काशी हिंदू विश्वविद्यालय में एक माह तक चलने वाले काशी-तमिल समागम से प्रतिभागियों का उत्साह बढ़ा है और संबंधित लोग कहने लगे हैं कि इस समागम से उत्तर और दक्षिण की साझी संस्कृति और नजदीक आएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय के एम्फी थिएटर ग्राउंड में पूरे एक महीने तक चलने वाले काशी तमिल समागम की शुरुआत की। जिला प्रशासन के अधिकारियों के अनुसार, इस समागम में तमिलनाडु के तीन केंद्रों से 12 समूहों में लगभग 2,500 लोगों के सम्मिलित होने की संभावना है।
काशी के केदार घाट पर पांच पीढ़ियों से रहने वाले तमिलनाडु के चंद्रशेखर द्रविड़ ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने तमिलों के लिए जो प्रयास किए हैं, उससे विश्वभर के तमिल गौरवान्वित हुए हैं। चंद्रशेखर द्रविड़ काशी में कर्मकांड और संस्कृत की शिक्षा देते हैं। उन्होंने कहा, “तमिल और काशी का जुड़ाव युगों-युगों से रहा है। तमिलनाडु में काशी, शिव काशी, तेन काशी, वृद्ध काशी नामक स्थान आज भी काशी-तमिल के जुड़ाव को बताते हैं। आज भी तमिलों के विवाह में जोड़ियों को काशी यात्रा का वचन दिलाया जाता है।”
द्रविड़ ने कहा, “तमिलों के लिए अपने जीवनकाल में एक बार काशी की यात्रा करना अनिवार्य है। यह समागम उत्तर और दक्षिण की साझी संस्कृति को और नजदीक लाने का काम करेगा।” पांच पीढ़ी से तमिलनाडु से आ कर काशी में कर्मकांड कराने वाले नारायण धनपति ने कहा कि दक्षिण भारत में चारधाम की यात्रा की तरह ही काशी यात्रा का भी महत्व रहा है। उन्होंने कहा, “काशी-तमिल समागम की कल्पना मोदी जी को मिली दैवीय प्रेरणा से ही संभव हुई है। यह समागम उत्तर और दक्षिण की साझाी संस्कृति को सामने लाने की अनूठी पहल है।” तमिलनाडु के विश्वविद्यालय में तमिल पर शोध कर रहे पेरियाकरुप्पन के ने बताया कि काशी-तमिल समागम में हिस्सा लेने के लिए तमिलनाडु से कुल 210 शोधार्थी काशी आएं हैं।
उन्होंने कहा कि काशी-तमिल समागम भारत की दो महान संस्कृतियों के बीच संपर्क और संवाद को गति व प्रगाढ़ता प्रदान करेगा। इससे उत्तर और दक्षिण भारत के रिश्तों को आत्मीय मजबूती प्रदान करने में मदद मिलेगी। प्रशासनिक अधिकारियों ने बताया कि 16 दिसंबर तक चलने वाले इस समागम में तमिलनाडु से 12 समूहों में कुल 2,500 लोगों को काशी आमंत्रित किया गया है। उद्घाटन समारोह में छात्रों का पहला समूह मौजूद था। अधिकारियों के मुताबिक, एक महीने तक चलने वाले काशी-तमिल संगमम कार्यक्रम में भारतीय संस्कृति की इन दो प्राचीन अभिव्यक्तियों के विभिन्न पहलुओं पर विशेषज्ञों/विद्वानों के बीच अकादमिक आदान-प्रदान, सेमिनार, चर्चा आदि आयोजित किए जाएंगे, जहां दोनों के बीच संबंधों और साझा मूल्यों को आगे लाने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
अधिकारियों ने कहा कि इस समागम का व्यापक उद्देश्य ज्ञान और संस्कृति की इन दो परंपराओं को करीब लाना, हमारी साझा विरासत की एक समझ निर्मित करना और इन क्षेत्रों के लोगों के बीच पारस्परिक संबंधों को मजबूत करना है। अधिकारियों के अनुसार, तमिलनाडु से आए समूह काशी की ऐतिहासिक महत्ता को समझेंगे। इस दौरान तमिलनाडु की विभिन्न सांस्कृतिक टोलियां काशी में अपने सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश करेंगी। उन्होंने कहा कि ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की समग्र रूपरेखा और भावना के तहत आयोजित होने वाला यह संगमम प्राचीन भारत और समकालीन एकता को मजबूत करेगा।
अधिकारियों के मुताबिक, काशी-तमिल संगमम ज्ञान के विभिन्न पहलुओं-साहित्य, प्राचीन ग्रंथ, दर्शन, आध्यात्मिकता, संगीत, नृत्य, नाटक, योग, आयुर्वेद, हथकरघा, हस्तशिल्प के साथ-साथ आधुनिक नवाचार, व्यापारिक आदान-प्रदान, एजुटेक एवं अगली पीढ़ी की अन्य प्रौद्योगिकी आदि जैसे विषयों पर केंद्रित होगा। इन विषयों पर विचार- गोष्ठी, चर्चा, व्याख्यान, कार्यशाला आदि आयोजित किए जाएंगे, जिसके लिए संबंधित विषयों के विशेषज्ञों को आमंत्रित किया गया है। अधिकारियों ने बताया कि यह आयोजन छात्रों, विद्वानों, शिक्षाविदों, पेशेवरों आदि के लिए भारतीय ज्ञान प्रणाली, शिक्षा एवं प्रशिक्षण से संबंधित कार्यप्रणालियों, कला एवं संस्कृति, भाषा, साहित्य आदि से जुड़े विभिन्न पहलुओं के बारे में जानने का एक अनूठा अवसर होगा।
Kashi tamil samagam will bring closer the shared culture of north and south
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