Tourism

आंध्र प्रदेश के इस मंदिर में है माँ दुर्गा की स्वयंभू प्रतिमा, जानें इसके पीछे जुड़ी पौराणिक कथा

आंध्र प्रदेश के इस मंदिर में है माँ दुर्गा की स्वयंभू प्रतिमा, जानें इसके पीछे जुड़ी पौराणिक कथा

आंध्र प्रदेश के इस मंदिर में है माँ दुर्गा की स्वयंभू प्रतिमा, जानें इसके पीछे जुड़ी पौराणिक कथा

आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा के इंद्रकीलाद्री पर्वत पर माता दुर्गा का एक प्राचीन मंदिर स्थित है। यह मंदिर माता कनक दुर्गा को समर्पित है। मान्यताओं के अनुसार कनक दुर्गा मंदिर में माता की प्रतिमा स्वयंभू है। इस मंदिर का सात शिवलीला और शक्ति महिमाओं में विशेष स्थान है। नवरात्रि में यहां पर मौजूद कनक दुर्गा को बालत्रिपुरा सुंदरी, गायत्री, अन्नपूर्णा, महालक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा देवी, महिसासुरमर्दिनी और राजराजेश्वरी देवी के रूप में सजाया जाता है। विजयदशमी के दिन देवियों को हंस के आकार की नावों पर स्थापित करके कृष्णा नदी का भ्रमण करवाया जाता है। यह प्रथा ‘थेप्पोत्सवम’ के नाम से प्रचलित है। यह त्यौहार नौ दिन तक चलता है। दशहरा के अवसर पर यहाँ आयुध पूजा का आयोजन किया जाता है।
 
इस मंदिर के पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार, एक बार राक्षसों ने पृथ्वी पर हाहाकार मचा दिया था। इन राक्षसों का वध करने के लिए माता पार्वती ने अलग-अलग रूप धारण किए। माता ने कौशिक अवतार में शुंभ-निशुंभ राक्षस, महिसासुरमर्दिनी अवतार में महिषासुर और दुर्गा के अवतार में दुर्गमसुर का वध किया था। कनक दुर्गा ने अपने एक श्रद्धालु कीलाणु को पर्वत बनने का आदेश दिया। माता ने कीलाणु से कहा कि वे इस पर्वत पर निवास करेंगी। इसके बाद  महिसासुर का वध करते हुए इंद्रकीलाद्री पर्वत पर माँ आठ हाथों में अस्त्र थामे और शेर पर सवार हुए स्थापित हुईं। इस स्थान के पास की ही एक चट्टान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में शिव भी स्थापित हुए। ऐसा माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने यहाँ शिवजी की मलेलु (बेला) के फूलों से उपासना की थी। यही कारण है कि यहाँ पर स्थापित शिव का एक नाम मल्लेश्वर स्वामी पड़ गया।

इसे भी पढ़ें: भारतीय ही नहीं बल्कि विदेशी पर्यटक भी अध्यात्म और शांति की चाह के लिए आते हैं ऋषिकेश

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, इस स्थान पर अर्जुन ने भगवान शिव ने कठोर तपस्या की थी जिसके बाद उन्हें पाशुपथ अस्त्र की प्राप्ति हुई थी। यहां पर अर्जुन ने दुर्गा मां का मंदिर बनवाया था। मान्यता के अनुसार आदिदेव शंकराचार्य ने भी यहां भ्रमण किया था। यहां पर उन्होंने अपना श्रीचक्र स्थापित किया था और माता की वैदिक पद्धति से पूजा-अर्चना की थी। एक अन्य मान्यता के अनुसार इस पर्वत पर इंद्र देव भी भ्रमण करने आते थे इसलिए इस पर्वत का नाम इंद्रकीलाद्री पड़ गया। इस मंदिर में भक्तों का तांता लगता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां और सड़कें हैं। हालांकि, ज्यादातर श्रद्धालु मंदिर में जाने के लिए सीढ़ियों का इस्तेमाल करते हैं। कुछ श्रद्धालु हल्दी से सीढि़यों को सजाते हुए चढ़ते हैं, जिसे 'मेतला पूजा' कहते हैं। नवरात्रि के दौरान इस मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
 
- प्रिया मिश्रा 

Know about kanak durga mata mandir in andhra pradesh

Join Our Newsletter

Lorem ipsum dolor sit amet, consetetur sadipscing elitr, sed diam nonumy eirmod tempor invidunt ut labore et dolore magna aliquyam erat, sed diam voluptua. At vero