता है। कामाख्या मंदिर नीलांचल पर्वत पर स्थित है, मान्यता है माता की योनि यहां पर विग्रह के रूप में परिवर्तित हो गयी थी यह विग्रह आज भी रजस्वला होती है। लोग यहां काले जादू का प्रभाव दूर करने के लिए आतें हैं।
कैसे करते है पूजा
माता के मंदिर में किसी तरह का जादू टोना या वशीकरण किया जाता है तो ऐसा नहीं है। मंदिर में केवल टोने-टोटके और काला जादू के प्रभाव को दूर किया जाता है। साल में एक बार यहां बहुत विशाल मेला लगता है जहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मंदिर में रज धर्म के दौरान जो कपड़ा प्रयोग किया जाता है प्रसाद के रूप में वितरित होता है। मंदिर परिसर में अघोरी और साधु मौजूद होते है जो दस विद्या के ज्ञाता होते हैं मान्यता है इन्हे सिद्धियां और शक्तियां प्राप्त होती हैं यह अघोरी लोगों की समस्याओं को दूर करने के लिए अनुष्ठान करते है।
कब जाएं कामाख्या मंदिर
जून में 22 से 24 मंदिर जून तक मंदिर के कपाट बंद रहते हैं मान्यता है इन दिनों देवी रजस्वला होती हैं। इस अवधि के दौरान ब्रह्मपुत्र नदी का पानी भी लाल हो जाता है। मंदिर के कपाट 25 जून की सुबह 5-30 पर खुलते हैं इसके बाद देवी की पूजा अर्चना की जाती है। इसके पश्चात देवी का रजस्वल वस्त्र श्रद्धालुओं को प्रसाद रूप में वितरित किया जाता है। इस इस समय यहां बहुत भव्य आयोजन होता है जहां देश- विदेश के श्रद्धालु और तांत्रिक एकत्र होते हैं।
कैसे जाएं कामाख्या मंदिर
अगर आप रेलवे सेवा ले रहें हैं तो आप कामाख्या रेलवे स्टेशन पर पहुंच कर कोई भी टैक्सी ले सकते है या बस द्वारा भी जा सकते है। अगर आप एयरवेज से जाना चाहते है तो गोपीनाथ बोरदोलोई हवाई अड्डा है जहां से आप टैक्सी द्वारा माता के मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
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