गुवाहाटी में स्थित कामाख्या मंदिर है बेहद प्राचीन
कामाख्या मंदिर एक बेहद की पॉपुलर मंदिर है और गुवाहाटी के सबसे लोकप्रिय आकर्षणों में से एक है। इसकी गिनती भारत के प्रमुख मंदिरों में से एक है। देवी कामाख्या को समर्पित यह कामाख्या मंदिर 51 शक्ति पीठों में सबसे पुराने में से एक है। यह गुवाहाटी के पश्चिमी भाग में नीलाचल पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर कई मायनों में बेहद महत्वपूर्ण है। तो चलिए आज इस लेख में हम आपको कामाख्या मंदिर के बारे में विस्तारपूर्वक बता रहे हैं-
बेहद प्राचीन है कामाख्या मंदिर
यह मंदिर 8वीं शताब्दी का है और माना जाता है कि इसे 17वीं शताब्दी तक कई बार फिर से बनाया गया था। यह उन मंदिरों में से एक है जहां आज तक बलि के रूप का पालन किया जाता है। भक्त अक्सर देवी को चढ़ाने के लिए बकरे लेकर आते हैं।
जानिए इतिहास
कालिका पुराण के अनुसार, कामाख्या मंदिर उस स्थान को दर्शाता है जहां शिव तांडव के बाद देवी सति की योनि (जननांग, गर्भ) गिर गई थी। यह चार प्राथमिक शक्ति पीठों में से एक है। इस मंदिर में देवी की योनि की मूर्ति का पूजन किया जाता है। इसे गुफा के एक कोने में रखा गया है।
अंबुबाची मेले का होता है आयोजन
कामाख्या मंदिर में तंत्र पूजा का केंद्र माना जाता है। इस मंदिर में अंबुबाची मेले का वार्षिक उत्सव आयोजित किया जाता है, जिसमें हजारों तंत्र भक्त हिस्सा लेते हैं। इसके अलावा, एक और वार्षिक उत्सव मनाशा पूजा है। शरद ऋतु में नवरात्रि के दौरान कामाख्या में प्रतिवर्ष दुर्गा पूजा भी मनाई जाती है। यह पांच दिवसीय उत्सव कई हजार आगंतुकों को आकर्षित करता है।
देवी को होता है मासिक धर्म
कामाख्या मंदिर अंबुबाची उत्सव उस समय मनाया जाता है, जब देवी को मासिक धर्म होता है। इस दौरान मंदिर को तीन दिनों के लिए बंद किया जाता है और फिर चौथे दिन मंदिर के द्वार फिर खुल जाते हैं। इस पर्व की एक खासियत यह भी है कि इस दौरान ब्रह्मपुत्र नदी लाल हो जाती है। लोग मानते हैं कि नदी के लाल होने के पीछे का कारण देवी मां को मासिक धर्म होना होता है।
- मिताली जैन
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