कार्तिक माह के कृष्णपक्ष में ऐसे करें वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी का व्रत, जानिए पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
सनातन मान्यताओं के मुताबिक हर महीने में दो चतुर्थी तिथि होती है- एक कृष्ण पक्ष में और दूसरी शुक्ल पक्ष में। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी कहते है। वर्ष 2022 में 13 अक्टूबर के दिन गुरूवार को कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि है, जिसे वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। इसलिए आज कार्तिक माह की पहली चतुर्थी का व्रत रखा गया है।
इस व्रत में भगवान श्री गणेशजी की पूजा की जाती है। विधिपूर्वक पूजा करके श्री गणेशजी को प्रसन्न किया जाता है। इसके साथ ही चंद्रमा की भी पूजा की जाती है। मान्यता है कि वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी व्रत रखने से और श्री गणेशजी की पूजा करने से व्यक्तिविशेष के जीवन के सभी दुःख-दर्द दूर हो जाते हैं और जीवन में हर ओर से खुशहाली आने का वरदान मिलता है। भक्तों को धन-जन आदि सभी सुख मिलते हैं।
लोकमान्यताओं के मुताबिक, हिन्दू धर्म में भगवान श्री गणेश को सभी देवी-देवताओं में सबसे पहले पूजा जाता है। परम्परा है कि किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले भगवान श्री गणेश का रिद्धि-सिद्धि व शुभ-लाभ सहित स्मरण करने से सभी कार्य सफल होते हैं। इन कार्यों का सकारात्मक परिणाम मिलता है। ऐसे में भक्तों के निमित्त भगवान गणेश को समर्पित संकष्टी चतुर्थी व्रत का भी महत्व और अधिक बढ़ जाता है। बताया जाता है कि संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत रखने से सभी दुःख-दर्द दूर हो जाते हैं और व्यक्ति के जीवन में हर प्रकार की खुशहाली आती है। प्रत्येक मास के चतुर्थी तिथि के दिन यह विशेष व्रत रखा जाता है, जिन्हें अलग अलग नामों से भी पुकारा जाता है।
इसलिए आइए यहां पर जानते हैं कि मासों में सबसे पवित्र कार्तिक मास में यह ब्रत कब रखा जाएगा और क्या होगा इसका मुहूर्त और पूजा विधि:-
वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी तिथि
कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि प्रारम्भ: 13 अक्टूबर 2022, गुरुवार सुबह 01:59 से
कृष्णपक्षीय चतुर्थी तिथि समाप्त: 14 अक्टूबर 2022, शुक्रवार सुबह 03:08 तक
वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी व्रत तिथि: 13 अक्टूबर 2022, गुरुवार
# वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी पर चंद्रोदय का समय
चतुर्थी व्रत में चंद्र दर्शन के बिना व्रत पूरा नहीं होता है। वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी यानी 13 अक्टूबर 2022 के दिन चंद्रोदय गुरुवार रात्रि 08.09 मिनट पर होगा। भक्तों को चंद्र दर्शन के बाद व्रत खत्म करना चाहिए।
# वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी व्रत पूजा विधि
वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी व्रत के ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान ध्यान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान गणेश की पूजा के साथ व्रत का संकल्प लें। उसके बाद पापनाशक श्री गणेश जी की पूजा करें। पूजा के दौरान श्री गणेशजी को तिल, गुड़, लड्डू, दूर्वा और चंदन अर्पित करें तथा मोदक का भोग लगाएं। यदि कोई सामग्री शहरीय जनजीवन में किसी कारणवश उपलब्ध नहीं है तो उस सामग्री को भाव पद्धति से अर्पित कर दें। ईश्वर से स्वीकार करते हैं। अब श्री गणेश जी की स्तुति और मंत्रों का जाप करें। फिर अंत में भगवान गणेश की आरती अवश्य करें और अनजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगे। इस दिन चतुर्थी व्रत कथा का पाठ भी बहुत फलदायी होता है।
संकष्टी चतुर्थी व्रत की मुख्य पूजा संध्या काल में ही की जाती है। इसलिए पूरे दिन फलाहार व्रत करते हुए शाम को चंद्रोदय के पहले पुनः गणेशजी का पूजन करें। फिर भवगान गणपति जो को अक्षत, रोली, पुष्प इत्यादि अर्पित करें और उनके मंत्रों का शुद्ध जाप करें। इस दिन चन्द्रमा के दर्शन करें और फिर भगवान गणेश की विधिवत पूजा करें और चंद्रमा को अर्घ्य दें। इसके बाद व्रत खोलें।
# भगवान गणेश की प्रसन्नता के लिए करें इन मंत्रों का जाप
1. वक्र तुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ:।
निर्विघ्नं कुरु मे देव शुभ कार्येषु सर्वदा।।
2. गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारु भक्षणम्ं।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्।।
3. विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।।
स्पष्ट है कि कार्तिक मास के कृष्णपक्ष में वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी के दिन पूजा-पाठ करने से और भगवान गणेश की वन्दना करने से विभिन्न प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं और घर में सुख-शांति आती है।
- कमलेश पांडेय
Krishna paksha of kartik month observe vakratunda sankashti chaturthi fast