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विवाह एक मुकदमा (व्यंग्य)

विवाह एक मुकदमा (व्यंग्य)

विवाह एक मुकदमा (व्यंग्य)

ज़िंदगी में, त्योहारों के वार्षिक मौसम में, वैवाहिक जीवन का सबसे बड़ा त्यौहार आता है करवा चौथ का व्रत। शादी शुदा ज़िंदगी की कैसी कैसी अनसुलझी गुत्थियां समाज के अनाम कोनों में पड़ी रहती हैं इस बारे करवा चौथ का व्रत कुछ नहीं कहता। त्योहार संपन्न होने के बाद इनके सुप्रभाव और कुप्रभाव पर चर्चा के साथ जीवन सामान्य हो जाता है लेकिन वैवाहिक जीवन के मुकदमे बरसों चलते रहते हैं क्यूंकि बरसों चलाने होते हैं।   

अदालतों में हैरान करने वाले अनेक मुकदमे चल रहे हैं। यह पत्नी पति के जानदार झगड़ों की करामात ही है कि दोनों ने किसी और के नहीं, एक दूसरे के खिलाफ, एक दो नहीं, पांच दर्जन से ज़्यादा यानी साठ से ऊपर मामले दायर किए हुए हैं। उनकी शादी को बयालिस साल होने वाले हैं यानी जिस तरह या जिस रंग का गुस्सा आया, ठोक दिया एक और मुकदमा। एक नया आयाम स्थापित कर दिया वैवाहिक संस्था के आंगन में। इन मुकदमों को लंबी उम्र बख्शने में असली प्रतिभा प्रदर्शन वकील साहबों का है जिनमें से कईयों की दूसरी पीढ़ी भी ‘वैवाहिक मामला मैदान’ में आकर डट गई होगी। वैसे तकरार, फटकार, लड़ना झगड़ना भी तलवार चलाने जैसी ही कला है। कई दशक से निरंतर लड़ते रहना तो महाकला ही है।

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समझदार लोग, रिकार्ड निर्माण के लिए कुछ न कुछ नया या पुराना करते रहते हैं। कई मामलों में चाहें तो हाथापाई कर या रहस्यात्मक शैली में पिटवाकर, मरवाकर किस्सा खत्म करवा सकते हैं लेकिन लगता है पुरानी फिल्मों के विलेन आज भी प्रेरक का रोल अदा करते हैं जो हीरो हिरोइन को एक के बाद एक यातना देते रहते थे। दो विलेन भी आपस में खूब यातनाएं देते थे। उनके पास तकनीकी रूप से विकसित यातना मशीनें होती थी। निर्देशक अपनी नई फिल्म में, नई शैली, नई वेश भूषा में नई मशीनों से नई जगह यातनाएं देने का प्रदर्शन करता था।  

अनेक दम्पतियों पर करवा चौथ के व्रत का कोई असर नहीं होता। हर साल व्रत होता है लेकिन फिल्मों से प्रेरणा लेकर कुछ न कुछ होता रहता है। आजकल की फिल्मों में तो दोस्तो, लिव इन या विवाह का ब्रेकअप भी सेलिब्रेट किया जाता है। इससे प्रेरणा लेकर मुकदमे की अगली पेशी पर, नए कपडे पहन कर, नए हेयर स्टाइल में जाते होंगे। उनके लिए अदालत का अहाता एक उपवन की तरह हो जाता होगा जहां सैर करते करते लड़ सकें और आत्मसंतुष्टि के युगल गीत गा सकें। वैसे भी असली चीज़ तो आत्मसंतुष्टि ही होती है, चाहे किसी से प्यार करो या नफरत, किसी को पीट दो या पिट जाओ।

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करवा चौथ की कसम, पति पत्नी के बीच नफरत की ख़बरें बताती हैं कि पति, पत्नी के टुकड़े टुकड़े कर फ्रिज में रखता रहा, पत्नी ने पति को मरवाकर बैग्स में टुकड़े भरकर गंदे पानी में फिंकवा दिए। इससे तो बेहतर यही है कि कोर्ट में बरसों, दशकों, सदियों लड़ते रहो। इसे लड़ना न भी न कहें तो भी चलेगा क्यूंकि वकील कौन सा लड़ रहे हैं। 
 
साथ न चल सकने वाले दो व्यक्ति आराम से, बिना नुक्सान उठाए भी तो अपने अपने रास्ते हो सकते हैं लेकिन जो मज़ा साथ न रहकर भी एक दूसरे से खीजने, जलने, कुढने या लड़ने में हैं वो निर्मल आनंद किसी और मौसम में कहां। 

- संतोष उत्सुक

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