बेहद प्रसिद्ध है राजस्थान में स्थित मां शाकंभरी देवी का मंदिर
देवी का पूजन पूरे देश में कई रूपों में किया जाता है। लेकिन राजस्थान के सांभर इलाके में मां दुर्गा के एक रूप शाकंभरी देवी का पूजन किया जाता है। यहां पर देवी शाकंभरी का एक मंदिर भी है, जहां पर लोग दूर-दूर से दर्शन करने के लिए आते हैं। यह मंदिर सांभर झील के किनारे पर है, यह स्थान राजस्थान में जयपुर से 90 किमी दूर है। तो चलिए जानते हैं देवी के इस रूप और मंदिर के बारे में-
ऐसा लिया मां ने देवी शाकंभरी का अवतार
देवी मां ने समय-समय पर भक्तों के दुख दूर करने के लिए कई अवतार लिए। इन्हीं में से एक देवी शाकंभरी भी है। एक बार जब पृथ्वी पर अकाल पड़ा, तो सभी देवी-देवता माता शक्ति की पूजा करने लगे। जब मां उनसे प्रसन्न हुई, उन्होंने आदि शक्ति का रूप धारण किया। उन्हें मनुष्य को अकाल से बचाने के लिए पृथ्वी पर अपनी दिव्य दृष्टि डाली और इसके बाद बंजर पृथ्वी पर जड़ी-बूटी उत्पन्न हुई। जिसके खाकर सभी लोगों ने अपनी भूख मिटाई। इसके कारण ही मां शक्ति के इस रूप को शाकंभरी नाम से पुकारा गया।
चौहान वंश द्वारा की गई मंदिर की स्थापना
इस मंदिर की स्थापना चौहान वंश के शासक वासुदेव द्वारा की गई थी। यह मंदिर सातवीं सदी में बनाया गया। इस मंदिर को मां शाकंभरी चौहान वंश की कुलदेवी भी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि शाकंभरी माता मंदिर में देवी मां की जो प्रतिमा लगी है, वह मां शक्ति की कृपा से प्रकट हुई स्वयंभू प्रतिमा है। इस स्थान में शाकंभरी देवी को बहुत अधिक माना जाता है और सांभर में होने वाली कोई भी पूजा मां के आशीर्वाद के बिना पूरी नहीं होती।
मनुष्य के लालच को किया चूर-चूर
मां शाकंभरी के तप के कारण इस स्थान पर अपार संपदा उत्पन्न हुई। जिसके कारण लोगों में लालच बढ़ने लगा। ऐसे में वह आपस में लड़ने लगे। ऐसे में लोगों के मन में उत्पन्न हुए उस लालच को खत्म करने के लिए मां ने अपनी शक्ति से उस सारी संपदा को नमक में बदल दिया। ऐसा कहा जाता है कि मां के इसी प्रताप के कारण सांभर झील की उत्पत्ति हुई थी।
- मिताली जैन
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